उत्तर और दक्षिण कोरिया में तनाव बढ़ाएगा चीन, दोनों में युद्ध छिड़ने की भी आशंका
उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच वार्ता का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे ही वार्ता और इसके अनुमानित नतीजों को लेकर नई-नई बातें सामने आ रही हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच वार्ता का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे ही वार्ता और इसके अनुमानित नतीजों को लेकर नई-नई बातें सामने आ रही हैं। वार्ता से पहले ही शिकागो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन मियरशेमर ने इस वार्ता को लेकर अपनी आशंका जाहिर की है। उन्होंने यह कहते हुए वार्ता पर संशय पैदा कर दिया है कि चीन अमेरिका की उम्मीदों को कभी पूरा नहीं होने देगा। उनके मुताबिक चीन की बदौलत दोनों कोरियाई देशों में युद्ध छिड़ने की प्रबल आशंका है। उनका कहना है कि उत्तर कोरिया के पास अमेरिका पर विश्वास करने की कोई वाजिब वजह नहीं है। यह बात उन्होंने उत्तर कोरिया को गैर परमाणु हथियार राष्ट्र बनाने के मद्देनजर कही है।
शांति में चीन बनेगा बड़ी रुकावट
उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच वार्ता को लेकर उन्होंने एक और बड़ी बात कही है। उनका कहना है कि इस वार्ता के मूल बिंदु (गैर परमाणु हथियार राष्ट्र) में चीन सबसे बड़ी रुकावट पैदा करेगा। प्रोफेसर जॉन का कहना है कि न तो उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों को अमेरिका को सौंपेगा और न ही चीन उसको ऐसा करने देगा। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मुताबिक कोई भी देश किसी अन्य देश पर भरोसा करने की स्थिति में नहीं होता है और न ही वह उसके असल मकसद को समझ पाता है। उन्होंने यह बातें सियोल में हुए एक लेक्चर के दौरान कही हैं। यह लेक्चर कोरिया फाउंडेशन फॉर एडवांस्ड स्टडीज ने आयोजित किया था।
अमेरिका की विफल डील
उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका उत्तर कोरिया से गैर परमाणु हथियार राष्ट्र को लेकर समझौता करना चाहता है। लेकिन यदि इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि इसी तरह की डील वह पहले लीबिया और फिर ईरान से भी कर चुका है। लेकिन यह पूरी तरह से विफल साबित हुई हैं। उनका यह भी कहना था कि अमेरिका इस बात को भी पहले ही कह चुका है कि वह उत्तर कोरिया में सत्ता परिवर्तन करना चाहता है। इस लिहाज से मौजूदा समय में उत्तर कोरिया से अधिक परमाणु हथियारों की जरूरत किसी भी दूसरे राष्ट्र को नहीं है।
अमेरिका को हथियार नहीं सौंपेगा उत्तर कोरिया
उन्होंने इस बाबत उठे सवालों का जवाब देते हुए यह भी साफ कर दिया कि उत्तर कोरिया अपने हथियारों को अमेरिका को नहीं सौंपने वाला है। इसकी वजह उन्होंने पूर्वी एशिया में बढ़ रही असुरक्षा की भावना को भी माना है। आपको यहां पर बता दें कि अप्रैल में जहां उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच शांति को लेकर वार्ता होनी है वहीं मई में किम जोंग उन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच वार्ता होनी तय है। हालांकि इस बैठक के लिए अभी दिन और जगह तय नहीं की गई है।
उत्तर कोरिया से चीन का अपना हित
यहां पर आपको यह भी याद दिला दें कि उत्तर कोरिया ने बीते वर्ष सितंबर से कोई भी न्यूक्लियर टेस्ट नहीं किया है। उत्तर कोरिया के प्रमुख यह भी कह चुके हैं कि वह दोनों कोरियाई देशों को दोबारा एक करने के इच्छुक हैं। लेकिन प्रोफेसर जॉन का मानना है कि फिलहाल यह संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि भविष्य में इन दोनों देशों के एक होने का कोई चांस नहीं है। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने इसमें चीन को बड़ा रोड़ा माना है। उनका कहना है कि उत्तर और दक्षिण कोरिया के अलग रहने में ही चीन अपना हित मानता है। वह चाहता है कि उत्तर कोरिया एक स्वतंत्र राष्ट्र बना रहे। इसकी वजह ये है कि वह उसको अमेरिका और उसके मित्र देशों के लिए बफर स्टेट की तरह इस्तेमाल करना चाहता है।
युद्ध छिड़ने की आशंका
उन्होंने यह भी माना कि इस बात को लेकर दोनों के बीच तनाव बढ़ने के भी आसार हो सकते हैं। इतना ही नहीं यह तनाव चीन अमेरिका के साथ-साथ एक बार फिर दोनों कोरियाई देशों में भी देखा जा सकता है। यहां तक कि यह तनाव एक युद्ध की भी शक्ल इख्तियार कर सकता है। प्रोफेसर जॉन ने इस बात पर खासा जोर देते हुए कहा है कि उन्हें इस क्षेत्र में युद्ध होने की आशंका दिखाई दे रही है। इसके काफी चांस हैं। उनका यह भी कहना था कि जिस तरह से इस पूरे इलाके में राजनीतिक परिस्थितियां बदल रही हैं उस हिसाब से कोरियाई देशों में युद्ध छिड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा चीन और उत्तर कोरिया की नजदीकियां भी इसी ओर इशारा कर रही हैं। चीन इस पूरे इलाके में दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ाने का काम कर रहा है। उन्होंने पूर्वी एशिया में बढ़ रही हथियारों की होड़ पर भी गहरी चिंता जताई है।
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अमेरिका और दक्षिण कोरिया में सैन्य अभ्यास
प्रोफेसर जॉन की बातें इस लिहाज से भी मायने रखती हैं क्योंकि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच अप्रैल में वार्ता होनी है। लेकिन इससे पहले ही अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने सैन्य अभ्यास करने का फैसला लिया है। यह सैन्य अभ्यास एक अप्रैल से होना है। हालांकि इस बार यह दो की जगह एक माह के लिए होना है। यहां पर ये बताना जरूरी होगा कि किम जोंग उन की तरफ से यह बात साफतौर पर की जा चुकी है कि यदि दक्षिण कोरिया और अमेरिका इस तरह का सैन्य अभ्यास करते हैं तो वह भी जवाबी कार्रवाई करेगा और इसको बर्दाश्त नहीं करेगा।
सैन्य अभ्यास को हमले की कार्रवाई मानता है उत्तर कोरिया
दरअसल, उत्तर कोरिया इसे अपने ऊपर हमले का पूर्वाभ्यास मानता है। वहीं अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, हमारा संयुक्त सैन्य अभ्यास रक्षा से संबंधित है। उत्तर कोरिया द्वारा इसे उकसावे वाला बताने का कोई कारण नहीं है। उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन से पिछले महीने मुलाकात करने वाले दक्षिण कोरियाई दूत के मुताबिक, किम ने कहा था कि वह यह सैन्य अभ्यास जारी रखने की जरूरत समझते हैं। इसके बीच माना जा रहा था कि शिखर वार्ता को पटरी से उतरने से बचाने के लिए इस साल सैन्य अभ्यास को रोका जा सकता है।
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