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COP28: जलवायु सम्मेलन में 200 देश शामिल, PM Modi करेंगे शिरकत; कार्बन उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर होगी चर्चा

संयुक्त अरब अमीरात में 30 नवंबर से 28वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु का आयोजन किया जाएगा। इस वक्त दुनिया भर में घातक गर्मी का असर आजीविका और जीवन पर पड़ रहा है। 2021-2022 में वैश्विक कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। इसका लगभग 90 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन से आता है। कॉप-28 (सीओपी-28) के दौरान इन मुद्दों पर 200 देश प्रमुख्ता से चर्चा करेंगे।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Thu, 30 Nov 2023 06:30 AM (IST)
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यूएई में आज से शुरू होगा संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन। (फाइल फोटो)
वाशिंगटन, रॉयटर्स। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में गुरुवार से 28वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन का आयोजन दुबई एक्सपो सिटी होगा। सम्मेलन 200 देशों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक चलने वाले इस वार्ता में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों, जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल, मीथेन एवं कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए वित्तीय सहायता और अमीर देशों से विकासशील देशों को दिए जाने वाले मुआवजे जैसे मुद्दों पर गहन बातचीत होने की संभावना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 1 दिसंबर को इस सम्मेलन में शामिल होंगे। 

 200 देशों के नेता होंगे शामिल 

दुनिया भर में घातक गर्मी, सूखा, जंगल की आग, तूफान और बाढ़ का असर आजीविका और जीवन पर पड़ रहा है। 2021-2022 में वैश्विक कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। इसका लगभग 90 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन से आता है। कॉप-28 (सीओपी-28) के दौरान किंग चा‌र्ल्स तृतीय, पोप फ्रांसिस और लगभग 200 देशों के नेता इन मुद्दों को प्रमुखता से संबोधित करेंगे।

जलवायु संकट का समाधान निकालने का होगा प्रयास

सम्मेलन में जलवायु संकट में कम योगदान देने के बावजूद जलवायु संकट का खामियाजा भुगतने वाले विकासशील और गरीब देशों को आर्थिक समर्थन के मुद्दे का समाधान निकालने का प्रयास किया जाएगा। जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के लिए वैश्विक दबाव बढ़ रहा है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ा इसी का योगदान है। यह वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग 90 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। तर्क है कि उन्हें परिष्कृत तकनीकें विकसित करने तक तेल और गैस निकालने की अनुमति दी जानी चाहिए। हालांकि, विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं है।

नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के लिए भारत को धन की जरूरत

वैश्विक ऊर्जा थिंक टैंक 'एम्बर' द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 14वीं राष्ट्रीय विद्युत योजना (एनईपी) वर्ष 2030 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना से अधिक करने की राह पर है, लेकिन इसे हासिल करने के लिए देश को कुल 293 अरब डालर की जरूरत होगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) ने कहा है कि विश्व को जीवाश्म ईंधन की जरूरत कम करने और इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2030 तक अपनी नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना और ऊर्जा दक्षता को दोगुना करना होगा। 

अक्षय ऊर्जा को बढ़ाने पर जोर

अमेरिका, यूरोपीय संघ (ईयू) और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के नेतृत्व में 60 से अधिक देश अब अक्षय ऊर्जा को तीन गुना करने और ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने की प्रतिबद्धता का समर्थन कर रहे हैं। जी20 देशों ने भारत की अध्यक्षता में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का समर्थन किया है, वहीं इस साल संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन की मेजबानी कर रहे यूएई ने सीओपी 28 में इस पर वैश्विक सहमति की वकालत की है।

पीएम मोदी की पहल 

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और भू-राजनीतिक मामलों में अपने बढ़ते कद के हिसाब से वार्षिक जलवायु परिवर्तन या कान्फ्रेंस आफ पार्टीज (काप) सम्मेलन में सक्रियता बढ़ाई है। ग्रीनहाउस गैसों के तीसरे सबसे बड़े उत्सर्जक के रूप में भारत वार्षिक कॉप कार्यक्रमों में विकासशील देशों के लिए एक प्रभावशाली आवाज बनकर उभर रहा है। 2021 में ग्लासगो में कॉप 26 में,प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली अपनाने के लिए वैश्विक पहल 'लाइफस्टाइल फार द एनवायरनमेंट- लाइफ' को सामने रखा था। इसे दुनियाभर के देशों ने स्वीकार किया। 

सबसे बड़ी वैश्विक सभा

भारत ने 2008 में भारत में कॉप की मेजबानी की थी। उस समय कॉप का महत्व वैश्विक स्तर पर उतना नहीं था, जितना आज है। सम्मेलन में केवल जलवायु वार्ताकार और पर्यावरण मंत्री ही शामिल हुए थे। लेकिन 2009 में कोपेनहेगन में कॉप 15, 2015 में पेरिस में कॉप21 और 2021 में ग्लासगो में कॉप26 में 100 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लेकर इसे विश्व के सबसे बड़े सम्मेलनों में से एक बना दिया। 

सम्मेलन में भारत की भूमिका

1992 के रियो डी जनेरियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन से भारत यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने का बोझ विकासशील देशों पर अनुचित रूप से न पड़े। अमीर और विकसित देशों को ये जिम्मेदारी उठानी चाहिए। सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने अधिकांश उत्सर्जन किया है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि उनके पास काम करने के लिए अधिक संसाधन और क्षमता है।

भारतीय वार्ताकारों ने 1997 में काप3 में क्योटो प्रोटोकाल में मुख्य भूमिका निभाई। 2021 की ग्लासगो बैठक में, भारत ने अंतिम मसौदे को रोक दिया था। पिछले वर्ष शर्म अल-शेख बैठक में भारत ने कोयला ही नहीं, बल्कि हर तरह के जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से बंद करने पर जोर दिया था। 

भारत की प्रतिबद्धताएं

भारत ने अब तक दो एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर तय किया गया योगदान ) प्रस्तुत किए हैं। पहले एनडीसी में तीन लक्षित वादे थे। भारत 2030 तक अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के स्तर से 33 से 35 प्रतिशत तक कम कर देगा। भारत सुनिश्चित करेगा कि 2030 में इसकी स्थापित बिजली क्षमता का कम से कम 40 प्रतिशत गैर जीवाश्म-ईंधन स्त्रोतों से हो। इसके अलावा वृक्षों और वनों के जरिये 3 अरब टन अतिरिक्त कार्बन अवशोषित करने की व्यवस्था करना।

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