कहीं झूठी साबित न हो जाए अमेरिका की 'Moon Mission' की कहानी, दांव पर लगी साख
रूस की रोस्कोसमोस अंतरिक्ष एजेंसी की तरफ से कहा गया है कि उनका देश चांद पर एक मिशन भेजने वाला है। जिसका काम यही पता लगाना है कि क्या वास्तव में अपोलो 11 चांद की सतह पर उतरा था या फिर यह केवल एक नाटक था।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 26 Nov 2018 07:16 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। 21 जुलाई 1969 का दिन पूरी दुनिया में खासा अहमियत रखता है। इसी दिन अमेरिका के एयरोनॉटिकल इंजीनियर और सेना के पायलट नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर कदम रखा था। उनके साथ चांद की धरती पर उतरने वालों में बज एल्ड्रिन भी थे। अपोलो 11 के साथ चांद की ओर रवाना होने वालों में इन दोनों के अलावा माइकल कॉलिन्स भी थे, जो चांद की सतह पर न उतरकर इसकी परिक्रमा कर रहे थे। अमेरिका आज तक इस मिशन को लेकर दुनियाभर से वाहवाही बटोरता आ रहा है। इस मिशन को अंतरिक्ष के रहस्यों को खोजने में सबसे बड़ा पड़ाव भी माना गया है। लेकिन अब वर्षों बाद एक बार फिर से उसके इस मिशन पर सवाल खड़े हो रहे हैं। वर्षों बाद इस मिशन को कई सवाल उठ खड़े हुए हैं, जिसको लेकर अब रूस इस मिशन से जुड़े तथ्यों की जांच तक करने की बात कह रहा है।
रूस सही निकला तो क्या होगा
रूस की रोस्कोसमोस अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख दिमित्री रोगोजिन की तरफ से कहा गया है कि उनका देश चांद पर एक मिशन भेजने वाला है। जिसका काम यही पता लगाना है कि क्या वास्तव में अपोलो 11 चांद की सतह पर उतरा था या फिर यह केवल एक नाटक था जो अमेरिका ने रूस से बदला लेने और पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए रचा था। इसको लेकर दिमित्री रोगोजिन ने ट्वीट किया है। दरअसल अमेरिका का यह मिशन शुरू से ही रहस्य और सवालों में घेरे में रहा है। इस मिशन को लेकर लोगों की भी अलग-अलग राय है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि यदि रूस ने इस मिशन को गलत या झूठा साबित कर दिया तो क्या होगा। ऐसे में अमेरिका की साख को बट्टा लगने से लेकर चांद को लेकर कई तरह की थ्योरी भी झूठी साबित हो सकती हैं।
रूस की रोस्कोसमोस अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख दिमित्री रोगोजिन की तरफ से कहा गया है कि उनका देश चांद पर एक मिशन भेजने वाला है। जिसका काम यही पता लगाना है कि क्या वास्तव में अपोलो 11 चांद की सतह पर उतरा था या फिर यह केवल एक नाटक था जो अमेरिका ने रूस से बदला लेने और पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए रचा था। इसको लेकर दिमित्री रोगोजिन ने ट्वीट किया है। दरअसल अमेरिका का यह मिशन शुरू से ही रहस्य और सवालों में घेरे में रहा है। इस मिशन को लेकर लोगों की भी अलग-अलग राय है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि यदि रूस ने इस मिशन को गलत या झूठा साबित कर दिया तो क्या होगा। ऐसे में अमेरिका की साख को बट्टा लगने से लेकर चांद को लेकर कई तरह की थ्योरी भी झूठी साबित हो सकती हैं।
अंतरिक्ष में रूस का वर्चस्व
आपको यहां पर ये भी बता दें कि रूस और अमेरिका के बीच वर्षों से एक प्रतियोगिता चली आ रही है। यह है अपने को एक कदम आगे दिखाने की प्रतियोगिता। जहां तक अंतरिक्ष कार्यक्रम की बात है तो इसमें रूस का वर्चस्व पहले भी था और आज भी है। रूस ने ही पहली बार यूरी गागरिन के रूप में किसी मानव को धरती के पार अंतरिक्ष में भेजा था। उसने ही पहली बार धरती से बाहर जानवरों को भेजा था। अंतरिक्ष मिशन में उसका कोई सानी पहले भी नहीं था और आज भी नहीं है। इस बात का एक सुबूत ये भी है कि वर्तमान में अमेरिका अपने अंतरिक्ष मिशन के लिए रूस की मदद ले रहा है। रूस से पिछड़ने के बाद अमेरिका का ऐलान
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब सोवियत संघ अंतरिक्ष में जाने की तैयारी करने लगा तो अमेरिका आसमान की बुलंदियों में उससे पिछड़ने लगा था। ऐसे में राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने 1961 में तय किया कि अमेरिकी विज्ञानी चांद पर पहुंचेंगे। लेकिन एक के बाद एक मिशन में अमेरिका उसके कहीं पीछे रह गया। जहां तक रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम इस क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुए हैं। अंतरिक्ष में जाने वाले पहले पुरुष से लेकर पहली महिला तक रूस की ही थी। सोवियत संघ ने 1970 के दशक के मध्य में अपने चंद्र कार्यक्रम को छोड़ दिया था क्योंकि चांद पर भेजे जाने वाले चार प्रयोगात्मक रॉकेटों में विस्फोट हो गया था।
आपको यहां पर ये भी बता दें कि रूस और अमेरिका के बीच वर्षों से एक प्रतियोगिता चली आ रही है। यह है अपने को एक कदम आगे दिखाने की प्रतियोगिता। जहां तक अंतरिक्ष कार्यक्रम की बात है तो इसमें रूस का वर्चस्व पहले भी था और आज भी है। रूस ने ही पहली बार यूरी गागरिन के रूप में किसी मानव को धरती के पार अंतरिक्ष में भेजा था। उसने ही पहली बार धरती से बाहर जानवरों को भेजा था। अंतरिक्ष मिशन में उसका कोई सानी पहले भी नहीं था और आज भी नहीं है। इस बात का एक सुबूत ये भी है कि वर्तमान में अमेरिका अपने अंतरिक्ष मिशन के लिए रूस की मदद ले रहा है। रूस से पिछड़ने के बाद अमेरिका का ऐलान
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब सोवियत संघ अंतरिक्ष में जाने की तैयारी करने लगा तो अमेरिका आसमान की बुलंदियों में उससे पिछड़ने लगा था। ऐसे में राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने 1961 में तय किया कि अमेरिकी विज्ञानी चांद पर पहुंचेंगे। लेकिन एक के बाद एक मिशन में अमेरिका उसके कहीं पीछे रह गया। जहां तक रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम इस क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुए हैं। अंतरिक्ष में जाने वाले पहले पुरुष से लेकर पहली महिला तक रूस की ही थी। सोवियत संघ ने 1970 के दशक के मध्य में अपने चंद्र कार्यक्रम को छोड़ दिया था क्योंकि चांद पर भेजे जाने वाले चार प्रयोगात्मक रॉकेटों में विस्फोट हो गया था।
आखिर कैसे होगी अमेरिका के मिशन की जांच
1959 में जब अमेरिका ने चांद पर मिशन भेजा था उसकी फुटेज से काफी कुछ हासिल हो सकता है। इसके अलावा आर्मस्ट्रांग के चांद पर मौजूद पांव के निशान इस मिशन की सारी कहानी को बयां करने के लिए काफी हैं। आपको बता दें कि चांद का अपना कोई वायुमंडल नहीं है। वहां पर न हवा है और न पानी। इसलिए यदि अमेरिका का मिशन सही होगा तो वहां पर वर्षों के बाद भी यह नील आर्मस्ट्रांग के पांव के निशान पहले की ही भांति मौजूद रहने चाहिए। इसके अलावा अमेरिका का झंडा जो वहां पर कोई वातावरण न होने के बावजूद लहरा रहा था, भी होना चाहिए। आपको यहां पर ये भी बता दें कि इस मिशन के बाद कहा गया था कि आर्मस्ट्रांग अपने साथ वहां से चांद की धूल भी लेकर आए थे। इस नमूने का असली से मिलान करने पर भी कई राज खोले जा सकते हैं।मिशन को लेकर क्या हैं दावे और क्या हैं सवाल
इस मिशन के बाद से यह दावा किया जाता रहा है कि अमेरिका ने यह सब एक विशाल से स्टूडियो में किया था। सवाल ये भी उठे कि जिस तस्वीर में अमेरिका का झंडा चांद की सतह पर लगाया गया दिखाया है वह वहां पर लहरा रहा है, जबकि वहां पर कोई वायुमंडल नहीं है। ऐसे में इसका लहराना नामुमकिन है। इसके अलावा आर्मस्ट्रांग के पैरो के निशान भी सवालों के घेरे में हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चांद पर ऐसा होना नामुमकिन है। दरअसल, जिस यान से आर्मस्ट्रांग चांद पर गए थे उसका वजन करीब 4 टन था, लेकिन उसने भी अपने निशान वहां पर नहीं छोड़े। ऐसे में आर्मस्ट्रांग के पांव के निशान अपने आप में सवाल खड़े करता है। सवालों के घेरे में मिशन से जुड़ी तस्वीरें
इस मिशन से जुड़ी तस्वीरों में चांद से तारों का न दिखाई देना भी सवाल खडे कर रहा है। वहीं सबसे ज्यादा हैरत में डालने वाली बात ये है कि इस ऐतिहासिक मिशन की मशीन के ब्लूप्रिंट्स आज तक किसी ने नहीं देखे। इस सवाल पर अमेरिका का कहना है कि वह गायब हो चुके हैं। इस मिशन से जुड़ी एक और तस्वीरों पर भी सवाल उठ रहे हैं। यह तस्वीर आर्मस्ट्रांग की है। लेकिन इसमें तस्वीर खींचने वाला इंसान दिखाई नहीं दे रहा है। जब उनके हेलमेट पर लगे शीशे में दूसरा अंतरिक्ष यात्री काफी दूर दिखाई दे रहा है। नासा का कहना है कि यदि तस्वीर दूसरे अंतरिक्ष यात्री के हेलमेट में लगे कैमरे से ली गई थी। वहीं एक सवाल ये भी है सूर्य से निकलने वाला रेडिएशन किसी भी इंसान को मार सकती है। फिर नासा इन सभी को सुरक्षित कैसे लेकर आया। नील के बयान पर भी सवाल
इन सभी के बीच चांद पर उतरने के बाद नील आर्मस्ट्रांग का दिया बयान खुदबूखुद बड़ा सवाल बन गया है। दरअसल उन्होंने कहा था कि ‘यह मानव के लिए एक छोटा कदम, लेकिन मानवजाति के लिए छलांग है।’ लेकिन इसको लेकर उनके भाई का कहना था कि इन लाइनों की वह मिशन से करीब दो माह पहले से रिहर्सल कर रहे थे।
1959 में जब अमेरिका ने चांद पर मिशन भेजा था उसकी फुटेज से काफी कुछ हासिल हो सकता है। इसके अलावा आर्मस्ट्रांग के चांद पर मौजूद पांव के निशान इस मिशन की सारी कहानी को बयां करने के लिए काफी हैं। आपको बता दें कि चांद का अपना कोई वायुमंडल नहीं है। वहां पर न हवा है और न पानी। इसलिए यदि अमेरिका का मिशन सही होगा तो वहां पर वर्षों के बाद भी यह नील आर्मस्ट्रांग के पांव के निशान पहले की ही भांति मौजूद रहने चाहिए। इसके अलावा अमेरिका का झंडा जो वहां पर कोई वातावरण न होने के बावजूद लहरा रहा था, भी होना चाहिए। आपको यहां पर ये भी बता दें कि इस मिशन के बाद कहा गया था कि आर्मस्ट्रांग अपने साथ वहां से चांद की धूल भी लेकर आए थे। इस नमूने का असली से मिलान करने पर भी कई राज खोले जा सकते हैं।मिशन को लेकर क्या हैं दावे और क्या हैं सवाल
इस मिशन के बाद से यह दावा किया जाता रहा है कि अमेरिका ने यह सब एक विशाल से स्टूडियो में किया था। सवाल ये भी उठे कि जिस तस्वीर में अमेरिका का झंडा चांद की सतह पर लगाया गया दिखाया है वह वहां पर लहरा रहा है, जबकि वहां पर कोई वायुमंडल नहीं है। ऐसे में इसका लहराना नामुमकिन है। इसके अलावा आर्मस्ट्रांग के पैरो के निशान भी सवालों के घेरे में हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चांद पर ऐसा होना नामुमकिन है। दरअसल, जिस यान से आर्मस्ट्रांग चांद पर गए थे उसका वजन करीब 4 टन था, लेकिन उसने भी अपने निशान वहां पर नहीं छोड़े। ऐसे में आर्मस्ट्रांग के पांव के निशान अपने आप में सवाल खड़े करता है। सवालों के घेरे में मिशन से जुड़ी तस्वीरें
इस मिशन से जुड़ी तस्वीरों में चांद से तारों का न दिखाई देना भी सवाल खडे कर रहा है। वहीं सबसे ज्यादा हैरत में डालने वाली बात ये है कि इस ऐतिहासिक मिशन की मशीन के ब्लूप्रिंट्स आज तक किसी ने नहीं देखे। इस सवाल पर अमेरिका का कहना है कि वह गायब हो चुके हैं। इस मिशन से जुड़ी एक और तस्वीरों पर भी सवाल उठ रहे हैं। यह तस्वीर आर्मस्ट्रांग की है। लेकिन इसमें तस्वीर खींचने वाला इंसान दिखाई नहीं दे रहा है। जब उनके हेलमेट पर लगे शीशे में दूसरा अंतरिक्ष यात्री काफी दूर दिखाई दे रहा है। नासा का कहना है कि यदि तस्वीर दूसरे अंतरिक्ष यात्री के हेलमेट में लगे कैमरे से ली गई थी। वहीं एक सवाल ये भी है सूर्य से निकलने वाला रेडिएशन किसी भी इंसान को मार सकती है। फिर नासा इन सभी को सुरक्षित कैसे लेकर आया। नील के बयान पर भी सवाल
इन सभी के बीच चांद पर उतरने के बाद नील आर्मस्ट्रांग का दिया बयान खुदबूखुद बड़ा सवाल बन गया है। दरअसल उन्होंने कहा था कि ‘यह मानव के लिए एक छोटा कदम, लेकिन मानवजाति के लिए छलांग है।’ लेकिन इसको लेकर उनके भाई का कहना था कि इन लाइनों की वह मिशन से करीब दो माह पहले से रिहर्सल कर रहे थे।