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China-Taiwan Conflict: एक-दूसरे पर दावा है तनाव की मुख्य वजह, अमेरिका कैसे बना झगड़े का हिस्सा

China-Taiwan Conflict ड्रैगन और ताइवान के बीच विवाद की वजह सदियों पुराने शुरू हुए एक विवाद से हुई थी जो आज भी बरकरार है। ड्रैगन ही नहीं ताइवान भी चीन पर अपना दावा करता रहता है। इन झगड़े में अमेरिका की एंट्री काफी बाद में हुई।

By Amit SinghEdited By: Updated: Thu, 04 Aug 2022 05:59 PM (IST)
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China-Taiwan Conflict: ताजा विवाद की वजह अमेरिकी नेता नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा है। फोटो - फाइल
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। चीन और ताइवान के बीच की तल्खी बहुत पुरानी है। इसकी शुरूआत ताइवान के अस्तित्व के साथ हुई। विवाद की मुख्य वजह दोनों देशों का एक-दूसरे पर दावा है। इस विवाद में चीन का पलड़ा भारी नजर आता है। बावजूद ताइवान को अमेरिकी समर्थन की वजह से ड्रैगन अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाता। बुधवार को अमेरिकी हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा ने ड्रैगन को एक बार फिर भड़का दिया है। चीन लंबे समये से नैंसी को अपना दुश्मन मानता है। जानते हैं- क्या है चीन-ताइवान विवाद की वजह और कैसे हुई अमेरिका की एंट्री?

नैंसी की ताइवान यात्रा पर भड़का चीन

नैंसी की ताइवान यात्रा से चीन इस कदर भड़का हुआ है कि इस द्वीप के चारों तरफ पानी और आसमान में जबरदस्त युद्धाभ्यास कर, चेतावनी दे रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) पहले ही कह चुके हैं कि वह ताइवान को बल पूर्वक भी चीन का हिस्सा बना सकते हैं। वहीं नैंसी पेलोसी ने बुधवार को ताइवान की यात्रा के दौरान चीन को सख्त संदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि अमेरिका, ताइवान को अकेला नहीं छोड़ेगा। अमेरिका हर परिस्थिति में ताइवान के साथ है।

वास्तविक चीन में असली सरकार किसकी?

ताइवान का आधिकारिक नाम, रिपब्लिक ऑफ चाइना है। करीब सौ साल पहले मौजूदा चीन को इसी नाम से जाना जाता था। चीन में 1644 में चिंग वंश, जिसे क्विंग वंश भी कहा जाता है का शासन था। वर्ष 1911 में चीन में चिन्हाय क्रांति हुई, जिसमें चिंग वंश सत्ता से बेदखल हो गया। इसके बाद राष्ट्रवादी क्यूओमिनटैंग पार्टी या कॉमिंगतांग पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच चीन की सत्ता पर काबिज होने का झगड़ा शुरू हुआ। आखिरकार कॉमिंगतांग पार्टी सरकार बनाने में कामयाब हुई और उसने चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा। यहीं से दोनों राजनीतिक दलों के बीच झगड़े की शुरूआत हो चुकी थी।

73 वर्ष पहले गृहयुद्ध में बना ताइवान

करीब 73 वर्ष पहले वर्ष 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी ने एक बार फिर माओत्से तुंग के नेतृत्व में देश की कॉमिंगतांग सरकार के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। इस विद्रोह ने गृहयुद्ध का रूप ले लिया। इसमें कॉमिंगतांग पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और उसके बचे हुए लोगों ने ताइवान वाले हिस्से में जाकर शरण ली। इस द्वीप पर कॉमिंगतांग पार्टी के लोगों ने अपनी अलग सरकार बनाकर, इसका आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रख दिया, जो पहले चीन का नाम हुआ करता था। तब तक चीन की मुख्यभूमि पर काबिज कम्युनिस्ट सरकार उसका नाम बदलकर रिपब्लिक ऑफ चाइना कर चुकी थी। दोनों तरफ के लोग चीन और ताइवान को एक मानते हैं और दोनों तरफ की सरकारें पूरे चीन का राजनीतिक प्रतिनिधित्व करने का दावा करती हैं। यही वजह है कि दोनों तरफ की सरकारें एक-दूसरे की भूमि पर अपने हक का दावा करती रहती हैं। ताइवान क्षेत्रफल, सैन्यबल और अन्य संसाधनों के मामले में चीन से काफी पीछे है, लिहाजा ड्रैगन वक्त-वक्त पर अपनी मनमानी करता रहता है।

ड्रैगन की वन चाइना पॉलिसी

ताइवान पर अपना हक जताने वाले चीन ने इसी उद्देश्य से 'वन चाइना पॉलिसी' तैयार की है। इसका मतलब है कि चीन एक ही, जिसका शासन शी जिनपिंग के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी करती है। अगर किसी देश को चीन या ताइवान से राजनयिक संबंध रखने हैं, तो उसके लिए शि जिनपिंग के साथ ही समझौता करना पड़ेगा। वन चाइना पॉलिसी के तहत चीन से राजनयिक संबंध रखने वाले देश को ताइवान सरकार से अपने संबंध खत्म करने होंगे। एक-दूसरे की जमीन पर अपना-अपना दावा और वन चाइना पॉलिसी, चीन व ताइवान के बीच विवाद की मुख्य वजह है।

चीन को अमेरिका ने वर्षों तक नहीं दी थी मान्यता

चीन की मुख्य भूमि पर कम्युनिस्ट सरकार की सत्ता थी, बावजूद अमेरिका ने कई वर्षों तक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को अलग देश के तौर पर मान्यता नहीं दी थी। इसकी जगह अमेरिका, ताइवान की सरकार को ही वास्तविक चीनी सरकार का दर्जा देता था। चीन ने वर्ष 1950 में ताइवान के कुछ बाहरी इलाकों पर हमला किया था, जिसका जवाब देने के लिए अमेरिका ने ताइवान के समर्थन में अपने जहाज भेज दिए थे। वर्ष 1976 तक यही स्थिति बनी रही।

अमेरिका ने चीन को मान्यता दी, लेकिन ताइवान से संबंध नहीं तोड़ा

1976 में समाज सुधारक डेंग जिआओपिंग ने चीन की सत्ता संभाली। उनके विचारों से प्रभावित हो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर, चीन को मान्यता देने और संबंध स्थापित करने को तैयार हो गए। वर्ष 1979 में मौजूदा चीन और अमेरिका के बीच समझौता हुआ, जिसमें जिमी कार्टर ने वन चाइन पॉलिसी को स्वीकार कर लिया। इस समझौते के बाद अमेरिकी सरकार ने एक कानून पास किया। इस कानून में तय किया गया कि अमेरिका, ताइवान को उसकी रक्षा के लिए हथियार उपलब्ध कराता रहेगा। लिहाजा वन चाइना पॉलिसी स्वीकारने के बावजूद, अमेरिका के ताइवान से अनौपचारिक संबंध बने रहे। इसीलिए चीन, अमेरिका से भी चिढ़ता है।

ताइवान पर जापान का कब्जा

1894 में चीन के क्विंग राजवंश और जापानी साम्राज्य के बीच युद्ध हुआ, जिसे पहला सीनो-जापान युद्ध भी कहा जाता है। इसके बाद 1895 में हुए एक समझौते के तहत ताइवान पर जापान ने कब्जा जमा लिया। जापान ने इस द्वीप पर करीब 50 वर्ष तक (1945 तक) राज किया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान चीन ने इस द्वीप पर दोबारा अपना कब्जा जमा लिया। इसके बाद यहां के दो प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच शुरू हुई सत्ता की जंग ने इस द्वीप को अलग देश ताइवान बना दिया।