हांगकांग आंदोलन से और कड़ा हो जाएगा राष्ट्रपति चिनपिंग का रुख, कई बन गए हैं दुश्मन
हांगकांग की अराजक होती स्थिति के बीच भी राष्ट्रपति शी चिनपिंग के रुख में कोई बदलाव नहीं आने वाला है बल्कि इससे उनका रुख कड़ा ही होगा।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 29 Nov 2019 09:02 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चीन के लिए हांगकांग लगातार एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इसके साथ ही राष्ट्रपति शी चिनपिंग की भी चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं। वहीं शी के लिए हांगकांग से बड़ी समस्या हाल के स्थानीय चुनाव और इसके परिणाम बन गए हैं। दरअसल, जिस तरह से इस चुनाव में 18 जिला परिषदों में से 17 पर लोकतंत्र समर्थक सदस्यों ने कब्जा जमाया है उसने राष्ट्रपति की समस्या को कहीं अधिक बढ़ा दिया है। यह समस्या इस लिहाज से भी बढ़ गई है क्योंकि हांगकांग में जो आंदोलन प्रत्यर्पण बिल को लेकर शुरू हुआ था वह अब चीन से आजादी में बदल चुका है। वहींं दूसरे देशों से भी इस आंदोलन को समर्थन मिल रहा है।
अमेरिकी संसद में बिल पास अमेरिका ने तो इसको लेकर एक बिल भी पास कर दिया है। इस बिल के पास हो जाने के बाद अमेरिका चीन पर कुछ प्रतिबंध तक लगा सकता है। लेकिन यदि ऐसा हुआ तो यह दोनों देशों के बीच तनाव की बड़ी वजह बन जाएगा। अब भी इन दोनों देशों में ट्रेड वार को लेकर जबरदस्त तनातनी का माहौल है। चीन की तरफ से बेहद सख्त लहजे में यह कहा जा चुका है कि अमेरिका इस मामले में अपनी टांग न अड़ाए, चीन इसको बर्दाश्त नहीं करेगा।
स्थानीय चुनाव में आंदोलनकारियों की जीत
इस मामले में जानकार मानते हैं कि स्थानीय चुनाव में हुआ 71 फीसद से अधिक का मतदान सीधेतौर पर आंदोलनकारियों को अपना समर्थन दर्शाता है। ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का कहना है कि अप्रैल में हांगकांग में प्रत्यर्पण बिल के खिलाफ जो आंदोलन शुरू हुआ था उसके बाद यह यहां की सरकार के लिए पहली परीक्षा थी। इस चुनाव के परिणाम को फिलहाल तो हांगकांग की नेता कैरी लाम ने स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा है कि वो जनता के प्रतिनिधियों की राय पर गंभीरता से विचार करेंगी। आपको बता दें कि हांगकांग में पिछले छह माह से जो आंदोलन चल रहा है उसकी शुरुआत कैरी लाम की ही वजह से हुई थी। लाम चीन की कम्यूनिस्ट सरकार की घोर समर्थक हैं। वहीं वर्तमान में हांगकांग की संसद में चीन की सरकार की समर्थन वाले नेता भी अधिक हैं।
नहीं बदलेगा शी का दृष्टिकोण हांगकांग में चल रहे आंदोलन को लेकर प्रोफेसर पंत का कहना है कि इससे बीजिंग पर कम ही असर पड़ेगा। इतना ही नहीं वह ये भी मानते हैं कि इस आंदोलन से राष्ट्रपति शी चिनपिंग के दृष्टिकोण में बदलाव आए इसकी गुंजाइश बेहद कम है, बल्कि इस आंदोलन से उनका रुख और कड़ा जरूर हो सकता है। उनके मुताबिक हांगकांग को लेकर उनका अनुमान कहीं न कहीं गलत साबित हुआ है। प्रोफेसर पंत के लिए हांगकांग की समस्या शी चिनपिंग के लिए इसलिए भी बड़ी है क्योंकि राष्ट्रपति बनने से पहले कम्यूनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो समिति में वो हांगकांग के प्रभारी थे, लिहाजा यहां के आंदोलन पर काबू पाना उनके लिए नाक का सवाल हो गया है।
इनसे बढ़ी परेशानी उनके मुताबिक हाल ही में चीन और वहां के अल्पसंख्यकों को लेकर जो दस्तावेज लीक हुए हैं उन्होंने भी शी की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। इन दस्तावेजों से इस बात का खुलासा हुआ है कि चीन में अल्पसंख्यक आतंकवाद पर लगाम लगाने के नाम पर निशाना बन रहे हैं। दूसरे देशों की संसद में अपने जासूसों की तैनाती की खबर ने भी उनके प्रति अविश्वास को बढ़ाने का काम किया है। यह मामला तब सामने आया जब आस्ट्रेलिया की मीडिया में यह खबर आई कि चीन ने संसद की जासूसी के लिए वहां जासूस तैनात करने की कोशिश की है। इस जासूस ने आस्ट्रेलिया से शरण मांगी है और कहा है कि विभिन्न देशों में मौजूद उसके दूतावासों में जासूसी की गई है। इसके सुबूत भी उसने आस्ट्रेलिया को सौंपे हैं। इससे भी चीन की साख कम हुई है।
शी के कई बन गए दुश्मन पंत मानते हैं कि चीन के सर्वोच्च शासक के तौर पर खुद को स्थापित करने के लिए चीन के राष्ट्रपति ने अपने कई दुश्मन भी बना लिए हैं। वहीं शी अपने दुश्मनों से बेहद निर्मम तरीके से निपटते हैं। उनके लिए यह वक्त बेहद खराब है। चीन कई तरह से घिरा हुआ है। उसकी आर्थिक हालत भी पहले के मुकाबले काफी खराब हुई है। अर्थव्यवस्था की बात करें तो इसमें पहले से ज्यादा गिरावट आ गई है। इसकी एक वजह हांगकांग भी है। दूसरी तरफ ओबीओर और सीपैक को लेकर भी अमेरिका पहले से कहीं ज्यादा आक्रामक होता दिखाई दे रहा है। इसको लेकर अमेरिका पाकिस्तान को नसीहत देकर अपने साथ मिलाने से भी पीछे नहीं हट रहा है। अरबों डॉलर के इस निवेश को अब शी के अंहकार के तौर पर पूरा विश्व देख रहा है।
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