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20 साल बाद भी इराक में नाकामी के साए से उबर नहीं पा रही अमेरिकी खुफिया एजेंसी, 18 फीसद लोगों को ही है भरोसा

अमेरिका द्वारा इराक पर किए गए हमले और देश में करीब दो दशक तक चली अशांति में 300000 नागरिक मारे गए और अमेरिका के करीब 4500 सैनिकों की मौत हो गई। अमेरिका ने इस युद्ध के दौरान करीब दो ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए। फोटो- एपी।

By AgencyEdited By: Sonu GuptaUpdated: Thu, 23 Mar 2023 08:54 PM (IST)
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20 साल बाद भी इराक में नाकामी के साए से उबर नहीं पा रही अमेरिकी खुफिया एजेंसी।
वाशिंगटन, एपी। इराक पर अमेरिकी हमले के दो दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह साफ नहीं हो पाया है कि देश में बड़े स्तर पर परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियार कैसे बनाए जा रहे थे। हालांकि, सीआईए ने इसी खुफिया सूचना के आधार पर इराक पर हमला किया था। अमेरिका द्वारा इराक पर किए गए हमले और देश में करीब दो दशक तक चली अशांति में 300,000 नागरिक मारे गए और अमेरिका के करीब 4500 सैनिकों की मौत हो गई। अमेरिका ने इस युद्ध के दौरान करीब दो ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए।

अमेरिकी जनता में गिरी इंटेलिजेंस एजेंसियों की साख

अमेरिका के अधिकतर सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इराक के परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियार कार्यक्रमों के बारे में गलत दावों से अमेरिकी खुफिया एजेंसी (सीआईए) की विश्वसनीयता को काफी नुकसान पहुंचा है। हालांकि, एक सर्वे में पाया गया है कि सिर्फ 18 प्रतिशत जनता को अमेरिका के खुफिया एजेंसियों पर भरोसा है, जबकि 31 प्रतिशत ऐसे भी लोग हैं, जिनके इस एजेंसी पर भरोसा नहीं है।

राष्ट्रपति बुश ने दिया था अफगानिस्तान पर हमला का आदेश

इराक को साल 1980 के दशक में परमाणु हथियार विकसित करने के लिए जाना जाता था। हालांकि साल 1991 में खाड़ी युद्ध के अंत तक इराक के पास एक रासायनिक और जैविक हथियार कार्यक्रम थे। अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों ने बाद में इराक पर इन कार्यक्रमों के बारे में जानकारी छिपाने का आरोप भी लगाया था। राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अमेरिका पर 11 सितंबर, 2001 को हुए हमले के तुरंत बाद अफगानिस्तान पर हमला करने का आदेश दिया था, जहां तालिबान ने ओसामा बिन लादेन को छिपा रखा था।

अमेरिका ने चीन पर नहीं लगाया सीधा आरोप

बुश प्रशासन के दौरान व्हाइट हाउस में काम करने वाले माइकल एलन ने इस पर एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने कहा कि अमेरिका अधिकारियों के बीच इराक युद्ध के दौरान खुफिया जानकारी मामले में आपस में ही मतभेद था। उन्होंने कोरोना महामारी का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके अनुसार एफबीआई का मानना था कि कोविड-19 वायरस शायद किसी चीनी प्रयोगशाला से लीक हुआ था, लेकिन अन्य एजेंसियों के इस बारे में मतभेद थे। ऐसे में अमेरिका ने चीन के खिलाफ सीधे कोई आरोप नहीं लगाया।