Nobel Prize: mRNA टीकों पर 1990 से हो रहा था रिसर्च, कोविड ही नहीं एड्स व अन्य गंभीर बीमारियों का भी बनेगा कवच
एमआरएनए ( mRNA Vaccines) तकनीक पारंपरिक टीकों से अलग है। जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है तो यह तकनीक ( Kariko and Weissman ) उस वायरस से लड़ने के लिए हमारी कोशिकाओं को प्रोटीन बनाने का संदेश भेजती है। इससे हमारे प्रतिरोधक तंत्र को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए वह मिल जाता है। यह तकनीक COVID-19 के खिलाफ प्रभावी टीके विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
By AgencyEdited By: Nidhi AvinashUpdated: Tue, 03 Oct 2023 04:54 PM (IST)
एजेंसी/ डिजिटल डेस्क। mRNA Vaccines: हंगरी में जन्मी अमेरिकी नागरिक कैटलिन कारिको और अमेरिकी विज्ञानी ड्रू वाइसमैन (Kariko and Weissman) की इस समय काफी चर्चा हो रही है। साल 2023 के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के लिए इन दो नामों की घोषणा की गई है।
इन दोनों विज्ञानियों के रिसर्च के माध्यम से कोरोना रोधी टीके तैयार किए गए है, जिसका इस्तेमाल भविष्य में अन्य वैक्सीन के विकास में भी किया जा सकता है। इससे एमआरएनए वैक्सीन (mRNA Vaccines) की राह और भी आसान हो गई है।
एमआरएनए वैक्सीन, कैसे करता है काम?
समाचार एजेंसी AP के मुताबिक, एमआरएनए तकनीक पारंपरिक टीकों से अलग है। जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है, तो यह तकनीक उस वायरस से लड़ने के लिए हमारी कोशिकाओं को प्रोटीन बनाने का संदेश भेजती है। इससे हमारे प्रतिरोधक तंत्र को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए, वह मिल जाता है। यह तकनीक COVID-19 के खिलाफ प्रभावी टीके विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है। बता दें कि कोरोना से दुनिया भर में छह मिलियन से अधिक लोगों की जान चली गई है।Image: AP
एमआरएनए टीकों पर 1990 से हो रहा रिसर्च
जानकारी के लिए बता दें कि कारिको और वीसमैन ने 1990 के दशक की शुरुआत में एमआरएनए टीकों पर अपना रिसर्च शुरू किया, लेकिन उनके काम को मान्यता मिलने में दशकों लग गए। शुरुआती दिनों में उनके रिसर्च को बहुत जोखिम भरा माना जाता था। हालांकि, कारिको और वीसमैन अपने काम में दृढ़ रहे और इसी का नतीजा है कि आज उनकी इस खोज को सराहा जा रहा है।
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