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अमेरिकी रेड लिस्‍ट से चीन-पाक को लगी मिर्ची, जानें भारत के प्रति क्‍यों नरम पड़ा US, एक्‍सपर्ट व्‍यू

इन दिनों अमेरिका की रेड लिस्‍ट काफी सुर्खियों में है। आइए जानते हैं कि इस रेड लिस्‍ट के क्‍या मायने हैं। पाकिस्‍तान और चीन इस लिस्‍ट को लेकर क्‍यों खफा है। भारत को इस लिस्‍ट के बाहर रखने की क्‍या है बड़ी वजह। इसके क्‍या हैं कूटनीतिक मायने।

By Ramesh MishraEdited By: Updated: Sun, 21 Nov 2021 07:24 AM (IST)
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रेड लिस्‍ट पर बाइडन प्रशासन का रुख भारत के लिए नरम क्‍यों ? US मेहबानियां की बड़ी वजह
नई दिल्‍ली, रमेश मिश्र। इन दिनों अमेरिका की रेड लिस्‍ट काफी सुर्खियों में है। यह कहा जा रहा है कि अमेरिका ने धार्मिक स्‍वतंत्रता का उल्‍लंघन करने वाले देशों के बहाने अपने रणनीतिक और सामरिक संबंधों को एक नई दिशा दी है। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि पाकिस्‍तान और चीन का नाम इस सूची में शामिल है और भारत इस सूची से बाहर है। आइए जानते हैं कि इस रेड लिस्‍ट के क्‍या मायने हैं। पाकिस्‍तान और चीन इस लिस्‍ट को लेकर क्‍यों खफा है। भारत को इस लिस्‍ट के बाहर रखने की क्‍या है बड़ी वजह। इसके क्‍या हैं कूटनीतिक मायने। इन सब मामलों में क्‍या है प्रो. हर्ष वी पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख) की राय।

अमेरिकी पैनल की सिफारिश के बावजूद रेड लिस्‍ट में क्‍यों नहीं भारत ?

अमेरिकी रेड लिस्‍ट ने यह साबित कर दिया है कि बाइडन प्रशासन भारत के साथ अपने रिश्‍तों को कितना अ‍हमियत देता है। बाइडन प्रशासन की नजर में भारत कितना अहम है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अमेरिका में धार्मिक आजादी का आकलन करने वाले अमेरिकी पैनल के सुझाव के बाद भी बाइडन प्रशासन ने धार्मिक स्‍वतंत्रता का उल्‍लंघन करने वालों देशों की सूची से भारत को अलग रखा है। अमेरिकी पैनल यूएस कम‍िशन आन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम ने लगातार दूसरे साल भारत में धार्मिक स्‍वतंत्रता पर चिंता प्रगट करते हुए उसे रेड लिस्‍ट में शामिल करने का सुझाव दिया था।

क्‍या यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है ?

1- जी हां। हम कह सकते हैं कि यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है। इसमें कोई शक नहीं कि मोदी के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच संबंधों ने एक नई ऊंचाई हासिल की है। दुनिया में धार्मिक स्‍वतंत्रता का निर्धारण करने वाले अमेर‍िकी पैनल ने लगातार दूसरी बाद भारत को रेड लिस्‍ट में शामिल करने का सुझाव दिया है। दोनों बार अमेरिका ने भारत को रेड लिस्‍ट से बाहर रखा है। कहीं न कहीं यह भारतीय कूटनीति की बड़ी जीत है।

2- इसमें कोई शक नहीं कि वाशिंगटन को चीन से मिल रही नई चुनौती, भारतीय बाजार और उसकी बढ़ती सैन्‍य ताकत अब अमेरिका की एक बड़ी जरूरत है। लेकिन इसमें भारतीय कूटनीति की सफलता को नकारा नहीं जा सकता है। भारतीय कूटनीति ने बहुत समझदारी से अपने हितों के अनुरूप अमेरिका के साथ अपनी दोस्‍ती को आगे बढ़ाया है। दोनों देशों के बीच इस गाढ़ी दोस्‍ती में भारतीय विदेश नीति के सैद्धांतिक मूल्‍य एकदम सुरक्षित है। आज भारत अपने द्विपक्षीय संबंधों के लिए पूरी तरह से स्‍वतंत्र है। उस पर किसी भी देश का दबाव नहीं है।

3- खास बात यह है कि अमेरिका की यह रेड लिस्‍ट ऐसे समय आई है, जब भारत में रूस की एस-400 मिसाइल सिस्‍टम की आपूर्ति शुरू हो चुकी है और अमेरिका इसका सख्‍त विरोध कर रहा है। अमेरिका चाहता तो एस-400 के बहाने भारत को रेड लिस्‍ट में शामिल करके अपनी भड़ास निकाल सकता था। इससे यह संकेत जाता है कि वह भारतीय विदेश नीति के सैद्धांतिक पहलुओं में कोई बदलाव का दबाव नहीं बना रहा है। इससे यह साबित होता है कि दोनों देशों के बीच संबंध एक सही दिशा और दशा में आगे बढ़ रहे हैं।

4- अमेरिका में भारतीय आबादी के बढ़ते वर्चस्‍व ने वहां की राजनीति को प्रभावित किया है। अमेरिका की सियासत में भारतीयों के बढ़ते प्रभुत्‍व का असर अमेरिका राष्‍ट्रपति चुनाव में भी दिखा था। अमेरिका में दोनों प्रमुख दल (डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन) इस प्रभाव से मुक्‍त नहीं हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि अमेरिकी राजनीति में भारतीय लोगों के वर्चस्‍व ने भारत के साथ संबंधों को एक नया आयाम दिया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बाइडन प्रशासन की टीम में बड़ी संख्‍या भारतीय मूल की आबादी की है।

अमेरिका का भारत के प्रति इस अनुराग का बड़ा कारण क्‍या है ?

इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय प्रेम के पीछ चीन एक बड़ा फैक्‍टर है। हाल के वर्षों में अमेरिका और चीन के संबंध काफी तल्‍ख हुए है। हांगकांग, ताइवान, हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में चीन ने अमेरिकी हितों को निशाना बनाया है। हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में अमेरिका को चीन से कड़ी टक्‍कर मिल रही है। चीनी हस्‍तक्षेप से दक्षिण एशिया का क्षेत्रीय संतुलन बदल गया है। अमेरिका यह जानता है कि चीन की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत सबसे महत्‍वपूर्ण है। भारत अब अमेरिका की एक बड़ी जरूरत है। यहीं कारण है कि बाइडन के पूर्व ट्रंप ने कई बार सार्वजनिक रूप से भारत को सबसे बड़ा दोस्‍त कहा था। 

आखिर क्‍या है पूरा मामला

1- दअसल, अमेरिका का एक आयोग हर साल दुनिया के तमाम देशों में धार्मिक आजादी का आकलन करता है। फिर अमेरिकी प्रशासन को सिफारिश करता है कि किन देशों को उसे रेड लिस्ट में डालना चाहिए। इस आयोग का नाम यूएस कमिशन आन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम। इस श्रेणी में मानवाधिकार के उल्लंघन, दुर्व्यवहारियों का सामना करने और उनसे जूझने वालों को भी रखा गया है। आयोग की र‍िपोर्ट के आधार पर अमेरिकी प्रशासन हर साल ऐसे देशों और संगठनों की लिस्ट जारी करता है, जो अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं।

2- हाल में अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाले देशों के लिए सूची जारी किया है। इस सूची में पाकिस्‍तान और चीन का नाम भी शामिल है। इस सूची में पाकिस्तान, चीन, तालिबान, ईरान, रूस, सऊदी अरब, एरिट्रिया, ताजिकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान और बर्मा सहित 10 देशों को शामिल किया गया है। इसके अलावा अमेरिका ने अल्जीरिया, कोमोरोस, क्यूबा और निकारागुआ को विशेष निगरानी सूची में रखा है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघन में शामिल हैं।

3- बता दें कि आयोग ने गत वर्ष 2020 में धार्मिक आजादी के आकलन के बाद सीपीसी सूची के लिए चार देशों के नाम विदेश मंत्रालय को सुझाए गए थे। इसमें भारत, रूस, सीरिया और वियतनाम शामिल हैं, लेकिन रूस को छोड़ कर इनमें से किसी देश को सूची में शामिल नहीं किया गया। आयोग ने भारत को लेकर जिन बिंदुओं पर चिंता जताई थी, उनमें नागरिकता संशोधन कानून सबसे अहम था। आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली में हुए दंगों के दौरान हिंदू भीड़ को क्लीनचिट दी गई और मुस्लिम लोगों पर अति बल प्रयोग किया गया। आयोग की इस रिपोर्ट का भारत सरकार ने विरोध किया था। उस वक्‍त ट्रंप प्रशासन में विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने भी भारत को सीपीसी के रूप में सूचीबद्ध करने के लिए की सिफारिश को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि भारत आर्थिक और सैन्य क्षेत्र में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।