'न्यू जर्सी के अक्षरधाम मंदिर में कारीगरों से कोई भेदभाव नहीं हुआ', पत्थर गढ़ाई संघ ने आरोपों को किया खारिज
पत्थर गढ़ाई संघ (पीजीएस) ने कहा कि ये कारीगर कई वर्षों से भारत और अमेरिका में बीएपीएस मंदिरों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस पूरे समय में उन्हें बीएपीएस मंदिरों में कभी भी किसी दबाव किसी जातिवाद या भेदभाव का अनुभव नहीं हुआ है। पीएसजी सिरोही राजस्थान में स्थित एक संगठन है और भारतीय मजदूर संघ से संबंधित है।
By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Mon, 17 Jul 2023 09:48 AM (IST)
वाशिंगटन, जेएनएन। पत्थर गढ़ाई संघ (पीजीएस) ने न्यू जर्सी के रॉबिन्सविले अक्षरधाम मंदिर में काम करने वाले कारीगरों के एक समूह द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन किया। पीजीएस के मुताबिक, ये आरोप झूठे हैं और दबाव में लगाए गए हैं। बता दें कि पीएसजी सिरोही, राजस्थान में स्थित एक संगठन है और भारतीय मजदूर संघ से संबंधित है।
2021 में सामने आया था मामला
संगठन ने कहा कि कई कारीगरों ने अब न्यू जर्सी अदालत में बीएपीएस संप्रदाय के मंदिर के खिलाफ दायर नागरिक शिकायत से हटने का विकल्प चुना है। मालूम हो कि मई 2021 में, मंदिर पर कारीगरों के अधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए एक नागरिक शिकायत दर्ज की गई थी।
इसके बाद, संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) और अन्य एजेंसियों की टीम ने 11 मई, 2021 को मंदिर परिसर में काम कर रहे 134 कारीगरों में से 110 को निर्माण स्थल से हटा दिया। आरोपों में जाति-आधारित भेदभाव, निर्धारित राशि से कम वेतन और अनुचित कामकाजी परिस्थितियों के दावे शामिल थे।
लालच के बहकावे में आए कारीगर
पत्थर गढ़ाई संघ के महासचिव प्रभुराम मीना ने कहा कि 12 स्वयंसेवकों को शिकायत में वादी के रूप में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ कारीगरों ने अब वकील आदित्य एसबी सोनी से संपर्क किया है और उन्हें बताया है कि अमेरिका में स्वाति सावंत नाम की एक वकील ने उन्हें शिकायत करने के लिए गुमराह किया था और वे अब इससे हटना चाहते हैं।
पत्थर गढ़ाई संघ ने कहा
मजदूर संघ ने कहा कि कथित तौर पर कारीगर सच बताने से बहुत डर रहे थे, क्योंकि उन्होंने (मजदूर) दावा किया था कि सावंत ने उन्हें पुलिस कार्रवाई और कारावास के बारे में चेतावनी दी थी। साथ ही उन्हें अमेरिकी नागरिकता के वादे का लालच दिया गया था। बता दें कि कारीगर अब मामले से हट गए हैं और स्वेच्छा से अदालत में अपने दावे वापस ले लिए हैं।ये कारीगर कई वर्षों से भारत और अमेरिका में बीएपीएस मंदिरों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस पूरे समय में, उन्हें बीएपीएस मंदिरों में कभी भी किसी दबाव, किसी जातिवाद या भेदभाव का अनुभव नहीं हुआ है... इन कारीगरों ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में जहां वे सेवा करते थे, वहां उनके साथ प्यार से व्यवहार किया गया और उनकी अच्छी देखभाल की गई।