Move to Jagran APP

चीन के खतरनाक मंसूबों की आहट, 175 अरब डॉलर किया अपना रक्षा बजट

चीन ने इस साल भी अपने रक्षा बजट में भारी बढ़ोतरी की है जो भारतीय रक्षा बजट की तुलना में तीन गुना अधिक है। यह भारत ही नहीं, समूची क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 07 Mar 2018 02:43 PM (IST)
Hero Image
चीन के खतरनाक मंसूबों की आहट, 175 अरब डॉलर किया अपना रक्षा बजट

नई दिल्ली [डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव]। चीन ने पांच मार्च को पेश की गई बजट रिपोर्ट में इस साल का रक्षा बजट 11 खरब युआन से ज्यादा अर्थात 175 अरब डॉलर यानी 1139887 करोड़ रुपये घोषित किया है। इस तरह चीन ने पिछले वर्ष की तुलना में 8.1 प्रतिशत की वृद्धि की है। गत वर्ष चीन का रक्षा बजट 150.5 अरब डॉलर का था। चीन का यह रक्षा बजट भारत द्वारा हाल ही में घोषित रक्षा बजट का साढ़े तीन गुना ज्यादा है। इस घोषणा के बाद चीन अमेरिका के बाद रक्षा पर सबसे अधिक खर्च करने वाला दूसरा देश बन गया है। इसे देखते हुए अमेरिका में भी वर्ष 2019 के लिए 686 अरब डॉलर के रक्षा बजट की मांग की गई है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के सेना को अत्याधुनिक बनाए जाने के फोकस को देखते हुए रक्षा बजट बढ़ाया गया है। चीन का ध्यान स्टील्थ लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत, सेटेलाइट रोधी मिसाइल समेत नई सैन्य क्षमता विकसित करने पर है।

समुद्र में दबदबा बढ़ा रहा चीन

चीन अपना दबदबा बढ़ाने के लिए नौसेना की पहुंच को समुद्री क्षेत्रों में फैला रहा है। चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस यानी एनपीसी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ली कछ्यांग ने कहा कि चीन अपनी सेना के प्रशिक्षण और युद्ध की तैयारी के सभी पहलुओं को बढ़ाएगा। हम अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों को सुरक्षित रखेंगे। झांग येसुई इस समय एनपीसी के प्रवक्ता हैं जो पहले विदेश उपमंत्री भी रह चुके हैं, ने चीन की रक्षा जरूरतों में वृद्धि को सही ठहराया है। उनका कहना है कि चीन के उभार के साथ रक्षा बजट में बढ़ोतरी जरूरी है। उन्होंने कहा कि चीन शांतिपूर्ण विकास की राह पर आगे बढ़ता रहेगा। चीन की रक्षा नीति जो स्वभाव से ही रक्षात्मक है और उसका विकास किसी भी देश के लिए खतरा पैदा नहीं करेगा।

बढ़ोतरी का बचाव

झांग ने इस बढ़ोतरी का बचाव करते हुए कहा कि चीन रक्षा क्षेत्र में जो खर्च कर रहा है वह तमाम अन्य बड़े देशों की तुलना में काफी कम है। दुनिया में अमेरिका का रक्षा बजट सबसे ज्यादा है। दक्षिण चीन सागर में बढ़ते विवाद एवं अमेरिका से तनातनी के बीच चीन ने पिछले वर्ष अपना रक्षा बजट सात प्रतिशत बढ़ाया था। इससे पहले वर्ष 2016 में चीन का रक्षा बजट 7.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 94435 करोड़ युआन था। चीन की दलील है कि देश की संप्रभुता एवं सुरक्षा के लिए चीन की सैन्य क्षमता का विस्तार जारी रहेगा। इस साल के रक्षा बजट का मुख्य जोर नौसेना के विकास पर रहेगा, क्योंकि दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर पर उसके दावे तथा समुद्री आवागमन के लिहाज से इस क्षेत्र में तनाव बढ़ा हुआ है। इसलिए दक्षिण चीन सागर सहित सामुद्रिक क्षेत्र में चीन अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है।

विमानवाहक पोत व पनडुब्बियों की जरूरत

उसके रक्षा अधिकारियों के मुताबिक दक्षिण चीन सागर में अमेरिका की बराबरी में आने के लिए विमानवाहक पोत व पनडुब्बियों की जरूरत है। चीन के सामने सबसे बड़ी चिंता अपने तीन लाख सैनिकों को लेकर भी है। वर्ष 2015 में शी चिनफिंग द्वारा अपनी सेना में तीन लाख की सैन्य संख्या घटाने की घोषणा की गई थी। यह कटौती 2018 में भी जारी रहनी है। चीन का कहना है कि हम देश की सुरक्षा एवं सशस्त्र बलों के सुधार सुधार के प्रयासों का समर्थन करेंगे। ठोस सुरक्षा और मजबूत सशस्त्र बल चीन की विश्वस्तरीय ताकत के अनुरूप हैं। यह हमारी सुरक्षा और विकास के हितों के पक्ष में है। हम सैन्य प्रशिक्षण और रक्षा तैयारी बढ़ाएंगे ताकि हमारी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास के हित सुनिश्चित हो सकें। हम निश्चित तौर पर अपनी समुद्री और वायु सुरक्षा मजबूत करेंगे।

देशी हितों की रक्षा

देश के सैन्य खर्च में बढ़ोतरी खासतौर पर नौसेना के लिए खर्च में वृद्धि का मकसद विदेशों में तेजी से विस्तारित होते देशी हितों की रक्षा करना है। इसके अलावा एशिया प्रशांत क्षेत्र में अस्थिर सुरक्षा स्थिति को देखते हुए उसके जवाब के तौर पर तैयार होना है। सशक्त नौसेना के अभाव में चीन किस प्रकार से विदेशों में रहने वाले अपने लाखों लोगों की और बड़ी मात्र में विदेशी निवेश की रक्षा कर पाएगा। विदित हो कि वर्ष 2016 में चीन का विदेशी निवेश 221 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। अब इसे और बढ़ाना है। ऐसे में चीन को दुनिया भर में अपने प्रमुख व्यापारिक मार्गो की रक्षा करने में सक्षम होना होगा। चीन ने अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बावजूद वर्ष 2016 में रक्षा बजट को 7.6 प्रतिशत बढ़ाकर 146 अरब डॉलर यानी कि 9771 अरब रुपये किया था। इससे पहले वर्ष 2015 में चीन का रक्षा बजट 145 अरब डॉलर यानी कि 974762 करोड़ रुपये था। चीन ने वर्ष 2011 से 2015 तक रक्षा बजट में सालाना वृद्धि औसतन 13 फीसदी की थी।

लगातार रक्षा बजट बढ़ा रहा चीन

चीन लगातार पांच वर्षो से रक्षा बजट में सालाना 10 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि कर रहा था। उसने अपने रक्षा बजट में वर्ष 2011 में 12.7 फीसदी, 2012 में 11.2 फीसदी एवं 2013 में 11 प्रतिशत से अधिक तो वहीं 2014 में 12.2 प्रतिशत, 2015 में 10.1 प्रतिशत, 2016 में 7.6 प्रतिशत एवं 2017 में सात प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी।इस साल के चीनी कदम को सेना के आधुनिकीकरण के प्रयासों से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद चीन ने रक्षा बजट में वृद्धि सैन्यीकरण के प्रयासों को तेजी देने के लिए ही की है। ऐसे में यह तय है कि वह अपनी सामरिक क्षमता बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। चीन ने रक्षा बजट में वृद्धि को उचित ठहराते हुए यह भी कहा कि अमेरिका एशिया प्रशांत क्षेत्र का सैन्यीकरण कर रहा है। खासकर दक्षिण चीन सागर को लेकर खींचतान सबसे ज्यादा है।

तनाव का कारण

पिछले कुछ महीनों के दौरान दोनों देशों के बीच यह तनाव का कारण बना हुआ है। दक्षिण चीन सागर के सैन्यीकरण के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराना भ्रम पैदा करने के लिए है। चीनी नेतृत्व हमेशा से ही रक्षा खर्चो में बढ़ोतरी का समर्थन करता आया है। चीन ने पहले भी कहा था कि देश की सुरक्षा जरूरतों, आर्थिक विकास और राजकोषीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए रक्षा बजट बढ़ाने का फैसला किया गया है। पड़ोसी देशों के साथ जमीनी और समुद्री सीमा पर टकराव के बीच चीन सैन्य आधुनिकीकरण के संबंध में विश्व की बड़ी सैन्य ताकत अमेरिका से प्रतिस्पर्धा कर रहा है। इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि चीन ने रक्षा के मोर्चे पर चीन का इरादा साफ है कि वह यहां दुनिया के ताकतवर देशों से किसी पैमाने पर कमजोर नहीं रहना चाहता। 

(लेखक सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक हैं)

उत्तर-पूर्व में भगवा लहराने के बाद भाजपा के लिए कितनी आसान होगी कर्नाटक में जीत की राह?
जबरन धर्मांतरण और रोहिंग्‍या की वजह से श्रीलंका में फैला है तनाव, लगानी पड़ी इमरजेंसी