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INVISIBLE black hole! अदृश्य ब्लैक होल के काले रहस्य से उठेगा पर्दा

INVISIBLE black hole! विज्ञानियों ने लगातार छह साल तक प्रकाश की किरणों पर हो रही ग्रेविटेशनल लेंसिंग का अध्ययन करते हुए यह निष्कर्ष दिया है कि प्रकाश की किरणों को उनके रास्ते से मोड़ रही वह खाली जगह असल में एक अदृश्य ब्लैक होल है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 09 Feb 2022 01:31 PM (IST)
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ताजा शोध में विज्ञानियों ने इसी ग्रेविटेशनल लेंसिंग का प्रयोग किया है। फोटो साभार NASA

वाशिंगटन, प्रेट्र। ब्लैक होल को अंतरिक्ष में सबसे रहस्यमयी संरचना माना जाता है। विज्ञान की दृष्टि से ब्लैक होल का अध्ययन इसलिए जरूरी है, क्योंकि इनसे तारों के विकास से लेकर उनके खत्म होने तक की प्रक्रिया से जुड़े कई अहम प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है। विज्ञानियों के एक दल ने पहली बार हबल स्पेस टेलीस्कोप की मदद से पूरी तरह से अदृश्य ब्लैक होल का पता लगाने में सफलता पाई है। इस खोज को एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित किया जाना है। विज्ञानी समुदाय की समीक्षा में खरे उतरने पर यह खगोल विज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती है।

तारे की मौत से बनते हैं ब्लैक होल : किसी विशाल तारे के मरने और उसके केंद्र के सिमट जाने के बाद जो बचता है, वह ब्लैक होल होता है। इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी ज्यादा होती है कि इसके पास से गुजरने वाला हर पिंड इसमें समा जाता है। इस गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से प्रकाश भी अछूता नहीं रह पाता है। इसीलिए ब्लैक होल अदृश्य होते हैं। इनके अध्ययन से यह जानना संभव हो सकता है कि तारों के आखिरी समय में जब उनका केंद्र सिमट रहा होता है, तब क्या-क्या होता है।

नजरों से रहते हैं ओझल : 2019 में विज्ञानियों ने पहली बार ब्लैक होल की तस्वीर खींची थी। यह तस्वीर ब्लैक होल में समाते पिंडों के घर्षण से कुछ पल के लिए उत्पन्न हुई चमक के आधार पर ली गई थी। अब विज्ञानियों ने अदृश्य ब्लैक होल का पता लगाने में कामयाबी पाई है। सूर्य से सात गुना द्रव्यमान वाला यह ब्लैक होल करीब पांच हजार प्रकाश वर्ष दूर है।

आइंस्टीन के सिद्धांत ने दिखाई राह : महान विज्ञानी आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार कोई भी बड़ा पिंड अपने पास से गुजरने वाली प्रकाश की किरणों को मोड़ देता है। इसका अर्थ है कि प्रकाश की वह किरण जो ब्लैक होल के नजदीक तो होती है, लेकिन उसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति की पहुंच में नहीं होती है, वह उसके करीब से मुड़कर निकल जाती है। इस प्रक्रिया में उसकी चमक बढ़ जाती है। इस चमक को ग्रेविटेशनल लेंसिंग कहते हैं। ताजा शोध में विज्ञानियों ने इसी ग्रेविटेशनल लेंसिंग का प्रयोग किया है।

ऐसे चला ब्लैक होल का पता : विज्ञानियों ने पाया कि किसी दूर स्थित तारे से आती रोशनी कुछ पल के लिए चटक होकर फिर सामान्य हो जाती थी। वहां कोई ऐसा ¨पड नहीं दिखाई दिया, जो प्रकाश की किरण के चटक होने का कारण हो। यानी वहां तारे के प्रकाश के साथ ग्रेविटेशनल लेंसिंग की प्रक्रिया तो हो रही थी, लेकिन उसका कारण बनने वाला कोई पिंड नहीं दिखाई दे रहा था।