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भविष्‍य के विमानों में नहीं होंगे इंजन और प्रोपेलर, बदल जाएगी पूरी थ्‍योरी

भविष्य के विमान में प्रोपेलर और टरबाइन जैसी चीजें नहीं होगी। यह विमान हॉलीवुड की सीरीज स्‍टार्कट्रेक के विमानों की तरह होंगे, जो आसानी से हवा में उड़ान भर सकेंगे।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 23 Nov 2018 03:54 PM (IST)
भविष्‍य के विमानों में नहीं होंगे इंजन और प्रोपेलर, बदल जाएगी पूरी थ्‍योरी
नई दिल्‍ली जागरण स्‍पेशल। हममें से कई लोगों ने विमान में सफर जरूर किया होगा। लिहाजा विमान के अंदर होने वाले इंजन और उसके प्रोपेलर के शोर से भी वह अंजान नहीं होंगे। कई बार यह आवाज काफी परेशान भी करती है। लेकिन भविष्‍य में इस तरह की आवाजें बीते कल की बात हो सकती हैं। दरअसल, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजीज के विशेषज्ञों की एक टीम ने ऐसी तकनीक का इजाद किया है जिससे आज की कल्पना को साकार किया जा सकता है।

विशेषज्ञों की टीम ने इस तरह के एक विमान का ट्रायल भी किया है। हालांकि यह एक बड़े विमान का एक प्रोटोटाइप था। इस मॉडल को 4.8 सेकंड में 55 मीटर तक उड़ा गया। इससे पहले कभी भी इस तकनीक के जरिए विमान को उड़ाने की कोशिश नहीं की गई।

कल्‍पना की इस उड़ान को साकार बनाने का जिम्‍मा स्‍टीवन बैरेट ने लिया है। इस विमान का डिजाइन भी इन्‍होंने ही बनाया है। उनका कहना है कि भविष्य के विमान में प्रोपेलर और टरबाइन जैसी चीजें नहीं होगी। यह विमान हॉलीवुड की सीरीज स्‍टारट्रेक के विमानों की तरह होंगे, जो आसानी से हवा में उड़ान भर सकेंगे। यही वजह है कि यह विमान आज उड़ान भरने वाले विमानों से बिल्‍कुल अलग होंगे। इतना ही नहीं यह अपनी उड़ान लायक एनर्जी को खुद प्रोड्यूस करेंगे और इसका ही उपयोग अन्‍य चीजों में करेंगे। प्रोटोटाइप की टेस्टिंग में विशेषज्ञों को इसमें काफी हद तक सफलता भी हासिल हो गई है। इतना ही नहीं इस प्रोटोटाइप विमान में कोई भी प्रोपेलर या सोलर पैनल नहीं लगाया गया। इसके अलावा विमान में कोई भी ऐसी चीज नहीं है जो हिलती है।

इस विमान में इंजन की जगह दो मुख्य भाग हैं। विमान के आगे कई इलेक्‍ट्रॉड लगे हैं जोकि काफी हल्के तारों से बने हैं। यह इलेक्‍ट्रॉड काफी करंट पैदा करते हैं। इसकी मदद से नाइट्रोजन के कण पैदा होते हैं जिन्हें आयन कहते हैं। वहीं विमान के पीछे भी 20 हजार वोल्ट का करंट पैदा करते हैं और दोनों से निकलने वाले करंट की वजह से आयोनिक विंड विमान को उपर उठाने में सफल हो जाती है। 1990 में इस तकनीक का पहली बार इस्तेमाल किया गया था, लेकिन इसे परिणाम तक नहीं पहुंचाया जा सका था।

यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि विमानन तकनीक को लेकर वर्तमान में काफी बदलाव हो रहे हैं। इसका एक जीता जागता उदाहरण सौर-ऊर्जा इंजन से युक्त सोलर इम्पल्स है। इस विमान ने अब तक का सबसे लंबा सफर तय किया है। यह इस विमान के लिये बड़ी उपलब्धि है।