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    H-1B वीजा शुल्क बढ़ाकर बुरे फंसे ट्रंप, अमेरिका पर भी ये फैसला क्यों पड़ रहा भारी?

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 04:11 PM (IST)

    अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के H-1B वीजा पर शुल्क लगाने के फैसले से प्रवासी कर्मचारी परेशान हैं। सिलिकॉन वैली की कंपनियों ने कर्मचारियों को यात्रा न करने की सलाह दी। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा क्योंकि टेक कंपनियां इंजीनियरों और आईटी विशेषज्ञों के लिए इस वीजा पर निर्भर हैं। NASSCOM के अनुसार इससे प्रोजेक्ट अटक सकते हैं।

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    ट्रंप का H-1B वीजा शुल्क अमेरिकी अर्थव्यवस्था (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इस हफ्ते अचानक एलान किया कि H-1B वीजा पर 1 लाख डॉलर का शुल्क लगाया जाएगा। यह वीजा अमेरिका में काम करने वाले विदेशी प्रोफेशनल्स, खासकर टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए बेहद जरूरी है।

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    इस फैसले के बाद प्रवासी कर्मचारियों में अफरा-तफरी मच गई। सिलिकॉन वैली की कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को सलाह दी कि वे अमेरिका से बाहर यात्रा न करें। डर यह था कि बाहर जाने पर वापस लौटने में दिक्कत होगी। हालात बिगड़ते देख व्हाइट हाउस ने सफाई दी कि यह शुल्क केवल नए वीजा आवेदन पर और एक बार ही लागू होगा।

    अमेरिका पर पड़ेगा भारी असर

    विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला अमेरिका की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा सकता है। टेक कंपनियां इंजीनियर, वैज्ञानिक और आईटी विशेषज्ञों के लिए H-1B वीजा पर ही निर्भर रहती है। अर्थशास्त्री आताकान बाकिस्कन का कहना है कि विदेशी प्रतिभा लाना मुश्किल हो जाएगा और इससे उत्पादकता पर असर पड़ेगा।

    उनकी रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका की विकास दर पहले 2% आंकी गई थी लेकिन अब इसे घटाकर 1.5% कर दिया गया है। ब्रोकरेज फर्म XTB की रिसर्च डायरेक्टर कैथलीन ब्रूक्स ने कहा कि अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और एप्पल जैसी कंपनियों में बड़ी संख्या में H-1B वीजा कर्मचारी हैं। टेक सेक्टर तो खर्च उठा सकता है, लेकिन हेल्थकेयर और शिक्षा जैसे क्षेत्रों के लिए यह मुश्किल होगा।

    सबसे ज्यादा भारतीयों को मिला है H-1B वीजा

    H-1B वीजा प्रोग्राम में भारतीय सबसे ज्यादा आगे हैं। करीब 70% वीजा भारतीयों को मिलते हैं। यही वजह है कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और IBM जैसी कंपनियों में भारतीय मूल के CEO हैं। सिर्फ टेक नहीं, बल्कि अमेरिका के डॉक्टरों में भी लगभग 6% भारतीय मूल के हैं। ऐसे में यह फैसला सीधे भारत से जुड़े पेशेवरों पर असर डालेगा।

    अमेरिका पर बढ़ेगा दबाव

    विशेषज्ञों का मानना है कि शुरुआत में भारत को झटका लगेगा, लेकिन असली दबाव अमेरिका की कंपनियों पर होगा। NASSCOM ने चेताया है कि इससे कई प्रोजेक्ट अटक सकते हैं और क्लाइंट नई शर्तें थोप सकते हैं। भारतीय आईटी कंपनियां जैसे TCS और इन्फोसिस पहले से ही अमेरिका में लोकल वर्कफोर्स बढ़ा रही है और काम का बड़ा हिस्सा भारत या दूसरे देशों में शिफ्ट कर रही है।

    CIEL के एचाआर के. आदित्य नारायण मिश्रा के मुताबिक, कंपनियां अब वीजा की भारी लागत से बचने के लिए रिमोट कॉन्ट्रैक्टिंग, ऑफशोर डिलीवरी और गिग वर्कर्स पर ज्यादा भरोसा कर सकती है।

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