जानें, इस बार आखिर कैसे अलग था US प्रेजीडेंट ट्रंप का UNGA में दिया गया भाषण
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूएनजीए में दिए गए पहले संबोधन में ही दुनिया को कई तरह से चौंका दिया है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। यूएनजीए में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दिए भाषण की आज पूरे विश्व में चर्चा हो रही है। इसको लेकर सभी की अपनी अलग-अलग राय है। अमेरिका के कई नेताओं ने इसकी जमकर सराहना की है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने इसको अभूतपूर्व करार दिया है। उन्होंने यहां तक कहा कि इस तरह का भाषण इससे पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस मंच पर नहीं दिया है। राष्ट्रपति ट्रंप की यूएनजीए में पहली स्पीच थी। इस स्पीच के कुछ खास और बेहद दिलचस्प बिंदु थे जिनपर वहां मौजूद नेताओं की निगाह लगी थी। इसमें सबसे पहला बिंदु उत्तर कोरिया का था, दूसरा बिंदु अमेरिका के संदर्भ में था और तीसरा पूरी दुनिया का लेकर था। इसके अलावा एक और अहम बिंदु का जिक्र राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने भाषण में किया जो संयुक्त राष्ट्र में सुधार को लेकर था, इस विषय को भारत भी कई बार और कई मंचों से उठाता रहा है।
संप्रभुता का जिक्र
राष्ट्रपति ट्रंप के संबोधन पर बातचीत करते हुए ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने साफतौर पर कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह भाषण उनके पूर्व में दिए गए राष्ट्रपतियों के भाषणों से बिल्कुल अलग था। इस भाषण में उन्होंने अमेरिका की संप्रभुता का जिक्र कर सभी को पहली बार में चौंका दिया। प्रोफेसर पंत का कहना था कि इससे पहले सभी अमेरिकी राष्ट्रपति इस मंच से पूरी दुनिया की बात करते थे, लेकिन ऐसा पहली बार देखने को मिला कि जब किसी राष्ट्रपति ने यहां से अपने देश की संप्रभुता की बात की हो। हालांकि दूसरी ओर देखें तो भारत भी बार-बार संप्रभुता की बात करता आया है। लेकिन किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के मुख से ऐसा पहली बार हुआ। उनका कहना था कि इसी वजह से उनके इस भाषण की कुछ नेताओं ने आलोचना भी की है। पंत का कहना था कि इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति अपने भाषण में मूलत: व्यापार और जलवायु परिवर्तन की बात करते आए थे। पंत यह भी मानते हैं कि ट्रंप ने अपने पूर्व के राष्ट्रपतियों की पॉलिसी से अलग हटते हुए यह भाषण दिया है।
अमेरिकन फर्स्ट
ट्रंप के भाषण में संप्रभुता की बात करना कुछ लोगों की सोच से अलग हो सकता है, लेकिन यहां पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि डोनाल्ड ट्रंप ने इसी सोच के साथ राजनीति में कदम रखा था। इस बारे में प्रोफेसर पंत का कहना था कि ट्रंप ने अपने चुनाव कैंपेन के दौरान से ही अमेरिकन फर्स्ट की बात की थी। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने यह साफ कर दिया था कि उनके लिए अमेरिका सबसे पहले है और दुनिया इसके बाद आती है, लिहाजा उनकी पॉलिसी पहले अमेरिकियों के हितों को ध्यान में रखकर होंगी। ऐसा दिखाई भी दिया है। पंत का मानना है कि ट्रंप का अपने भाषण में संप्रभुता की बात करना भी इसी बात को इंगित करता है।
इस मुद्दे पर अलग है भारत का रुख
राष्ट्रपति ट्रंप की अगर पूरी स्पीच पर ध्यान दिया जाए तो इसको भारत के परिप्रेक्ष्य में बेहतर माना जा सकता है। अपनी इस स्पीच में ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जिन बातों को कहा है उसका जिक्र भारत भी करता आ रहा है। भारत चाहता है कि यूएनएससी में भारत को सदस्यता मिलनी चाहिए। वहीं दूसरी तरफ इसमें शामिल सदस्य देश इसको लेकर अब तक गोलमोल रहे हैं। हालांकि कुछ मुद्दे जिसमें पारदर्शिता जैसी चीजें शामिल हैं उसमें भारत अमेरिका का समर्थन करता है। यहां पर यह भी ध्यान में रखना होगा कि संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में भारत सबसे अधिक जवान भेजता है। इस लिहाज से भारत चाहता है कि उसके इससे संबंधित फैसलों में शामिल किया जाना चाहिए। वहीं अमेरिका चाहता है कि जब संयुक्त राष्ट्र में उसकी तरफ से सबसे अधिक राशि आती है तो उसको तवज्जो दी जानी चाहिए। हालांकि पंत अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के इस भाषण को भारत के लिहाज से सकारात्मक मानते हैं।
उत्तर कोरिया पर ट्रंप का रुख
ट्रंप ने अपने भाषण में इस बार उत्तर कोरिया के खिलाफ बेहद आक्रामक रुख इख्तियार करते हुए पूरी दुनिया को चौंका दिया। ऐसा इसलिए था कि इससे पहले किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने उत्तर कोरिया को लेकर ऐसा आक्रामक भाषण नहीं दिया था। प्रोफेसर पंत भी मानते हैं कि ट्रंप का यहां पर रुख बेहद आक्रामक था। हालांकि उनका यह भी कहना है कि इस रुख के जरिए वह उत्तर कोरिया को साफतौर पर चेतावनी देना चाहते थे कि अगर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो अमेरिका के पास सभी विकल्प खुले हैं। हालांकि पंत का यह भी कहना है कि अमेरिकी इस बारे में पूर्व के राष्ट्रपतियों की पॉलिसी से काफी नाराज हैं। अमेरिकियों का मानना है कि अफगानिस्तान समेत दूसरी जगहों पर अमेरिकी जवानों को नहीं भेजा जाना चाहिए। इस लिहाज से वह सैन्य अभियानों के खिलाफ हैं।