भारत की जी-20 की अध्यक्षता को लेकर संयुक्त राष्ट्र में सरगर्मी, विकासशील देशों को सम्मेलन से हैं बहुत उम्मीदें
विकासशील देशों को यह भी उम्मीद है कि विश्व व्यवस्था को संचालित करने वाले अहम संगठनों पर अमीर देशों की पकड़ को कुछ हद तक लचीला बनाने में भारत की जी-20 की अगुआई काफी निर्णायक साबित हो सकती है।
By JagranEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Sat, 24 Sep 2022 08:50 PM (IST)
न्यूयार्क, संजय मिश्र। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के दौरान चर्चा की धुरी वैसे तो वैश्विक चुनौतियों और क्षेत्रीय मुद्दों के साथ संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 2030 से लेकर जलवायु परिवर्तन के सवालों पर केंद्रित है लेकिन भारत के जी-20 की अध्यक्षता को लेकर भी काफी उत्सुकता और सरगर्मी है। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों को ही नहीं कई यूरोपीय देश भी भारत की जी-20 की अध्यक्षता के दौरान बड़े वैश्विक मुद्दों के साथ उनके हितों और चुनौतियों पर भी फोकस किए जाने को लेकर आशावान हैं।
विकासशील देशों की उम्मीदें
विकासशील देशों को यह भी उम्मीद है कि विश्व व्यवस्था को संचालित करने वाले अहम संगठनों पर अमीर देशों की पकड़ को कुछ हद तक लचीला बनाने में भारत की जी-20 की अगुआई काफी निर्णायक साबित हो सकती है। कोरोना महामारी के चलते दो साल बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के लिए न्यूयार्क में विश्व के नेताओं का जमघट लगा है।अलग-अलग वैश्विक मंचों पर बात रखने वाले दुनिया के लगभग तमाम नेताओं का मानना है कि कोरोना के कहर ने राजनीतिक-आर्थिक तौर पर विश्व की तस्वीर काफी हद तक बदल दी है। आर्थिक चुनौतियों के साथ जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए कार्बन उत्सर्जन घटाने के लक्ष्यों के दबावों के बीच अपनी अर्थव्यवस्था को संभाल रहे विकासशील देशों के नेताओं का कहना है कि कोरोना की भारी उथल-पुथल ने स्थिति गंभीर कर दी है।
जी-सात देशों के समूह, आइएमएफ से लेकर विश्व बैंक जैसी संस्थाएं विकासशील देशों के लिए अपनी उधारी या कर्ज नीतियों में लचीलापन नहीं दिखा रही हैं जिसके चलते दुनिया की बड़ी आबादी के सामने जीवन यापन का संकट गहरा रहा है। अफ्रीकी देशों में गहराए खाद्य संकट ने हालात को और मुश्किल किया है। ऐसे में इन नेताओं की नजर में भारत की जी-20 की अध्यक्षता इस हालत में बेहद अहम है।
विकासशील देशों की मुश्किलों को समझता है भारत
बारबडोस की प्रधानमंत्री मिया मोटले ने सतत विकास लक्ष्य से जुड़े एक सम्मेलन के दौरान अमीर देशों को आड़े हाथों लेते हुए साफ कहा कि दुनिया को संचालित करने वाली बड़ी संस्थाओं ने नियमों की बंदिश से विकासशील राष्ट्रों की राह में अड़चनें बिछाई हुई हैं। इन्हें समझना होगा कि विश्व अब इतना एकीकृत हो चुका है कि दुनिया के किसी कोने में रोजी-रोजगार, खाने से लेकर अर्थव्यवस्था का संकट है तो विश्व की प्रगति इससे अछूती नहीं रहेगी।इस लिहाज से भारत की जी 20 की अध्यक्षता से विकासशील देशों को इसलिए काफी उम्मीद है क्योंकि वह इन चुनौतियों को गहराई से महसूस करता है और वैश्विक मंच पर उसका एक प्रभावशाली स्वर है। स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने मोटले की बातों से पूर्ण सहमति जताते हुए कहा कि कोरोना के बाद यूरोप के कई देशों की चुनौती बढ़ गई है। इसलिए भारत में अगले साल होने वाले जी-20 सम्मेलन से काफी उम्मीदें हैं।