इस बुद्ध की प्रतिमा का राज खुला तो दुनिया रह गई दंग, जानिए क्या है राज?
1000 साल से समाधि लगाए मिला बौद्ध भिक्षु वैज्ञानिकों ने एक ऐसे बौद्ध भिक्षु की प्रतिमा बरामद की है जिसके शरीर पर हालीवुड की फिल्म ममी की तरह के अवशेष मिले है।
By VinayEdited By: Updated: Wed, 22 May 2019 06:00 PM (IST)
बीजिंग, एजेंसी। चाइना में वैज्ञानिकों ने एक ममी की जांच की तो वो दंग रह गए। दरअसल ये ममी नहीं बल्कि साधना में लगे एक बौद्ध भिक्षु का शव था। उनके शव को लेप में लपेटकर साधना लगाते हुए आसान में रख दिया गया था। ये मूर्ति इतनी पुरानी हो चुकी थी कि इसको देखने से कोई भी ये नहींं कह सकता था कि ये कोई ममी होगी। वैज्ञानिकों ने जब इसको स्कैन किया तो उसमें हड्डियां दिखाईंं दी, उसके बाद जांच को आगे बढ़ाया गया। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, नई-नई चीजें सामने आती गई। एक के बाद एक रहस्य से पर्दा उठता गया। पढ़िये और जानिये क्या था इसका रहस्य।
चाइना में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे बौद्ध भिक्षु की प्रतिमा बरामद की है जिसके शरीर पर हालीवुड की फिल्म ममी की तरह के अवशेष लगे मिले है। ये बौद्ध भिक्षु एक हजार पुरानी प्राचीन प्रतिमा के भीतर समाधि की अवस्था में था। जब ये प्रतिमा निकली उसके बाद वैज्ञानिकों ने इसको स्कैन किया और खोज की। इसमें देखा गया कि इस ममी
में एक व्यक्ति की हड्डियां स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थीं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ममी को झांग के अवशेष - पैट्रिआर्क जांगगोंग और लिउक्वान झांगोंग के नाम से जाना जाता था। ये ममी चीनी मेडिटेशन स्कूल के थे और उनकी मृत्यु 1100AD के आसपास हुई थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ममी को देखने से ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने आत्म-ममीकरण किया होगा। कुछ लोगों ने इस क्षिक्षु को इस तरह के लेप करके सुरक्षित किया। इस बौद्ध क्षिक्षु के शरीर पर लेप लगाने का उद्देश्य उसके शरीर को सुरक्षित रखना और उसे जीवित बुद्ध बनना था।
इस प्रक्रिया के तहत पहले 1,000 दिनों के लिए भिक्षुओं ने शरीर के वसा को खत्म करने के लिए नट, बीज और जामुन को छोड़कर सभी भोजन बंद कर दिए जाते हैं। उसके बाद अगले 1,000 दिनों में उरुशी वृक्ष के रस से बनी जहरीली चाय का सेवन करने से पहले छाल और जड़ों का आहार दिया जाता है। इससे क्षिधु के शरीर में उल्टी और तेजी से द्रव का नुकसान हुआ और मृत्यु के बाद क्षय को रोकने के लिए उनके शरीर पर संरक्षक के रूप में कार्य किया गया। इसके छह साल बाद, साधु को एक छोटे से पत्थर के मकबरे में हवा की नली और घंटी के साथ बंद कर दिया जाता था। वह कमल की स्थिति में तब तक ध्यान करता, जब तक कि उसकी मृत्यु नहीं हो जाती - जब घंटी बजनी बंद हो जाती थी। बुद्ध बनने से पहले मकबरे को मकबरे के लिए सील कर दिया जाएगा। साल 2015 में प्रतिमा के अंदर से नमूने लिए गए थे - जहां अंगों के बजाय, वैज्ञानिकों को प्राचीन चीनी चरित्र प्रिंट के साथ सड़ा हुआ सामग्री और कागज मिला। उसके बाद उन्होंने अपनी खोज को आगे बढ़ाया। कई बौद्धों का मानना है कि इस तरह की ममी मृत नहीं हैं बल्कि ध्यान की एक उन्नत स्थिति में हैं।
वैज्ञानिकों के अध्ययन में ये बात सामने आई कि इस भिक्षु की 37 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई और उसके शरीर में बीमारी या लंबे समय तक संयम के लक्षण दिखाई दिए। ममी को देखने से ये बात साफ हो जाती है कि उन्होंने स्व-ममीकरण नहीं किया है। माना जाता है कि यह झांग का अवशेष है - जिसे पैट्रिआर्क झांगगोंग और लियुक्वान झांगगोंग के नाम से जाना जाता है। 2015 में प्रतिमा के अंदर से नमूने लिए गए थे, जहां अंगों के बजाय, वैज्ञानिकों को प्राचीन चीनी चरित्र प्रिंट के साथ सड़ा हुआ पदार्थ और कागज मिला। वैज्ञानिकों ने एक बुद्ध प्रतिमा को स्कैन किया और जब वे ध्यान करने वाले गुरु की स्थिति में हड्डियों को देखते हैं, उसके बाद उन्होंने इस दिशा में और भी खोज शुरु की, उस खोज के बाद ही वैज्ञानिकों को इन बातों का भी पता चला।
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