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ईश्वर को इंसान की कमजोरी मानता था यह शख्स, जन्मदिन पर किया जा रहा याद

आइंस्टीन के भौतिक शास्त्र के नियमों की तो दुनिया कायल है लेकिन ईश्वर को लेकर वो क्या सोचते थे यह भी हर कोई जानना चाहता है।

By Digpal SinghEdited By: Updated: Thu, 14 Mar 2019 10:43 AM (IST)
ईश्वर को इंसान की कमजोरी मानता था यह शख्स, जन्मदिन पर किया जा रहा याद
न्यूयॉर्क। बिखरे से सफेद बाल, घनी मूछें और लंबी सी जीभ बाहर निकाले हुए एक शख्स। कुछ याद आया? जी हां, बात अलबर्ट आइंस्टीन की हो रही है। आइंस्टीन की बात इसलिए हो रही है, क्योंकि आज यानि 14 मार्च को उनका जन्मदिन है। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के मुताबिक, महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी के उल्म में हुआ था। आइंस्टीन एक भौतिकशास्त्री थे, उन्होंने रिलेटिविटी की थ्योरी के बारे में दुनिया को समझाया था। अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने जीवन में बहुत से अविष्कार किये, कुछ सिद्धांतों के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार से नवाजा गया था।

कल्पना की शक्ति पर बोले आइंस्टीन
आइंस्टीन की कही हुई कुछ बातें आज भी दुनियाभर के लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। इनमें 'कल से सीखें, आज के लिए जिएं, कल के लिए आशा करें और सबसे बड़ी बात, सवाल करने की आदत को कभी भी न छोड़ें' और 'तर्क आपको A से B तक ले जाएगा जबकि कल्पना के सहारे आप कहीं भी जा सकते हैं' बहुत प्रचलित हैं।

ईश्वर पर लिख डाली चिट्ठी
आइंस्टीन के भौतिक शास्त्र के नियमों की तो दुनिया कायल है, लेकिन ईश्वर को लेकर वो क्या सोचते थे यह भी हर कोई जानना चाहता है। आइंस्टीन ने अपनी मृत्यु से एक साल पहले तीन जनवरी, 1954 को यह पत्र जर्मनी के दार्शनिक एरिक गटकाइंड को लिखा था। इस चिट्ठी में ईश्वर और धर्म के बारे में बातें लिखी थीं।

20 करोड़ में बिका आइंस्टीन का पत्र
ईश्वर और धर्म के बारे में लिखा गया आइंस्टीन का यह पत्र पिछले साल अमेरिका में नीलाम किया गया। नीलामी में यह पत्र 28.9 लाख डॉलर (करीब 20 करोड़ रुपये) में बिका। नीलामी घर क्रिस्टी ने इस बारे में कहा कि पत्र में आइंस्टीन ने धर्म और दर्शन को लेकर अपने विचारों को पूरी तरह व्यक्त किया है, जो इसे महत्वपूर्ण बनाता है। गटकाइंड ने आइंस्टीन को अपनी किताब 'चूज लाइफ: द बाइबलिकल कॉल टू रिवॉल्ट' पढ़ने को दी थी।

मनुष्य की कमजोरी का प्रतीक है ईश्वर - आइंस्टीन
इस किताब को पढ़ने के बाद आइंस्टीन ने पत्र में उन्हें लिखा, 'ईश्वर शब्द मेरे खयाल में और कुछ नहीं बल्कि मनुष्य की कमजोरी का प्रतीक है। जबकि बाइबिल प्राचीन दंतकथाओं का संग्रह है। कोई भी बात मेरे इन विचारों को बदल नहीं सकती।'

अपने इस पत्र में वह 17वीं शताब्दी के दार्शनिक बारुच स्पिनोजा से कुछ हद तक सहमत होने की बात भी कहते हैं। स्पिनोजा किसी मानव रूपी ईश्वर में नहीं बल्कि प्रकृति की खूबसूरती के लिए जिम्मेदार और सृष्टि को संचालित करने वाले ईश्वर में विश्वास करते थे, जो निराकार है।