50 फीसद से ज्यादा युवाओं में बढ़ रहा 12 तरह के खतरनाक कैंसर का खतरा, ये है वजह
लखनऊ केजीएमयू के पल्मोनरी क्रिटिकल केयर व सेंटर फार एडवांस स्टडीज ने खास तरह के कैंसर की पहचान के लिए महत्वपूर्ण खोज की है। मरीजों को जांच की असहनीय पीड़ा से मिलेगी मुक्ति।
By Amit SinghEdited By: Updated: Tue, 05 Feb 2019 06:16 PM (IST)
वाशिंगटन [द न्यूयार्क टाइम्स]। कैंसर ऐसी बीमारी है जो न केवल मरीज, बल्कि उसके पूरे परिवार को तोड़ देती है। इसका इलाज जितना महंगा और लंबा होता है, उतना ही मरीज के लिए कष्टकारी भी होता है। ऐसे में दुनिया भर के डॉक्टरों का मानना है कि लाइफ स्टाइल में थोड़ा बदलाव कर कैंसर के खतरे को दूर रखना ही समझदारी है। ऐसे में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक ताजा रिसर्च में 30 में से 12 प्रकार के कैंसरों की वजह पता की है। खास बात ये है कि इन 12 प्रकार के कैंसरों की वजह एक ही है, जिससे बचा जा सकता है। चिंताजनक ये है कि कैंसर की ये वजह 50 फीसद से ज्यादा युवाओं में तेजी से बढ़ रही है।
वैज्ञानिकों ने 1995 से 2014 के दौरान 30 तरह के कैंसर पर अध्ययन किया। इनमें 12 प्रकार के कैंसर ऐसे थे, जो मोटापे के कारण होते हैं। शोध में 25 से 84 साल की उम्र के लोगों को शामिल किया गया और 1.46 करोड़ मामलों का अध्ययन हुआ। शोध लैंसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित है। वैज्ञानिकों ने पाया कि मोटापे के कारण होने वाले 12 में से छह प्रकार के कैंसर 25 से 49 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हैं।
इनमें भी कम उम्र के लोगों में इसके मामले बढ़ने की गति ज्यादा है। उदाहरण के तौर पर 1950 में जन्मे व्यक्ति की तुलना में 1985 में जन्मे व्यक्ति को मल्टीपल मायलोमा (कैंसर का एक प्रकार) होने का खतरा 59 फीसद ज्यादा है। वहीं ऐसे लोगों में पैंक्रियाटिक कैंसर (अग्नाशय का कैंसर) होने की आशंका दोगुनी हो जाती है।
मोटापा दुनियाभर में तेजी से बढ़ती जा रही बीमारी का रूप लेता जा रहा है। पश्चिम के बहुत से देशों में इसने महामारी जैसा रूप ले लिया है। मोटापा इसलिए भी बड़ी समस्या है, क्योंकि यह डायबिटीज और कैंसर जैसी कई अन्य बीमारियों का भी कारण बनता है। हाल के अध्ययन में सामने आया है कि युवाओं में मोटापा कैंसर की बड़ी वजह बनता जा रहा है।
चिकित्सक भी निभाएं जिम्मेदारी
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के वैज्ञानिक अहमदीन जमाल ने कहा कि मोटापे से निपटने में सही खानपान और व्यायाम की अहम भूमिका होती है। साथ ही इसमें स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों को भी जिम्मेदारी निभानी होगी। मुश्किल से तिहाई युवाओं को ही मोटापे के खतरे और इससे बचने के उपायों के बारे में कोई बताता है। चिकित्सकों को इस बात पर नजर रखते हुए हर उस मरीज को समझाना चाहिए, जिसमें मोटापे के लक्षण दिखने लगे हों। फेफड़े के कैंसर के लिए जिम्मेदार एमआइ-आरएनए
उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित केजीएमयू ने ऐसे माइक्रो राइबो न्यूक्लिक एसिड (एमआइ-आरएनए) की खोज की है जो लोगों में फेफड़े के कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं। यही नहीं अब फेफड़े के कैंसर की सुई की नोंक के बराबर मांस का टुकड़ा लेकर जांच की जा सकेगी। अभी मरीजों की बायोप्सी के लिए फेफड़े से मांस का बड़ा टुकड़ा काटना पड़ता है, इससे उन्हें असहनीय दर्द होता है। इससे कैंसर के प्रकार ‘स्क्वैमस’ या फिर ‘एडिनो’ का भी पता चल सकेगा। केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के इंचार्ज डॉ. वेद प्रकाश, सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च के डॉ. सत्येंद्र कुमार व रिसर्च स्कॉलर अंजना सिंह की टीम ने सीटी गाइडेट बायोप्सी द्वारा कैंसर सेल्स की मॉलीक्यूलर डायग्नोसिस कर निष्कर्ष निकाला है।केजीएमयू के डॉ. वेद प्रकाश ने बताया, फेफड़ों में कैंसर की जांच के लिए इस बार हिस्टो पैथोलॉजी के साथ मॉलीक्यूलर जांच भी करवाई। इससे कैंसर के होने या न होने और उसके प्रकार की सटीक जानकारी मिलती है। डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि मरीजों की मॉलीक्यूलर लेवल पर जांच कर छह ऐसे एमआइ-आरएनए (माइक्रो राइबो न्यूक्लिक एसिड) की पहचान की है, जो कि फेफड़े के कैंसर की कोशिकाओं में पाए गए हैं। इसमें से तीन ऐसे एमआइ-आरएनए हैं जो सभी फेफड़े के कैंसर की कोशिकाओं में मिले हैं। इससे साफ है कि जिन मरीजों में यह होंगे उन्हें कैंसर है या नहीं, इस बात की जानकारी काफी शुरू में ही लग सकेगी। वहीं दो एमआइ-आरएनए ऐसे हैं, जिनमें से एक सिर्फ स्क्वैमस और दूसरा सिर्फ एडिनो कार्सिनोमा में ही पाया जा सकता है। यानी इनकी उपस्थिति बताती है कि कैंसर किस प्रकार का है। फेफड़े के कैंसर के मरीजों को यह विधि बहुत बड़ी राहत देगी। डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि मरीजों की जांच में 75 फीसद मरीजों में एडिनो कार्सिनोमा मिला है। यह तंबाकू, धूम्रपान के कारण होता है।सांस से फेफड़े के कैंसर की होगी पहचान
वैज्ञानिकों ने ग्रेफीन आधारित एक नया बायोसेंसर विकसित किया है। यह किसी व्यक्ति की सांस से फेफड़े के कैंसर का पता लगा सकता है। इस किफायती तरीके से प्रारंभिक अवस्था में ही बीमारी की पहचान करना संभव हो सकेगा। ब्रिटेन की एक्सटर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऐसी नई तकनीक ईजाद की है जिससे बेहद संवेदनशील ग्रेफीन बायोसेंसर तैयार किया जा सकता है। यह बायोसेंसर फेफड़े के कैंसर के सबसे आम बायोमार्कर्स के मोलेक्यूल्स की पहचान करने की क्षमता रखता है। इस तरीके से कैंसर के बायोमार्कर्स की प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाना संभव हो सकेगा। इस बीमारी से दुनियाभर में हर साल करीब 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है। एक्सटर के शोधकर्ता बेन होगन ने कहा, ‘हमारा यकीन है कि इस डिवाइस के विकास से ऐसी किफायती और सटीक श्वसन जांच हकीकत में बन सकेगी जिससे फेफड़े के कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाना संभव हो सकेगा।’यह भी पढ़ें-
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उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित केजीएमयू ने ऐसे माइक्रो राइबो न्यूक्लिक एसिड (एमआइ-आरएनए) की खोज की है जो लोगों में फेफड़े के कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं। यही नहीं अब फेफड़े के कैंसर की सुई की नोंक के बराबर मांस का टुकड़ा लेकर जांच की जा सकेगी। अभी मरीजों की बायोप्सी के लिए फेफड़े से मांस का बड़ा टुकड़ा काटना पड़ता है, इससे उन्हें असहनीय दर्द होता है। इससे कैंसर के प्रकार ‘स्क्वैमस’ या फिर ‘एडिनो’ का भी पता चल सकेगा। केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के इंचार्ज डॉ. वेद प्रकाश, सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च के डॉ. सत्येंद्र कुमार व रिसर्च स्कॉलर अंजना सिंह की टीम ने सीटी गाइडेट बायोप्सी द्वारा कैंसर सेल्स की मॉलीक्यूलर डायग्नोसिस कर निष्कर्ष निकाला है।केजीएमयू के डॉ. वेद प्रकाश ने बताया, फेफड़ों में कैंसर की जांच के लिए इस बार हिस्टो पैथोलॉजी के साथ मॉलीक्यूलर जांच भी करवाई। इससे कैंसर के होने या न होने और उसके प्रकार की सटीक जानकारी मिलती है। डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि मरीजों की मॉलीक्यूलर लेवल पर जांच कर छह ऐसे एमआइ-आरएनए (माइक्रो राइबो न्यूक्लिक एसिड) की पहचान की है, जो कि फेफड़े के कैंसर की कोशिकाओं में पाए गए हैं। इसमें से तीन ऐसे एमआइ-आरएनए हैं जो सभी फेफड़े के कैंसर की कोशिकाओं में मिले हैं। इससे साफ है कि जिन मरीजों में यह होंगे उन्हें कैंसर है या नहीं, इस बात की जानकारी काफी शुरू में ही लग सकेगी। वहीं दो एमआइ-आरएनए ऐसे हैं, जिनमें से एक सिर्फ स्क्वैमस और दूसरा सिर्फ एडिनो कार्सिनोमा में ही पाया जा सकता है। यानी इनकी उपस्थिति बताती है कि कैंसर किस प्रकार का है। फेफड़े के कैंसर के मरीजों को यह विधि बहुत बड़ी राहत देगी। डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि मरीजों की जांच में 75 फीसद मरीजों में एडिनो कार्सिनोमा मिला है। यह तंबाकू, धूम्रपान के कारण होता है।सांस से फेफड़े के कैंसर की होगी पहचान
वैज्ञानिकों ने ग्रेफीन आधारित एक नया बायोसेंसर विकसित किया है। यह किसी व्यक्ति की सांस से फेफड़े के कैंसर का पता लगा सकता है। इस किफायती तरीके से प्रारंभिक अवस्था में ही बीमारी की पहचान करना संभव हो सकेगा। ब्रिटेन की एक्सटर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऐसी नई तकनीक ईजाद की है जिससे बेहद संवेदनशील ग्रेफीन बायोसेंसर तैयार किया जा सकता है। यह बायोसेंसर फेफड़े के कैंसर के सबसे आम बायोमार्कर्स के मोलेक्यूल्स की पहचान करने की क्षमता रखता है। इस तरीके से कैंसर के बायोमार्कर्स की प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाना संभव हो सकेगा। इस बीमारी से दुनियाभर में हर साल करीब 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है। एक्सटर के शोधकर्ता बेन होगन ने कहा, ‘हमारा यकीन है कि इस डिवाइस के विकास से ऐसी किफायती और सटीक श्वसन जांच हकीकत में बन सकेगी जिससे फेफड़े के कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाना संभव हो सकेगा।’यह भी पढ़ें-
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