1958 में चीन पर परमाणु हमला करना चाहता था अमेरिका, पूर्व सैन्य विशेषज्ञ ने किया खुलासा, जानें- क्या थी वजह
ताइवान पर बढ़ते चीन के खतरे और हमलों को रोकने के लिए 1958 में अमेरिका ने कम्युनिस्ट देश पर परमाणु हमला करने की योजना बनाई थी। इसके निशाने पर चीन के सैन्य हवाई अड्डे और दूसरे शहर थे।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 23 May 2021 09:08 AM (IST)
वाशिंगटन (न्यूयॉर्क टाइम्स)। अमेरिका के 90 वर्षीय पूर्व सैन्य विशेषज्ञ डेनियल एल्सबर्ग ने खुलासा किया है कि अमेरिका ताइवान के मुद्दे पर इस कदर चीन से खफा था कि 1958 में उस पर परमाणु हमले करने का मन बना बैठा था। चीन के कम्युनिस्ट शासन से ताइवान को बचाने के लिए ये फैसला लिया गया था। इस हमले में चीन की मुख्य भूमि को निशाना बनाना था। डेनियल ने एक टॉप सीक्रेट डॉक्यूमेंट के कुछ हिस्सों को ऑनलाइन पोस्ट किया है। इनको 1975 में आंशिक रूप से वर्गीकृत किया गया था। हालांकि अमेरिका को ये भी लगता था कि यदि उसने ऐसा कुछ किया तो रूस चीन का साथ देगा। लेकिन ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका को कोई भी कीमत चुकाने को तैयार था।
इन डॉक्यूमेंट्स में कहा गया है कि यदि चीन ताइवान पर हमलों से बाज नहीं आया तो उस पर इस तरह से हमले किए जाएंगे। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स से बात करते हुए कहा है कि उन्होंने इससे जुड़े जो दस्तावेज अब जारी किए हैं उन्हें 1970 के दशक की शुरुआत में कॉपी किया गया था। ये टॉप सीक्रेट ताइवान कांफलिक्ट डॉक्यूमेंट्स का हिस्सा थे। इस वक्त उन्होंने इन डॉक्यूमेंट्स को इसलिए जारी किया है क्योंकि एक बार फिर से ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच काफी विवाद बढ़ गया है। आपको बता दें कि डेनियल 1971 में वियतनाम युद्ध पर बने टॉप सीक्रेट पेंटागन पेपर्स के लीक के लिए मशहूर रहे हैं।
इस डॉक्यूमेंट्स को लिखने वाले ने ये भी लिखा है कि उस समय के तत्कालीन ज्वांइट चीफ ऑफ स्टाफ्स के प्रमुख जनरल नाथन ट्विनिंग ने ये साफ कर दिया था कि अमेरिका चीन को रोकने के लिए अमेरिका उसके हवाई अड्डों को निशाना बनाते हुए वहां पर परमाणु हमला करेगा। इसमें ये भी लिखा गया है कि यदि लड़ाई होती तो अमेरिका के पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। इसके निशाने पर पर शंघाई शहर भी होता। हालांकि इस तनाव की शुरुआत में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर चीन पर हमला करने के लिए पारंपरिक हथियारों का इस्तेमाल करने और इन पर भरोसा करने का फैसला लिया था। ताइवान संकट उस वक्त समाप्त हुआ था जब 1958 में चीन की सेना ने ताइवान बमबारी रोक दी थी। इस क्षेत्र को च्यांग काई-शेक के अधीन राष्ट्रवादी ताकतों के नियंत्रण में छोड़ दिया गया था।
आपको बता दें कि वर्तमान में चीन काफी समय से इस बात को कह रहा है ताइवान यदि नहीं माना तो वो उस पर हमला करने से भी बाज नहीं आएगा। चीन की इस तल्खी की वजह ताइवान और अमेरिकी रिश्तों में आई मजबूती है। जैसे-जैसे अमेरिका ताइवान का चीन के खिलाफ समर्थन कर रहा है और उसको लेकर रक्षात्मक रूप से खड़ा हुआ है, वैसे-वैसे ही चीन अपना रुख इन दोनों के प्रति आक्रामक कर रहा है। पिछले दिनों जब अमेरिका का युद्धपोत ताइवान जल संधि से गुजरा था तब भी चीन काफी आक्रामक रूप से पेश आया था। वहीं अमेरिका ने सफाई दी थी कि ये क्षेत्र पूरी तरह स्वतंत्र है यही वजह है कि अमेरिकी शिप यहां से गुजरा था।