आखिर कौन है नासा के सबसे बड़े मिशन से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक भास्करन, जानें
भास्करन ने मिशन के बारे में कहा है कि ये आसानी नहीं था। इससे पहले तक नाशा किसी ऐसी चीज के पास नहीं गया, जिसके बारे में कोई जानकारी न हो। ये जगह काफी छोटी और अंधेरे से भरी हुई है।
By Amit SinghEdited By: Updated: Fri, 04 Jan 2019 12:24 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। नए साल पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने स्पेस में सबसे दूर स्थित ऑब्जेक्ट तक पहुंचने का गौरव हासिल किया है। नासा का अंतरिक्ष यान ‘न्यू होराइजन्स’ एक जनवरी 2019 को सौर मंडल की अभी तक की ज्ञात सीमाओं को पार कर गया है। इस अभियान को सफल बनाने में एक भारतीय वैज्ञानिक की अहम भूमिका रही है। आइये जानते हैं कौन है ये वैज्ञानिक और अभियान के दौरान क्या थी उनकी भूमिका।
भारत को गौरवांवित करने वाले इस अंतरिक्ष यात्री का नाम है श्याम भास्करन, जो मुंबई के रहने वाले हैं। श्याम नासा के उस फ्लाइबाय मिशन का हिस्सा हैं, जो नए साल पर अंतरिक्ष में अनजान ऑब्जेक्ट अल्टिमा थुले के पास से गुजरा था। अल्टिमा थुले अंतरिक्ष में सबसे दूरी पर स्थित ऑब्जेक्ट है।
श्याम भास्करन की जिम्मेदारी
नासा का ये अंतरिक्ष यान इस बात की जानकारी जुटा रहा है कि धरती के वायुमंडल का निर्माण कैसे हुआ था। नासा के न्यू होराइजन्स यान को अंतरिक्ष की ज्ञात सीमाओं से बाहर ले जाने के लिए नेवीगेशन की कमान भारतीय मूल के श्याम भास्करन संभाल रहे हैं। न्यू होराइजन को जनवरी 2006 में पृथ्वी से लॉच किया गया था। श्याम भास्करन का जन्म 1963 में मुंबई के मटुंगा में हुआ था। इसके बाद 1968 में वह अमेरिका चले गए थे। भास्करन के पिता भी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में ही काम करते थे। नासा में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों का दबदबा
श्याम भास्करन से पहले कल्पना चावला और सुनिता विलियम्स समेत की भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में अपना दबदबा कायम कर चुके हैं। नासा के कई सफल अभियानों में इन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों व वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही है।
नासा का ये अंतरिक्ष यान इस बात की जानकारी जुटा रहा है कि धरती के वायुमंडल का निर्माण कैसे हुआ था। नासा के न्यू होराइजन्स यान को अंतरिक्ष की ज्ञात सीमाओं से बाहर ले जाने के लिए नेवीगेशन की कमान भारतीय मूल के श्याम भास्करन संभाल रहे हैं। न्यू होराइजन को जनवरी 2006 में पृथ्वी से लॉच किया गया था। श्याम भास्करन का जन्म 1963 में मुंबई के मटुंगा में हुआ था। इसके बाद 1968 में वह अमेरिका चले गए थे। भास्करन के पिता भी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में ही काम करते थे। नासा में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों का दबदबा
श्याम भास्करन से पहले कल्पना चावला और सुनिता विलियम्स समेत की भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में अपना दबदबा कायम कर चुके हैं। नासा के कई सफल अभियानों में इन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों व वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही है।
6.4 अरब किमी दूर है अंतरिक्ष यान
अमेरिकी जॉन हॉपकिन्स अप्लायड फिजिक्स लैब के अनुसार न्यू होराइजन्स यान फिलहाल धरती से तकरीबन 6.4 अरब किलोमीटर दूर है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अंतरिक्ष के आठ मुख्य ग्रहों के आगे के विराट और बेहद ठंडे क्षेत्र में ये राज छिपा है कि 4.5 अरब वर्ष पहले हमारा सौर परिवार कैसे अस्तित्व में आया था। कैसे सूर्य व अन्य ऑब्जेक्ट अस्तित्व में आए। इसी का पता लगाने के लिए नासा के इस अंतरिक्ष मिशन में वैज्ञानिकों ने स्पेस मे सबसे दूर मौजूद ऑब्जेक्ट अल्टिमा थुले तक पहुंचने का लक्ष्य बनाया था। वहां पहुंचने के बाद अंतरिक्ष यान 19 से 35 किलोमीटर लंबे क्षेत्र की पड़ताल करेगा। पहला वीडियो आने में लगे 10 घंटे
न्यू होराइजन्स स्पेसक्रॉफ्ट से अल्टिमा थुले का पहला वीडियो आने में 10 घंटे से ज्यादा का समय लगा। बताया गया कि इतनी दूरी पर स्थित अंतरिक्ष यान तक सिग्नल पहुंचने में छह घंटे से ज्यादा का वक्त लगा रहा है। इसके बाद सिग्नल की प्रतिक्रिया आने में भी छह घंटे से ज्यादा का वक्त लगता है। ऐसे में स्पेसक्रॉफ्ट से पहली वीडियो आने में 10 घंटे से ज्यादा का वक्त लग गया।यह भी पढ़ें-
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अमेरिकी जॉन हॉपकिन्स अप्लायड फिजिक्स लैब के अनुसार न्यू होराइजन्स यान फिलहाल धरती से तकरीबन 6.4 अरब किलोमीटर दूर है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अंतरिक्ष के आठ मुख्य ग्रहों के आगे के विराट और बेहद ठंडे क्षेत्र में ये राज छिपा है कि 4.5 अरब वर्ष पहले हमारा सौर परिवार कैसे अस्तित्व में आया था। कैसे सूर्य व अन्य ऑब्जेक्ट अस्तित्व में आए। इसी का पता लगाने के लिए नासा के इस अंतरिक्ष मिशन में वैज्ञानिकों ने स्पेस मे सबसे दूर मौजूद ऑब्जेक्ट अल्टिमा थुले तक पहुंचने का लक्ष्य बनाया था। वहां पहुंचने के बाद अंतरिक्ष यान 19 से 35 किलोमीटर लंबे क्षेत्र की पड़ताल करेगा। पहला वीडियो आने में लगे 10 घंटे
न्यू होराइजन्स स्पेसक्रॉफ्ट से अल्टिमा थुले का पहला वीडियो आने में 10 घंटे से ज्यादा का समय लगा। बताया गया कि इतनी दूरी पर स्थित अंतरिक्ष यान तक सिग्नल पहुंचने में छह घंटे से ज्यादा का वक्त लगा रहा है। इसके बाद सिग्नल की प्रतिक्रिया आने में भी छह घंटे से ज्यादा का वक्त लगता है। ऐसे में स्पेसक्रॉफ्ट से पहली वीडियो आने में 10 घंटे से ज्यादा का वक्त लग गया।यह भी पढ़ें-
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