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COP-15 समझौते को लेकर विशेषज्ञों ने कहा- इस तकनीक के लाभ से विकासशील देश कर सकेंगे प्रकृति संरक्षण

नागोया प्रोटोकाल के जरिये संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता सम्मेलन का उद्देश्य विकासशील व गरीब देशों की वित्तीय मदद कर आनुवंशिक स्त्रोतों को संरक्षण देना है। जिससे आदिवासियों और किसानों के पलायन को रोका जा सके और जैव विविधता के नुकसान को रोका जा सके।

By Ashisha Singh RajputEdited By: Updated: Tue, 20 Dec 2022 07:23 PM (IST)
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डीएसआइ के जरिये भारत जैसे देशों को जैव विविधता में मिलेगी मदद
मांस्टि्रयल, पीटीआई। कनाडा में सात दिसंबर से चल रहे जैव विविधता सम्मेलन (सीओपी -15)का सोमवार को ऐतिहासिक समझौते के साथ समापन हो गया। इसमें विकासशील व गरीब देशों की वित्तीय मदद व निश्चित स्थल के संरक्षण के लिए डिजिटल सिक्वेंस इन्फार्मेशन (डीएसआइ) तकनीक का इस्तेमान करना भी महत्वपूर्ण भाग है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारत जैसे देशों के लिए वित्तीय मदद सुनिश्चत करने में मदद मिलेगी, और वे प्रकृति संरक्षण में अपना योगदान दे सकेंगे।

संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता सम्मेलन का उद्देश्य

नागोया प्रोटोकाल के जरिये संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता सम्मेलन का उद्देश्य विकासशील व गरीब देशों की वित्तीय मदद कर आनुवंशिक स्त्रोतों को संरक्षण देना है। जिससे आदिवासियों और किसानों के पलायन को रोका जा सके, और जैव विविधता के नुकसान को रोका जा सके। डीएसआइ तकनीक का प्रयोग कर कंपनियां जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिये आनुवंशिक स्त्रोतों का आकलन बिना किसी दौड़ भाग के कर सकती हैं। सीओपी-15 में तय हुआ है कि डीएसआइ का लाभ विकासशील देशों को समान रूप से मिलना चाहिए।

एनबीए के सचिव जस्टिन मोहन ने कहा

राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) के सचिव जस्टिन मोहन ने कहा कि डीएसआइ वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (जीबीएफ) 2000 के बाद टारगेट-13 और 'गोल सी' के तहत सीओपी-15 का भाग है। डीएसआइ तकनीक से विकासशील देशों की वित्तीय मदद का सटीक आकलन किया जा सकेगा। मांस्टि्रयल सम्मेलन में ऐतिहासिक समझौते के तहत विकासशील और गरीब देशों को जैव विविधता के संरक्षण के लिए वर्ष 2030 से हर साल 30 अरब डालर की वित्तीय मदद की जाएगी।

रायटर के अनुसार, कनाडा के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री स्टेवेन गिलबीट ने कहा कि यह समझौता हमारी पृथ्वी और मानवता के लिए एक जीत है। हालांकि, कुछ प्रमुख उष्ट कटिबंधीय वन क्षेत्र वाले अफ्रीकी देशों ने इस समझौते को लेकर संदेह भी जताया। इसमें कांगो प्रमुख है। उसने कहा कि विकसित देशों को विकासशील देशों के लिए अलग से फंड की व्यवस्था करनी चाहिए। -

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