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सीरिया के गोलान हाइट्स के कब्जे से पीछे नहीं हट रहा इजरायल, UN में पेश हुआ प्रस्ताव; भारत ने किसके पक्ष में डाला वोट?

भारत ने यूएनजीए (UNGA) के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जिसमें इजरायल के सीरियाई गोलान ( Syrian Golan ) से पीछे नहीं हटने पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। इस प्रस्ताव को मिस्र द्वारा पेश किया गया जिसे रिकॉर्ड वोट से अपनाया गया। इसमें 91 पक्ष में आठ विपक्ष में और 62 लोग अनुपस्थित रहे। वहीं ऑस्ट्रेलिया कनाडा इजरायल ब्रिटेन और अमेरिका ने इसके खिलाफ मतदान किया।

By AgencyEdited By: Nidhi AvinashUpdated: Wed, 29 Nov 2023 11:00 AM (IST)
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सीरिया के गोलान हाइट्स के कब्जे से पीछे नहीं हट रहा इजरायल (Image: REUTERS)

पीटीआई, संयुक्त राष्ट्र। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है, जिसमें इजरायल के सीरियाई गोलान से पीछे नहीं हटने पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। बता दें कि सीरियाई गोलान दक्षिण पश्चिम सीरिया का एक क्षेत्र है जिस पर 5 जून 1967 को इजरायली सेना ने कब्जा कर लिया था।

193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मंगलवार (28 नवंबर) को एजेंडा आइटम 'मध्य पूर्व में स्थिति' के तहत मसौदा प्रस्ताव 'द सीरियाई गोलान' पर मतदान किया। इस प्रस्ताव को मिस्र द्वारा पेश किया गया जिसे रिकॉर्ड वोट से अपनाया गया। इसमें 91 पक्ष में, आठ विपक्ष में और 62 लोग अनुपस्थित रहे।

पक्ष में कौन और विपक्ष में कौन?

प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने वालों में भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, चीन, मलेशिया, मालदीव, नेपाल, रूस, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात शामिल थे। वहीं, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इजरायल, ब्रिटेन और अमेरिका ने इसके खिलाफ मतदान किया।

क्या है प्रस्ताव में?

प्रस्ताव में गहरी चिंता व्य्क्त की गई है और कहा गया है कि प्रासंगिक सुरक्षा परिषद और महासभा के प्रस्तावों के विपरीत, इजरायल सीरियाई गोलान से पीछे नहीं हटा है, जो 1967 से कब्जे में है। प्रस्ताव में घोषित किया गया कि इजरायल सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 497 (1981) का पालन करने में विफल रहा है। इसमें निर्णय लिया गया है कि कब्जे वाले सीरियाई गोलान हाइट्स में अपने कानून, अधिकार क्षेत्र और प्रशासन को लागू करने का इजरायल का निर्णय अमान्य और अंतरराष्ट्रीय कानूनी प्रभाव के बिना है।'

इजरायल से निर्णय रद्द करने का आह्वान

मंगलवार के प्रस्ताव में 14 दिसंबर, 1981 के इजरायली फैसले को भी अमान्य घोषित कर दिया गया और कहा गया कि इसकी कोई वैधता नहीं है। इजरायल से अपना निर्णय रद्द करने का आह्वान किया है। प्रस्ताव में 1967 से कब्जे वाले सीरियाई गोलान में इजरायली बस्ती निर्माण और अन्य गतिविधियों की अवैधता पर भी जोर दिया गया।

इसमें प्रासंगिक सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के कार्यान्वयन में, 4 जून, 1967 की सीमा तक सभी कब्जे वाले सीरियाई गोलान से इजरायल की वापसी की मांग की गई है। साथ ही निर्धारित किया कि 'सीरियाई गोलान पर निरंतर कब्जा और उसका वास्तविक कब्जा इस क्षेत्र में न्यायसंगत, व्यापक और स्थायी शांति प्राप्त करने के रास्ते में एक बड़ी बाधा है।' प्रस्ताव में सीरियाई ट्रैक पर शांति प्रक्रिया में रुकावट पर गंभीर चिंता व्यक्त कर उम्मीद जताई गई कि शांति वार्ता जल्द ही उस बिंदु से फिर से शुरू होगी जहां वे पहुंची थीं।

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