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वैज्ञानिकों और डाक्‍टरों ने मिलकर एक बच्‍ची के जन्‍म से पूर्व ही गर्भ में किया उसकी दुर्लभ बीमारी का इलाज

अमेरिका और कनाडा के डाक्‍टरों और वैज्ञानिकों ने मिलकर एक बच्‍ची की दुलर्भ बीमारी का इलाज गर्भ में ही करने में सफलता पाई है। डाक्‍टरों के लिए ये मुश्किल था लेकिन इसकी सफलता से एक नई उम्‍मीद जरूर बंध गई है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 12 Nov 2022 04:15 PM (IST)
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आयला का इलाज उसकी मां के गर्भ में ही कर दिया गया था।
नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। अमेरिका और कनाडा के वैज्ञानिकों ने वो कर दिखाया है जो अब से पहले कभी नहीं हुआ था। उन्‍होंने जन्‍म से पहले ही एक बच्‍ची की दुर्लभ जेनेटिक बीमारी का इलाज कर ये कारनामा किया है। इसके लिए उन्‍होंने एकदम नई तकनीक का इस्‍तेमाल किया। जिस बच्‍ची आयला बशीर का वैज्ञानिकों ने इलाज किया है उसकी दो बहनों की इस बीमारी ने जान ले ली थी। ये बच्‍ची कनाडा के ओंटारियो की है और अब ये डेढ़ वर्ष की है। इस तरह से इलाज पाने वाली आयला दुनिया की पहली बच्‍ची है। उसका परिवार एक ऐसी जेनेटिक बीमारी से ग्रसित है जिसमें शरीर में प्रोटीन नहीं बनते हैं, जिसकी वजह से रोगी की जान चली जाती है। आयला के पिता जाहिद बशीर और उसकी मां सोबिया कुरैशी को इस वजह से अपनी दो बच्चियों की मौत पर रोना पड़ा था। उनकी पहली बेटी जारा ढाई और दूसरी 8 माह में ही गुजर गई थी।

पूरी तरह से ठीक है बच्‍ची 

हालांकि आयला को मिले इलाज ने उसकी जान बचा ली और अब वो पूरी तरह से स्‍वस्‍थ है। डाक्‍टरों ने जिस तकनीक से आयला का इलाज किया वो पहली बार दुनिया के सामने आई है। इसकी पूरी रिपोर्ट न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन में पब्लिश हुई है। इसमें कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिले डॉक्टरों के सहयोग से ही ये इलाज संभव हुआ। आयला के इलाज से डाक्टर उत्साहित तो हैं लेकिन फिर भी वो इसको एक अनिश्चित स्थिति मानते हैं। उनका कहना है कि इस रिसर्च ने भ्रूण-पद्धति से इलाज के नए रास्ते खोल दिए हैं। ओटावा अस्पताल की डॉ. कैरेन फुंग-की-फुंग का कहना है कि इस तरह के मामलों में जन्‍म के बाद खतरा बढ़ जाता है। इसलिए जन्‍म के बाद इलाज भी मुश्किल होता है। नई रिसर्च से एक नई उम्‍मीद बंधी है।

इलाज को उत्‍साहित थे डाक्‍टर 

डाक्‍टर फुंग ने इस इलाज के लिए एक तकनीक का इस्‍तेमाल किया। इस तकनीक को अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर मेटर्नल-फीटर प्रीसिजन मेडिसन की सह-निदेशक और बाल रोग विशेषज्ञ डाक्‍टर टिपी मैकिंजी ने विकसित किया है। मैकिंजी का कहना है कि आयला का इलाज करते हुए सभीकाफी उत्‍साहित थे। उनके मुताबिक ऐसा नहीं है कि पहले कभी गर्भ में पल रहे बच्‍चे का इलाज नहीं किया गया है। सर्जरी के जरिए स्पिना बिफीडा जैसी बीमारी का इलाज किया गया है। इसके अलावा गर्भनाल के जरिए बच्‍चे को रक्त भी चढ़ाया गया है। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि गर्भ में पल रहे बच्‍चे को दवा दी गई हो।

पहली बार दी गई दवा 

डाक्‍टरों ने गर्भनाल के जरिए आयला महत्‍वपूर्ण एंजाइम दिए। आयला की मां के गर्भ धारण करने के 6 माह बाद ये प्रक्रिया तीन बार दोहराई गई। इस इलाज में अमेरिका के डरहम की ड्यूक यूनिवर्सिटी और सिएटल की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक भी शामिल हुए। आपको बता दें कि जिस तरह की बीमारी आयला की दो बहनों की थी उसमें स्थिति काफी खराब होती है। जन्‍म के कुछ वक्त बाद शरीर में थेरेपी काम करना बंद कर देती है जिससे मौत हो जाती है।  

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