वैक्सीन के प्रभाव को कम करने में सक्षम है कोरोना वायरस का जी-614 स्ट्रेन, यूरोप, यूएस में मचाई तबाही
शोध में कोराना वायरस के ऐसे स्ट्रेन का पता चला है जो वैक्सीन के प्रभाव को खत्म या कम कर सकता है। इसकी वजह से सबसे अधिक प्रभावित यूरोप और अमेरिका हुआ है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 08 May 2020 03:08 PM (IST)
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के यूं तो पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है लेकिन यूरोप और अमेरिका इससे सबसे अधिक प्रभावित है। इन दोनों महाद्वीपों में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या 2965743 है जो पूरी दुनिया में मौजूद कुल मरीजों का करीब 60 फीसद से भी अधिक है। यहां पर हुई इतनी बड़ी तबाही को लेकर जो रिपोर्ट अब सामने आई है वह काफी चौंकाने वाली है। वैज्ञानिकों के अनुसार यूरोप और अमेरिका में कोविड-19 महामारी का कहर बरपाने वाला कोरोना वायरस का रूप सामान्य कहीं ज्यादा अलग और घातक है। इसके मुताबिक ब्रिटेन और न्यूयॉर्क में जो सबसे ज्यादा तबाही देखी गई है उसकी वजह कोरोना वायरस का स्ट्रेन जी-614 है।
शोधकर्ताओं की मानें तो यह अन्य यूरोपीय देशों और अमेरिका के दूसरे भागों में पाए गए डी-614 स्ट्रेन से ज्यादा खतरनाक है। आपको बता दें कि ये रिपोर्ट रोगियों के नमूनों से लिए वायरस के अध्ययन के बाद अमेरिका और ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने तैयार की है। इसमें वैज्ञानिकों ने पाया कि चीन में महामारी फैलाने वाले वायरस की तुलना में ये स्ट्रेन अधिक संक्रामक या अधिक खतरनाक है। शोधकर्ताओं का ये भी कहना है कि ये नया स्ट्रेन प्रतिरक्षा प्रणाली या वैक्सीन से बचने के लिए अपना स्वरूप बदलने में सक्षम भी है। इसकी वह से एक टीके का प्रभाव और प्राकृतिक प्रतिरक्षा की संभावना कम हो जाती है।
इसके अलावा चीन में कोरोना वायरस के स्ट्रेन को लेकर हुई एक रिसर्च में ये पाया गया है कि इसके 30 से अधिक स्ट्रेन हो सकते हैं। चीन में ये अध्ययन झेजियांग यूनिवर्सिटी में किया गया है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक इनमें से 19 स्ट्रेन पहली बार सामने आए हैं। इन स्ट्रेन की क्षमता भी अलग अलग है। कुछ में कोशिकाओं पर आक्रमण की क्षमता अधिक है, कुछ में तेजी से प्रसार की। इन सभी में अब तक का सबसे घातक रूप यूरोप और न्यूयॉर्क में देखा गया है।
वहीं एशिया की बात करें तो अधिकतर देशों में इसका प्रकोप कोरोना वायरस के दूसरे स्ट्रेन डी-614 से शुरू हुआ था। इसका प्रभाव चीन और सिंगापुर में देखा गया। वहीं कुछ जगहों पर मार्च के दौरान जी-614 स्ट्रेन का भी प्रभाव सामने आया हे। शुरुआती दौर में ब्रिटेन में इसके बी-121 और इ-11 स्ट्रेन रहे थे। चीन के शोध में ये भी सामने आया है कि कुछ सप्ताह तक जी-614 ने डी-614 पर बढ़त बनाई। दुनियाभर के नमूनों और वुहान के मरीजों में डी-614 की मूल स्थिति में पाया गया है। नए स्ट्रेन जी-614 ने पहले यूरोप और उत्तरी अमेरिका में असर दिखाया। हालांकि यहां पर भी मार्च से पहले तक कोरोना वायरस के डी-614 रूप ने अपना प्रकोप दिखाया था लेकिन बाद में जी-614 ने यहां पर अधिक तबाही मचाई।
यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड, लॉस अलामोस नेशनल लेबोरेटरी और न्यू मैक्सिको में वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया है कि कोरोना वायरस का ये स्ट्रेन जी-614 पहली बार फरवरी में जर्मनी में पाया गया था। इसमें कहा गया है कि ये स्ट्रेन वैक्सीन को बेअसर करने में सक्षम हैं। मार्च के दौरान ही वैज्ञानिकों को मरीजों में सार्स-सीओवी-2 के कम से कम एक दर्जन से अधिक स्ट्रेन मिले थे। गौरतलब है कि उत्तरी अमेरिका में जहां इससे 1411979 लोग संक्रमित हैं वहीं अब तक 85243 मरीजों की मौत भी हो चुकी है। वहीं यूरोप की बात करें तो यहां पर 1553764 लोग इससे संक्रमित हैं और अबतक 148470 मरीजों की मौत हो चुकी है।
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