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हमारी तुलना में एआइ प्रणाली को होती है रिश्तों की बेहतर समझ, जानें कैसे

अमेरिका की ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी को मिली सफलता

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 22 Jan 2018 10:28 AM (IST)
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हमारी तुलना में एआइ प्रणाली को होती है रिश्तों की बेहतर समझ, जानें कैसे

बोस्टन (प्रेट्र)। वैज्ञानिकों ने एक नई एआइ (कृत्रिम बुद्धि) प्रणाली विकसित करने में सफलता हासिल की है। यह प्रणाली इंसानों से बेहतर सौदे कर सकती है और रिश्तों को प्रभावी ढंग से बनाए रखने में भी सक्षम है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए एस हैश एल्गोरिद्म के साथ मशीनों को तैयार किया और उसकी कार्यक्षमता देखने के लिए दो खिलाड़ी वाले खेल पर आजमाया। इसके लिए अमेरिका की ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी (बीवाइयू) और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने इसका मशीन-मशीन, मानव-मशीन और मानव-मानव पारस्परिक क्रिया के आधार पर इसका आकलन किया।

ज्यादातर मामलों में एस हैश वाली मशीन वैसे समझौते जो दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद हो, करने में इंसानों से ज्यादा बेहतर साबित हुई। बीवाइयू के जैकब क्रेंडल ने बताया कि अंतिम लक्ष्य यह समझना था कि हम लोगों के बीच सहयोग के गणित को समझते हैं और इसी आधार पर सामाजिक कौशल वाले एआइ को विकसित करना है। उन्होंने कहा कि एआइ हमें जवाब देने में सक्षम होना चाहिए और यह बता सके कि वह क्या कर रहा है।

क्रेंडल के मुताबिक यदि दो इंसान एक दूसरे के साथ ईमानदार और वफादार थे तो वे दो मशीनों की तरह ही काम कर रहे होते हैं। जैसे कि कुछ बिंदुओं पर कभी न कभी 50 फीसद लोग झूठ बोलते हैं, लेकिन इसका नैतिक आधार होता है। यह विशेष एल्गोरिद्म इसे समझने की कोशिश कर रहा है जिससे किसी प्रकार की गलती न हो। इसके लिए यह व्यवस्था की गई है कि यह झूठ न बोले लेकिन सहयोग बनाए रखने की भावना भी रखनी चाहिए।

शोधकर्ताओं ने सकारात्मक परिणामों को देखते हुए मशीनों की सहयोग करने की क्षमता को बढ़ाने का फैसला किया और उसमें कुछ घटिया शब्दों को भी प्रोग्राम किया। जांच के दौरान पता चला कि अगर इंसान ने मशीन से सहयोग किया है तो मशीन उससे मीठी बातें करती है और कहती है कि हम अमीर हो रहे है या फिर आपका आखिरी प्रस्ताव मुङो मंजूर है, जैसा संदेश देती है। वहीं, अगर इंसान मशीन को धोखा देता है तो यह सुनने को मिलता है कि मैं आपको शाप देता हूं या आपको इसका भुगतान करना पड़ेगा। खेल और इसमें शामिल जोड़ों को ध्यान में रखे बगैर घटिया शब्दों का इस्तेमाल दोगुना होने से दोनों के बीच सहयोग की भावना और बढ़ी। इस निष्कर्ष का प्रकाशन जर्नल नेचर कम्यूनिकेशंस में किया गया है। 

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