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D-Day: वह सैन्य अभियान जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के खात्मे की रखी थी नींव

1944 का 06 जून यूरोप ही नहीं पूरी इंसानी सभ्यता को द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) की आग में जलकर नष्ट हो जाने से बचाने में निर्णायक मोड़ के तौर पर सामने आया।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Thu, 06 Jun 2019 08:47 AM (IST)
D-Day: वह सैन्य अभियान जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के खात्मे की रखी थी नींव
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो पाएंगे कि वर्ष 1944 का 06 जून, 20वीं शताब्दि को पूरी तरह बदल देने वाला वह महत्वपूर्ण दिन था जिसने यूरोप ही नहीं पूरी इंसानी सभ्यता को द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) की आग में जलकर नष्ट हो जाने से बचाने में निर्णायक मोड़ के तौर पर सामने आया। इन दिनों फ्रांस के नॉरमैंडी (Normandy) शहर के अलावा पूरे यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण सैन्य अभियान डी-डे (D-Day) की 75वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। दुनिया के तमाम नेताओं ने इंग्लैंड के दक्षिणी तट पोर्ट्समाउथ (southern English coast in Portsmouth) में उन सैनिकों को श्रद्धांजलि दी, जिनकी बहादुरी और त्याग की बदौलत यूरोप अपना अस्तित्व बचाए रखने में कामयाब हो पाया। आइये नजर डालते हैं डी-डे के उन ऐतिहासिक घटनाक्रमों पर जिनसे दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध के दलदल से निकलने में एक नई दिशा दी...

D-Day: मानव इतिहास का सबसे बड़ा संयुक्त सैन्य ऑपरेशन
साल 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था, नाजियों के बर्बर अत्याचार के सामने अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे यूरोप के देशों के सामने करो या मरो वाली स्थिति थी। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस समेत तमाम तत्कालीन मित्र राष्ट्र किसी तरह द्वितीय विश्व युद्ध को खत्म करना चाहते थे। जून 1944 में मित्र देशों के एक लाख 56 हजार सैनिकों ने जर्मन सेना के खिलाफअब तक के सबसे बड़े सैन्य ऑपरेशन में भाग लिया। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्री फ्रेंच फोर्सेज के इन सैनिकों ने छह जून 1944 को उत्तरी फ्रांस के नॉरमैंडी शहर के तटीय इलाके पर गुपचुप तरीके से समुद्र के रास्ते घुसपैठ की। यह भूभाग जर्मनी के कब्जे में था। इसे नाजियों के खिलाफ मानव इतिहास की सबसे बड़ी संयुक्त सबमरीन घुसपैठ (the largest seaborne invasion in history) के तौर पर जाना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के इस सबसे बड़े और ऐतिहासिक सैन्य अभियानों में से एक इस ऑपरेशन को डी-डे D-Day के नाम से जाना जाता है।

द्वितीय विश्व युद्ध को दिया निर्णायक मोड़
इस संयुक्त सैन्य अभियान को ऑपरेशन ओवरलॉर्ड के नाम से भी जाना जाता है। यह नाजी कब्जे वाले यूरोप पर हमले का पहला चरण था। इसे ऑपरेशन नेप्चून (Operation Neptune) नाम दिया गया था। इसका मकसद दूसरे विश्व युद्ध को खत्म करना था। इस अभियान में तीनों सेनाओं (army, navy and air force) ने हिस्सा लिया था। पोर्ट्समाउथ के डी-डे संग्रहालय के आंकड़ों के मुताबिक, नाजी सैनिकों के खिलाफ चलाए गए इस अभियान में मित्र राष्ट्रों के 4413 और जर्मनी के नौ हजार सैनिक मारे गए थे। इस अभियान की ही देन थी कि मित्र देशों की सेनाओं ने फ्रांस पर अपना पैर दोबारा जमा पाने में कामयाब हो पाईं। इसी के बाद से द्वितीय विश्व युद्ध को एक निर्णायक मोड़ मिला। बाद में पूर्व की ओर से सोवियत सेनाओं ने भी हमला बोला जिससे हिटलर के गढ़ बर्लिन उसके हाथ से जाता। नतीजतन अगले 11 महीनों के भीतर ही नाजी जर्मनी हार गया।

 

नॉरमैंडी की लड़ाई के एक साल बाद खत्म हो गया था द्वितीय विश्व युद्ध
नॉरमैंडी की लड़ाई के बाद धुरी राष्ट्रों के हौसले पस्त होने लगे और उनके कब्जे वाले भूभाग एक एक कर उनके हाथ से जाने लगे। अक्टूबर में फिलिपींस के लेटी भूभाग पर मित्र राष्ट्रों ने धावा बोला जिसमें जापान की हार हुई। हार का यह सिलसिला यहीं नहीं थमा रियूक्यू द्वीपों के ओकीनावा नामक भूभाग से भी जापान का कब्जा जाता रहा जो कि 75 वर्षो से उसके आधिपत्य में था। छह अगस्त को अमेरिका ने युद्ध के दौरान मानव इतिहास में पहली बार जापान के हिरोशिमा शहर के पर परमाणु बम गिराया। दूसरा एटम बम तीन दिन बाद नागासाकी शहर पर गिराया गया, जिसके बाद दो सितंबर 1945 को जापान ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। इसके साथ छह साल से चल रहा द्वितीय विश्व युद्ध औपचारिक रूप से ख़त्म हो गया। 

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