मस्तिष्क पर बुरा असर डाल रहा वायु प्रदूषण, बच्चे होते हैं सबसे ज्यादा प्रभावित
गर्भावस्था जन्म से तीन साल तीन साल से छह साल और छह साल से एमआरआइ तक की गतिविधियों पर अध्ययन किया गया। मौजूद ध्वनि प्रदूषण के स्तर के आधार पर भी शोध किया गया। 12 वर्ष की उम्र में आराम की स्थिति में प्रतिभागियों को एमआरआइ के लिए बुलाया गया।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 20 Jun 2022 03:15 PM (IST)
वाशिंगटन, एएनआइ : विश्व में प्रदूषण का बढ़ता स्तर पर्यावरण, पशु-पक्षी व मनुष्यों के लिए दिनोंदिन चुनौती बनता जा रहा है। इसमें बहुत हद तक जिम्मेदार मानवीय गतिविधियां ही हैं। अन्य प्रदूषणों की तरह वायु प्रदूषण कई प्रकार से हमारी कार्यक्षमता और स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। इस दिशा में एक और चिंताजनक बात सामने आई है। बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फार ग्लोबल हेल्थ के नए अध्ययन से पता चलता है कि वायु प्रदूषण की चपेट में आने से मानव मस्तिष्क की कार्यक्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। जीवन के शुरुआती वर्ष में अगर वायु प्रदूषण से संपर्क अधिक हो तो यह गंभीर चिंता का विषय हो सकता है। यातायात से संबंधित वायु प्रदूषण विश्वभर में लोगों को तेजी से प्रभावित कर रहा है।
बच्चे होते हैं सबसे ज्यादा प्रभावित : वरिष्ठ शोधार्थी मोनिका जुक्सन के मुताबिक, प्रदूषण का सर्वाधिक असर बच्चों पर पड़ता है। अपने अपरिपक्व पाचनतंत्र और विकासशील मस्तिष्क के कारण वे बेहद संवेदनशील होते हैं और प्रदूषण का जोखिम भी उन पर अधिक होता है। यह देखा गया है कि बाल्यावस्था में मस्तिष्क संरचना पर यातायात संबंधी प्रदूषण व्यापक असर डालता है।इन सवालों का लगाया पता : इस शोध के लिए टीम ने चुंबकीय तकनीक का इस्तेमाल कर यह पता लगाने की कोशिश की कि वायु और ध्वनि प्रदूषण के उच्च स्तर का मस्तिष्क संरचना पर कितना असर पड़ता है। यह भी देखा गया कि मस्तिष्क के विभिन्न संरचनाओं को प्रदूषण के बढ़ते स्तर से कितना नुकसान होता है।
2197 बच्चों के डाटा का किया अध्ययन : शोध प्रमुख ने बताया कि एमआरआइ के उपयोग ने मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली की जांच ने महामारी विज्ञान विभाग के लिए नई संभावनाएं खोली हैं। टीम ने 2197 बच्चों के डाटा का इस्तेमाल किया। नीदरलैंड के राटरडैम निवासी इन बच्चों का जन्म अप्रैल, 2002 और जनवरी, 2006 के बीच हुआ था। विज्ञानियों ने लैंड यूज माडल का उपयोग करते हुए नाइट्रोजन आक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम के स्तर का अनुमान लगाया।
यह निकाला निष्कर्ष : शोधकर्ताओं ने अध्ययन का निष्कर्ष निकला कि जन्म से तीन साल और तीन से छह साल तक नाइट्रोजन आक्साइड और पीएम2 ने मस्तिष्क के विभिन्न भागों पर कार्यात्मक असर डाला। किशोरावस्था के दौरान भी प्रदूषण ने बच्चों के मानसिक विकास पर नकारात्मक भूमिका अदा की। जन्म से लेकर तीन वर्ष की आयु तक बच्चों के मानसिक विकास पर वायू प्रदूषण के उच्च स्तर ने व्यापक प्रभाव डाला। इस संवेदनशील अवधि में ब्लैक कार्बन सबसे अधिक प्रदूषक था, जो मस्तिष्क कनेक्टिविटी परिवर्तनों से जुड़ा था।
डीजल वाहन बड़ा कारण : शोध टीम के अनुसार यूरोपीय देशों में ब्लैक कार्बन और नाइट्रोजन आक्साइड गैसों का प्रमुख स्रोत डीजल वाहन हैं। घर के अंदर ध्वनि और वायु प्रदूषण का स्तर कम होता है, लेकिन सड़क और सार्वजनिक स्थलों पर इसका स्तर तेजी से बढ़ता है जो मानव मस्तिष्क और इसकी कार्यक्षमता को तेजी से प्रभावित करता है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि शोर बच्चों के संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करता है। इससे बच्चों की सीखने की क्षमता भी प्रभावित होती है।