COP27: पर्यावरण सम्मेलन में जो बाइडन का आह्वान- स्पष्ट घोषणा न करने से पैदा हुए असंतोष
मिस्त्र पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरणीय चर्चा में विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा जो देश विकासशील देशों को सहायता देने की स्थिति में हैं वे आगे बढ़कर पर्यावरण संबंधी निर्णयों को क्रियान्वित करें।
By AgencyEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Sat, 12 Nov 2022 04:06 AM (IST)
शर्म अल-शेख, एजेंसी। मिस्त्र पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरणीय चर्चा में विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, जो देश विकासशील देशों को सहायता देने की स्थिति में हैं वे आगे बढ़कर पर्यावरण संबंधी निर्णयों को क्रियान्वित करें। इससे पर्यावरण की समस्याओं का निराकरण करते हुए प्रगति का पथ तैयार होगा।
बाइडन ने किया आह्वान
बाइडन ने यह आह्वान उस समय किया है जब अमेरिकी संसद वह ऐतिहासिक कानून बनाने की प्रक्रिया में लगी हुई है जिसके लागू होने पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था से पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल खत्म होना शुरू हो जाएगा। इस कानून के अनुसार अमेरिका 370 अरब डालर के व्यय वाली व्यवस्था बनाएगा जिसमें स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल करने वाले कारखानों को प्रोत्साहित किया जाएगा और प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योगों को हतोत्साहित किया जाएगा।
पर्यावरण नीति बनाने पर बाइडन का जोर
बता दें कि हानिकारक गैसों का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने के कारण अमेरिका इस समय आलोचनाओं के केंद्र में है। बाइडन ने कहा, हम अच्छी पर्यावरण नीति बनाएंगे, जो अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छी नीति होगी। लेकिन बाइडन ने विकासशील देशों और गरीब देशों के लिए किसी विशेष योजना या सहायता की घोषणा नहीं की। इससे चर्चा में उपस्थित विकासशील देशों के प्रतिनिध असंतुष्ट नजर आए। असंतुष्टों का मानना है, जब अमेरिका और अन्य संपन्न देश पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं तो उन्हीं की जिम्मेदारी है कि वे दुनिया को स्वच्छ बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। पर्यावरण सुधार के लिए शेष विश्व को आर्थिक और तकनीक सहायता दें।क्या है सीओपी 27बता दें कि जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही दुनिया के नजरिये से देखें तो संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में मिस्र के तटीय शहर शर्म अल-शेख में आयोजित विश्व जलवायु सम्मेलन (कांफ्रेंस आफ पार्टीज यानी सीओपी 27) एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। खास तौर से यह देखते हुए कि बीते एक साल में भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर कई यूरोपीय देशों ने भीषण गर्मी और बाढ़ की ऐतिहासिक त्रासदी झेली है।