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जानें, आखिर इजरायल और फलस्तीन के लिए क्यों अहम है यरूशलम, क्या है विवाद

अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप द्वारा यरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्‍यता देने के मुद्दे पर अरब देशों ने उन्‍हें सख्‍त चेतावनी दी है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 06 Dec 2017 05:47 PM (IST)
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जानें, आखिर इजरायल और फलस्तीन के लिए क्यों अहम है यरूशलम, क्या है विवाद

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप द्वारा यरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्‍यता देने के मुद्दे पर अरब देशों ने उन्‍हें सख्‍त चेतावनी दी है। तुर्की ने इस बाबत अमेरिका को सख्‍त लहजे में चेतावनी तक दे डाली थी। इस बीच अमेरिका ने अपने नागरिकों को इजरायल की निजी यात्रा पर जाने से बचने की चेतावनी दी है। एक संदेश में कहा गया है कि अमेरिकी इजरायल की यात्रा पर न जाए क्‍योंकि वहां पर प्रदर्शन हो सकते हैं।

क्‍यों‍ है विरोध

लेकिन इन सभी के बीच एक बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर यरूशलम को लेकर देशों में इतना विरोध क्‍यों है। यह बात जगजाहिर है कि यरूशलम को लेकर इजरायल और फलस्‍तीन दोनों ही काफी संवेदनशील रहे हैं। इसकी एक नहीं कई वजह हैं। दरअसल यरूशलम ईसाइयों, मुस्लिमों और यहूदियों के लिए बेहद पवित्र जगह है। यही वजह है कि चारों तरफ दीवारों से घिरे इस शहर को जिन्हें दुनिया के पवित्रतम स्थलों में शुमार किया जाता है। वैसे भी यह दुनिया के सबसे पुराने शहरों में एक है। हिब्रू में इसे येरुशलाइम और अरबी में अल-कुद्स के नाम से जाना जाता है।

यरूशलम में नहीं किसी देश का दूतावास

एक तरफ जहां इजरायल यरुशलम को अपनी राजधानी बताता है, वहीं दूसरी तरफ फलस्‍तीन भी इजरायल को अपने भविष्य के राष्ट्र की राजधानी बताते हैं। संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के ज्यादातर देश पूरे यरुशलम पर इजरायल के दावे को मान्यता नहीं देते। 1948 में इजरायल ने आजादी की घोषणा की थी और एक साल बाद यरुशलम का बंटवारा हुआ था। बाद में 1967 में इजरायल ने 6 दिनों तक चले युद्ध के बाद पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया। 1980 में इजरायल ने यरुशलम को अपनी राजधानी बनाने का ऐलान किया था। लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पास करके पूर्वी यरुशलम पर इजरायल के कब्जे की निंदा की। यही वजह है कि यरुशलम में किसी भी देश का दूतावास नहीं है। जो भी देश इजरायल को मान्यता देते हैं उनके दूतावास तेल अवीव में हैं। तेल अवीव में 86 देशों के दूतावास हैं।

आईये अब जानते हैं कि आखिर मु‍स्लिम, यहूदियों और ईसाईयों के लिए यह क्‍यों है खास।

ईसाईयों के लिए है खास

यरूशलम के एक हिस्‍से में दुनिया का सबसे पुराना आर्मेनियाई केंद्र है। इसके अलावा इसके बड़े हिस्‍से में सेंट जेम्‍स चर्च और मठ हैं। यहां पर स्थित पवित्र सेपुलकर चर्च दुनियाभर के ईसाइयों के लिए बेहद ख़ास है। यह इसलिए भी बेहद खास है क्‍योंकि ज्‍यादातर ईसाई परंपराओं के अनुसार, ईसा को यहीं सूली पर लटकाया गया था। इसे कुछ लोग गोलगोथा कहते हैं या कैलवेरी की पहाड़ी भी कहकर पुकारते हैं। इसके अलावा यहीं पर वह जगह भी है जहां ईसा फिर जीवित हुए थे। दुनियाभर से ईसाई यहां आकर ईसा के खाली मकबरे की यात्रा करते हैं और अपने लिए सुख की कामना करते हैं।

मुस्लिमों के लिए पवित्र

मुस्लिमों के लिए यह इसलिए बेहद खास है क्‍योंकि यहां पर पवित्र गुंबदाकार 'डोम ऑफ़ रॉक' यानी कुब्बतुल सखरह और अल-अक्सा मस्जिद है। यह एक पठार पर स्थित है जिसे मुस्लिम हरम अल शरीफ या पवित्र स्थान कहते हैं। इसको इस्‍लाम की तीसरी सबसे पवित्र जगह माना गया है। इसकी देखरेख का जिम्‍मा वक्‍फ के हवाले है। मुस्लिम मानते हैं कि पैगंबर अपनी यात्रा के दौरान मक्का से यहां आए थे। यहां पर उन्‍होंने सभी पैगंबरों से दुआ की थी। कुब्बतुल सखरह से कुछ ही की दूरी पर एक आधारशिला रखी गई है जिसके बारे में मुस्लिमों का मत है कि मोहम्मद यहीं से स्वर्ग की ओर गए थे। रमजान के हर शुक्रवार को यहां पर काफी संख्‍या में मुस्लिम नमाज के लिए एकत्रित होते हैं।

यहूदियों के लिए होली ऑफ होलीज

यहूदियों की यदि बात की जाए तो यहां पर उनकी भी सबसे पवित्र जगह है जिसे वह कोटेल या पश्चिमी दीवार कहते हैं। माना जाता है कि यहां कभी पवित्र मंदिर खड़ा था, ये दीवार उसी बची हुई निशानी है। यहां मंदिर में अंदर यहूदियों की सबसे पवित्रतम जगह ''होली ऑफ होलीज'' है। यहूदी मानते हैं यहीं पर सबसे पहली उस शिला की नींव रखी गई थी, जिस पर दुनिया का निर्माण हुआ, जहां अब्राहम ने अपने बेटे इसाक की कुरबानी दी। पश्चिमी दीवार, ''होली ऑफ होलीज'' की वो सबसे करीबी जगह है, जहां से यहूदी प्रार्थना कर सकते हैं। यहां हर साल लाखों लोग आते हैं।

अरब नेताओं की ट्रंप को चेतावनी

अरब नेताओं ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को चेतावनी दी है कि अगर इजरायल के तेल अवीव से अमरीकी दूतावास को यरूशलम ले जाया गया तो उसके गंभीर परिणाम होंगे। सऊदी अरब के सुल्तान सलमान ने अमरीकी नेता से कहा कि ऐसे किसी भी कदम से दुनियाभर के मुसलमान भड़क सकते हैं। सुल्‍तान का कहना है कि दूतावास के स्थानांतरण या फिर यरूशलम को इसराइल की राजधानी के रूप में स्वीकार करने से दुनियाभर में गंभीर प्रतिक्रिया हो सकती है। इस बीच अमरीकी सरकार के कर्मचारियों और उनके परिवारवालों से कहा गया है कि वो निजी यात्रा पर येरूशलम के पुराने शहर और पश्चिमी तट के इलाकों में सुरक्षा कारणों से न जाएं क्योंकि वहां प्रदर्शन की योजना बनाई गई है।

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