एंटीबायोटिक के अधिक इस्तेमाल से खतरे में बच्चे, रोगों से लड़ने की क्षमता हो रही कम
निम्न और मध्यम आय वाले देशों के हालात चिंताजनक ज्यादा एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से रोगजनकों से लड़ने की क्षमता हो रही कम।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 16 Dec 2019 09:20 AM (IST)
बोस्टन, प्रेट्र। निम्न और मध्यम आय वाले देशों के बच्चे अपने जीवन के पहले पांच वर्षों के दौरान औसतन 25 तरह के एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर लेते हैं। यह मात्रा इतनी अधिक है कि इससे रोगजनकों से लड़ने की उनकी क्षमता को नुकसान पहुंच सकता है और दुनियाभर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध भी बढ़ सकता है। पहले के अध्ययनों में यह बताया गया है कि दवा प्रतिरोध जिसे एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंट कहते हैं, इसकी वजह से दुनिया में प्रति वर्ष हजारों लोगों की मौत होती है। अगर इसे रोका नहीं गया तो 2050 तक इसकी वजह से प्रतिवर्ष मरने वालों की संख्या एक करोड़ तक पहुंच जाएगी।
बच्चों के बीच इन दवाओं के सेवन के बारे में बहुत कम जानकारीअमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं सहित टीम ने कहा कि इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट में योगदान देने वाला एक प्रमुख कारक दुनियाभर में एंटी बायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग है। उन्होंने बताया कि उच्च आय वाले देशों में एंटीबायोटिक के उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में खासकर बच्चों के बीच इन दवाओं के सेवन के बारे में बहुत कम जानकारी है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि अफ्रीकी देश तंजानिया में 90 फीसद बच्चे जब अस्पताल जाते हैं उन्हें एंटीबायोटिक की एक फुल डोज दी जाती है, जबकि असल में उनको जरूरत केवल उसके पांचवे हिस्से की होती है।
‘लैंसेट एंफेक्शियस डिसीज’ नामक जर्नल में प्रकाशित अपनी तरह के पहले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने निम्न और मध्यम आय वाले आठ देशों में बच्चों को दिए जाने वाले एंटीबायोटिक्स को देखा। इन देशों में नेपाल, नामीबिया, केन्या और हैती भी शामिल थे। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर और इस अध्ययन की सह लेखक जेसिका कोहेन ने बताया कि इस अध्ययन के माध्यम से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में एंटीबायोटिक्स की खपत के बारे व्यापक जानकारी मिली है।
एंटीबायोटिक की खपत के मामले भिन्न-भिन्नअध्ययन से पता चलता है कि इन देशों में बच्चों को पांच साल की उम्र में ही 25 तरह के एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करना पड़ा। परिणामों से पता चलता है कि औसतन एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल सांस की बीमारी वाले बच्चों के हर पांच मामले में चार को, दस्त के 50 प्रतिशत मामले में और मलेरिया वाले बच्चों में 28 प्रतिशत मामलो में किया गया। हालांकि, शोधकर्ताओं ने बताया कि इन देशों में भी एंटीबायोटिक की खपत के मामले भिन्न-भिन्न हैं। जैसे कि सेनेगल में एक बच्चे को पांच वर्ष की उम्र तक प्रत्येक वर्ष एक डोज एंटीबायोटिक की जरूरत पड़ी। वहीं युगांडा में यह आंकड़ा 12 तक था। शोधकर्ताओं ने बताया कि उच्च आय वाले देशों जैसे कि यूरोप में प्रत्येक बच्चा हर साल एक डोज से भी कम एंटीबायोटिक लेता है।
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