US Navy 7th Fleet: जानें क्या है अमेरिका का सातवां बेड़ा, भारत की समुद्री सीमा के अतिक्रमण पर जानिए अमेरिकी नौसेना का जवाब
US Navy 7th Fleet अमेरिका का सातवां बेड़ा एक बार फिर सुर्खियों में है। शीत युद्ध के दौरान भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इस बेड़े का नाम आया था। इसमें पूर्व सोवियत संघ भारत के साथ था और अमेरिका ने भारत के खिलाफ अपने सातवें बेड़े की धौंस दिखाई थी।
By Ramesh MishraEdited By: Updated: Sun, 11 Apr 2021 10:03 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। US Navy 7th Fleet: अमेरिकी नौसेना का सातवां बेड़ा एक बार फिर सुर्खियों में है। शीत युद्ध के दौरान भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इस बेड़े का नाम आया था। इस युद्ध में पूर्व सोवियत संघ भारत के साथ खड़ा था और अमेरिका ने भारत के खिलाफ अपने सातवें बेड़े की धौंस दिखाई थी। एक बार फिर यह सातवां बेड़ा भारतीय परिपेक्ष्य के चलते सुर्खियों में आया है। दरअसल, अमेरिका के सातवें बेड़े में शामिल नौसैनिक जहाज जॉन पॉल जोन्स ने भारत के लक्ष्यद्वीप समूह के नजदीक 130 समुद्री मील पश्विम में भारत के विशिष्ठ आर्जिक जोन में अपने एक अभियान को अंजाम दिया है। खास बात यह है कि ऐसा करते समय अमेरिकी नौसेना ने भारत से इसकी इजाजत नहीं ली। इस पर भारत ने अपनी कड़ी आपत्ति जताई है। आखिर अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े की क्या खासियत है। भारत ने किस अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।
अमेरिकी नौसेना का सातवें बेड़े का दम अमेरिकी नौसेना का सातवां बेड़ा का नाम आते ही दुश्मन की जमीन खिसक जाती है। अमेरिका का सातवां बेड़ा अमेरिकी नौसेना का सबसे बड़ा अग्रिम तैनाती वाला बेड़ा है। इस बेड़े में 50 से 70 जहाज और पनड़ब्बियां शामिल हैं। इस बेड़े में करीब 150 हवाई जहाज सम्मलित है। इसमें करीब बीस हजार नौसैनिक हरदम मुस्तैद रहते हैं। नौसेना की यह बड़ी और शक्तिशाली टीम समुद्री क्षेत्र में अमेरिकी हितों की रक्षा करती है। 75 वर्षों से अधिक यह सातवां बेड़ा भारतीय हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बनाए हुए है। इसकी सबसे बड़ी सक्रियता पश्चिमी प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में है। सातवें बेड़े का कार्यक्षेत्र 124 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक है। यह भारत-पाकिस्तान के क्षेत्र मे फैला है। इसके संचालन क्षेत्र में 36 देश शामिल हैं। इसमें दुनिया की आधी आबादी शामिल है।
भारत ने जताई अपनी आपत्ति, दिया ये तर्क
- अमेरिकी नौसेना के इस कदम पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। भारत का तर्क है कि उसकी इजाजत के बिना कोई विदेशी जहाज भारत के विशिष्ट आर्थिक जोन से नहीं गुजर सकता है। विदेश मंत्रालय ने समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन पर भारत सरकार की स्थिति को साफ किया है। सरकार ने कहा है कि विशेष आर्थिक क्षेत्र में सैन्य अभ्यास या युद्धाभ्यास करने के लिए किसी देश को इजाजत नहीं देता है। भारत ने कहा है कि उसने अमेरिका को अपनी चिंताओं के बारे में अवगत करा दिया है।
- दरअसल, प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी पर अमेरिका और भारत के अलग-अलग तर्क और मान्यताएं हैं। दोनों देशों के बीच मतभेद की यही वजह है। उन्होंने कहा कि ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह किस तरह का अभ्यास था। क्या इस अभ्यास के दौरान अमेरिकी नौसेना की ओर से गोलीबारी हुई है।
- उन्होंने कहा कि विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र से जिससे आप रोज गुजरते हैं, अभ्यास के दौरान संबंधित देश को सुचित करना होता है। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि अभ्यास के दौरान गोलीबारी होती है। इसके लिए बाकयदा सूचना दी जाती है और नोटिस जारी करना होता है। उन्होंने कहा कि यह मामला चकित करने वाला है। खासकर तब जब भारत और अमेरिका के घनिष्ठ संबंध है। दोनों क्वाड समूह के सदस्य हैं। दोनों एक दूसरे के सहयोगी है। दोनों देश हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के दखल को रोकने के लिए मिल कर काम करते हैं।
क्या है अमेरिका की दलील
अमेरिका का कहना है कि उसके सातवें बेड़े की कार्रवाई अंतराष्ट्रीय कानून के अनुरूप है। सातवें बेड़े ने कहा है कि अमेरिकी नौसेना हर दिन हिंद महासागर क्षेत्र में काम करती है। अमेरिका ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार नौसेना को जहां जाने की अनुमति होगी, वहां अमेरिका उड़ान भरेगा, जहाज लेकर जाएगा। अमेरिकी नौसेना ने कहा कि भारत का दावा अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत असंगत है। बयान में आगे कहा है कि उन्होंने इस तरह का अभ्यास पहले भी किया है और भविष्य में करते रहेंगे। फ्रीडम ऑफ नेविगेशन ऑपरेशन न तो एक एक देश के बारे में हैं और न ही राजनीतिक बयान देने के बारे में।