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'भारत कूटनीतिक मुद्दों को सुलझाने में सक्षम, कर सकता है वैश्विक नेतृत्व', रुचिरा कंबोज की दो टूक

संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स में आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत की। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम के तहत एक परिवार मानता है। हाल के सालों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने विभिन्न देशों में बातचीत और समझ को बढ़ावा देने के लिए भारत के नजरिए को देखा है।

By AgencyEdited By: Mohd FaisalUpdated: Sun, 26 Nov 2023 10:54 AM (IST)
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अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर रहा भारत- रुचिरा कंबोज (फाइल फोटो)

पीटीआई, न्यूयॉर्क। संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने कहा कि भारत की रणनीतिक स्थिति उसे विभिन्न शक्ति समूहों के साथ रचनात्मक रूप से जुड़ने में सक्षम बनाती है।

उन्होंने कहा कि तेजी से हो रहे बदलाव और चुनौतियों से भरे इस युग में भारत न केवल अत्यधिक विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि वाले राष्ट्र के रूप उभर रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भी सामने आ रहा है।

दुनिया को एक परिवार मानता है भारत- कंबोज

रुचिरा कंबोज ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान भारत दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम के तहत एक परिवार मानता है। हाल के सालों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने विभिन्न देशों में बातचीत और समझ को बढ़ावा देने के लिए भारत के नजरिए को देखा है।

'अलग-अलग देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना संभव'

उन्होंने कहा कि भारत की रणनीतिक स्थिति इसके गुटनिरपेक्ष इतिहास के साथ मिलकर और विभिन्न शक्ति समूहों के साथ रचनात्मक रूप से जुड़ने में सक्षम बनाती है। भारत ने दिखाया है कि अलग-अलग विचारधाराओं और शासन वाले देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना संभव है।

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कंबोज ने कहा कि भारत की अध्यक्षता में जी20 शिखर सम्मेलन का सफल आयोजन हुआ। शिखर सम्मेलन के दौरान विश्व लीडर ने सर्वसम्मति से कई प्रस्तावों पर सहमति जताई। उन्होंने आगे कहा कि तेजी से बदलते भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक माहौल में खुद को ढालने में असमर्थता के कारण संयुक्त राष्ट्र अपने जनादेश को पूरा करने में सक्षम नहीं है।

उन्होंने दोहराया कि तत्काल संयुक्त राष्ट्र सुधारों के मुद्दे को अब ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता है और 21वीं सदी की समकालीन वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए सुरक्षा परिषद की संरचना में बदलाव किए बिना यह प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकती है।

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