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पश्चिम चीन: मोनास्ट्री से जुड़े स्कूल को तिब्बतियों ने किया ध्वस्त, किया गया था मजबूर

पिछले माह पश्चिमी चीन के सिचुआन प्रांत स्थित कारजे प्रिफेक्चर में द्रागो मोनास्ट्री से जुड़े स्कूल को ध्वस्त करने के लिए तिब्बती स्कूल अधिकारियों को मजबूर किया गया। दक्षिण भारत में रहने वाले एक सन्यासी के हवाले से रेडियो फ्री एशिया ने यह जानकारी दी।

By Monika MinalEdited By: Updated: Sat, 06 Nov 2021 11:31 PM (IST)
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मोनास्ट्री से जुड़े स्कूल को ध्वस्त करने के लिए तिब्बतियों को किया गया मजबूर

 सिचुआन, एएनआइ। पिछले माह पश्चिमी चीन के सिचुआन प्रांत स्थित कारजे प्रिफेक्चर में द्रागो मोनास्ट्री से जुड़े स्कूल को ध्वस्त करने के लिए तिब्बती स्कूल अधिकारियों को मजबूर किया गया। दक्षिण भारत में रहने वाले एक सन्यासी के हवाले से रेडियो फ्री एशिया ने यह जानकारी दी। RFA के तिब्बती सर्विस के अनुसार, चीनी अधिकारियों द्वारा मंदिर पर भूमि उपयोग कानून का उल्लंघन करने के आरोप लगाए जाने के बाद यह यह फैसला सामने आया है।

चीन द्वारा तिब्बतियों के दमन सिलसिला जारी है। इससे पहले चीनी अधिकारियों ने क्विंघाई प्रांत में स्थित बौद्ध मठों में छापा मारकर वहां रह रहे युवा भिक्षुओं को पूजा-साधना छोड़कर वापस घर जाने के लिए कहा है। अधिकारी चीन में लागू धार्मिक मामलों के नियम का हवाला देते हुए एक अक्टूबर से यह कार्य कर रहे हैं।

कालसांग नोर्बु (Kalsang Norbu) ने बताया कि द्रागो मोनास्ट्री द्वारा संचालित स्कूल गाडेन राबटेन नामग्यालिंग (Gaden Rabten Namgyaling) की चीनी अधिकारियों ने अक्टूबर के अंत में निंदा की थी। इसके बाद मोनास्ट्री के अधिकारियों ने स्कूल को तीन दिन के भीतर ध्वस्त करने का निर्देश दे दिया और यह भी चेताया कि ऐसा न होने पर सरकार की टीम स्कूल को ध्वस्त कर देगी।

स्कूल के अधिकारी व वालंटियर स्कूल को गिराने के लिए एकत्रित हुए। नोर्बु ने इसके वीडियो व तस्वीरें शेयर किए। भूमि कानून के तहत केवल स्थानीय बिल्डिंग ही आते हैं। नोर्बु ने यह भी कहा कि ध्वस्त करने की प्रक्रिया अनुचित थी। उन्होंने यह भी सूचित कि मोनास्ट्री संचालित इस स्कूल को दोबारा 2014 और 2018 में बनाया गया। RFA से बातचीत में नोर्बु ने कहा, चीनी सरकार ने इस चार साल में 18 साल से कम उम्र वाले 20 सन्यासियों को देश से निकाल दिया। 1950 में चीनी सैनिकों ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया। इसके बाद यहां हिंसक झड़पें हुईं। 14वें दलाई लामा ने भारत जाकर शरण ली।