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वायु प्रदूषण से बढ़ता है सिजोफ्रेनिया का खतरा, जानें इसके लक्षण और कारण

Schizophrenia Symptoms अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के उच्चस्तर की चपेट में आने वाले बच्चों में सिजोफ्रेनिया के बढ़ने का खतरा अधिक होता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 09 Jan 2020 09:36 AM (IST)
वायु प्रदूषण से बढ़ता है सिजोफ्रेनिया का खतरा, जानें इसके लक्षण और कारण
वाशिंगटन, प्रेट्र। Schizophrenia Symptoms: वायु प्रदूषण हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यह तो अभी तक सभी का मालूम था। अब शोधकर्ताओं ने एक नवीन अध्ययन से पता लगाया है कि यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के उच्चस्तर की चपेट में आने वाले बच्चों में सिजोफ्रेनिया के बढ़ने का खतरा अधिक होता है।

सिजोफ्रेनिया के लक्षण

साइकोटिक बाइपोलर, और डिप्रेसिव डिसऑर्डर जैसे मानसिक बीमारियों में ज्यादा देखा जाता है। कैटेटोनिया के रोगी को अत्यधिक और कम मोटर गतिविधि के बीच में देखा जा सकता है। सिजोफ्रेनिया एक तरह की मानसिक बीमारी है, जो किसी व्यक्ति की सोचने-समझने, एहसास करने और व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रदूषण संबंधी आंकड़े और आइपीएसवाइसीएच के आनुवंशिक आंकड़ों के संयुक्त अध्ययन से पता चलता है कि प्रदूषण का स्तर जितना अधिक होता है, सिजोफ्रेनिया का खतरा भी उतना ही अधिक होता है।

सिजोफ्रेनिया के कारण

जेनेटिक्स- सिजोफ्रेनिया का इतिहास रखने वाले परिवार में इस बीमारी से ग्रस्त होने का खतरा ज्यादा रहता है।

वायरल संक्रमण - कुछ अध्ययनों के अनुसार वायरल संक्रमण के कारण बच्चों में एक प्रकार का पागलपन के विकास होने की संभावना ज्यादा रहती है।

भ्रूण कुपोषण - अगर गर्भावस्था के दौरान भ्रूण कुपोषण से ग्रस्त है, वहाँ एक प्रकार का पागलपन विकसित होने का अधिक खतरा है।

प्रारंभिक जीवन के दौरान तनाव - प्रारंभिक जीवन मेंगंभीर तनाव के कारण एक प्रकार के पागलपन के विकास होने का खतरा रहता है।

जन्म के समय माता-पिता की आयु - ज्यादा उम्र के माता पिता के बच्चों में इस बीमारी के होने की संभावना ज्यादा रहती है।

वायु प्रदूषण के घनत्व में रोजाना 10 मिलीग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी से सिजोफ्रेनिया का खतरा लगभग 20 फीसद तक बढ़ जाता है। इस अध्ययन के वरिष्ठ शोधकर्ता हेनरिते थिस्तेद हॉर्सदल ने बताया, ‘वैसे बच्चे जो रोजाना लगभग 25 मिलीग्राम प्रति घनमीटर से अधिक वायु प्रदूषण वाले पर्यावरण में रहते हैं, उनमें सिजोफ्रेनिया होने की आशंका 60 फीसद तक अधिक होती है।’ यह अध्ययन जेएएमए नेटवर्क ओपन साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने इन आंकड़ों के आधार पर बताया कि किसी व्यक्ति के पूरे जीवन में सिजोफ्रेनिया होने की आशंका लगभग दो फीसद होती है। इसका मतलब है कि हर 100 में से दो में इसके होने की गुंजाइश बनी रहती है।

वायु प्रदूषण के निम्नतम स्तर की चपेट में आने वालों में सिजोफ्रेनिया का खतरा दो फीसद तक होता है, जबकि प्रदूषण के उच्चतम स्तर की चपेट में आने वालों में यह आंकड़ा लगभग तीन फीसद तक हो जाता है। यह अपनी तरह का पहला शोध है, जिसमें वायु प्रदूषण और आनुवंशिक संबंधों का संयुक्त अध्ययन कर सिजोफ्रेनिया के खतरों का पता लगाया गया है। शोधकर्ता हेनरिते बताते हैं, ‘अगर आपमें आनुवंशिक रूप से बीमारियों से ग्रस्त होने की आशंका अधिक है, तो सिजोफ्रेनिया का खतरा भी अधिक होता है।’

यह अध्ययन कुल 23,355 लोगों पर किया गया, जिसमें 3,531 में सिजोफ्रेनिया की समस्या थी। हालांकि, नतीजों से यह सामने आया कि बचपन में वायु प्रदूषण के उच्च स्तर की चपेट में आने वाले बच्चों में सिजोफ्रेनिया का खतरा अधिक था, लेकिन शोधकर्ताओं ने इसकी वजहों पर कोई टिप्पणी नहीं की। इसके बजाय उन्होंने इन वजहों का पता लगाने के लिए आगे और अधिक शोध पर जोर दिया।