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2030 तक एक हजार परमाणु हथियार बना लेगा ड्रैगन, पेंटागन ने ठोका दावा; जंग को देखते हुए चल रही हथियारों की होड़

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने चीन के परमाणु हथियार भंडार में तेजी से बढ़ोतरी पर नई रिपोर्ट जारी की है। कहा कि चीन अनुमान से ज्यादा तेजी के साथ परमाणु हथियार बना रहा है। यह रिपोर्ट अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से प्रस्तावित मुलाकात से एक महीने पहले आई है। यह मुलाकात सैन फ्रांसिस्को में होने वाली एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग समिट में होगी।

By Jagran NewsEdited By: Prince SharmaUpdated: Fri, 20 Oct 2023 06:48 AM (IST)
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2030 तक एक हजार परमाणु हथियार बना लेगा ड्रेगन, पेंटागन ने ठोका दावा; जंग को देखते हुए चल रही हथियारों की होड़
एपी, वाशिंगटन। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने चीन के परमाणु हथियार भंडार में तेजी से बढ़ोतरी पर नई रिपोर्ट जारी की है। कहा कि चीन अनुमान से ज्यादा तेजी के साथ परमाणु हथियार बना रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार चीन के पास इस समय 500 से ज्यादा परमाणु हथियार हैं और 2030 तक वह एक हजार से ज्यादा परमाणु हथियार बना लेगा। संभवत: वह रूस-यूक्रेन युद्ध से सबक लेते हुए ऐसा कर रहा है, क्योंकि वह ताइवान के साथ भी ऐसे ही टकराव के आसार देख रहा है।

गुरुवार को सार्वजनिक हुई रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि चीन नई इंटरकांटिनेंटल मिसाइल भी तैयार कर रहा है जिनसे वह परमाणु हथियारों का ज्यादा सटीक प्रहार कर सके। चीन ये मिसाइल अमेरिका पर हमले के लिए बना रहा है। यह रिपोर्ट अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से प्रस्तावित मुलाकात से एक महीने पहले आई है।

यह मुलाकात सैन फ्रांसिस्को में होने वाली एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग समिट में होगी। पेंटागन की रिपोर्ट अमेरिकी संसद में रखी गई है। इसको ध्यान में रखकर अमेरिका की भविष्य की सुरक्षा नीति तय की जाएगी और उसके लिए बजट का आवंटन होगा। पेंटागन की 2022 की रिपोर्ट में चीन के 2035 तक 1,500 परमाणु हथियार बना लेने की आशंका जताई गई थी। लेकिन ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन 2030 तक 1,000 से ज्यादा परमाणु हथियार तैयार कर लेगा। यह संख्या पूर्व के अनुमान से ज्यादा है।

अमेरिका के पास इस समय 3,750 सक्रिय परमाणु हथियार हैं जिनका किसी भी समय इस्तेमाल हो सकता है। करीब 20 महीने से जारी यूक्रेन युद्ध और अब इजरायल-हमास युद्ध के चलते अमेरिका की प्राथमिकता से फिलहाल एशिया-प्रशांत क्षेत्र हट गया है। माना जा रहा है कि इस स्थिति का चीन फायदा उठाना चाहता है। उसे इसमें रूस का भी सहयोग मिल रहा है।

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