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कोरोना वायरस की उत्‍पत्ति पर जानें क्‍या है विशेषज्ञों की राय और रिसर्च रिपोर्ट

कोरोना वायरस की उत्‍पत्ति पर दुनिया भर की कई साइंस मैगजीन और दूसरी रिसर्च पेपर ने पर्दा उठा दिया है। इनके मुताबिक इसकी उत्‍पत्ति पूरी तरह से प्राकृतिक थी।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 21 Apr 2020 08:19 AM (IST)
कोरोना वायरस की उत्‍पत्ति पर जानें क्‍या है विशेषज्ञों की राय और रिसर्च रिपोर्ट
नई दिल्‍ली। कोरोना वायरस को लेकर काफी कुछ कहा जा चुका है। इसकी उत्‍पत्ति को लेकर अमेरिका और चीन के बीच में काफी तीखी बयानबाजी तक हुई। दोनों ने ही एक दूसरे पर इस वायरस को बनाकर फैलाने के आरोप भी लगाए। लेकिन बाद में तस्‍वीर धीरे-धीरे साफ होने लगी और दुनिया भर की मीडिया और वैज्ञानिकों ने इसके किसी भी तरह साजिश के तौर पर बनाए जाने का खंडन किया। इतना ही नहीं मीडिया और साइंस जर्नल के जरिए जो रिसर्च पेपर सामने आए उनमें भी इसके प्राकृतिक होने की बात साबित हुई। जर्मनी के अखबार डायचे वेले के डिजिटल एडिशन में इस पर एक विस्‍तृत रिपोर्ट प्रकाशित कर इससे पर्दा उठाने की कोशिश की है। इसमें ये भी सामने निकलकर आया कि शोधकर्ताओं को हॉर्सशू (HorseShoe) प्रजाति के चमगादड़ों के मल में इस वायरस का पता चला था। 

सबसे पहले कोरोना वायरस को एक साजिश बताने वाली थ्‍योरी का खंडन वाशिंगटन पोस्‍ट ने ही किया था। इसके रिसर्च रिपोर्ट के हवाले से लिखा गया कि ये कोई साजिश का नतीजा नहीं बल्कि प्राकृतिक था। इसके बाद नेचर मैगजीन में भी इसको लेकर एक रिसर्च पेपर पब्लिश हुआ जो क्रिस्टियान एंडरसन ने लिखा था। इसमें भी इस वायरस के प्राकृतिक होने की बात कही गई थी।

आपको यहां पर ये भी बता दें कि चीन की जिस लैब को लेकर पश्चिमी मीडिया ने सवाल उठाए थे उस पर डेली मेल की एक खबर में बताया गया कि वुहान की ये लैब सीक्रेट नहीं है, बल्कि वहां होने वाली रिसर्च साइंस मैग्‍जीनों में छपती रहती हैं। इतना ही नहीं इसमें ये भी कहा गया था कि यहां पर होने वाली लैब में पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक भी शामिल होते हैं और इस लैब की पार्टनर के तौर पर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास की गैलवेस्टन नेशनल लैब काम करती है। इसके अलावा अमेरिका की इको हेल्थ अलायंस भी इसकी एक पार्टनर है। डेली मेल कर रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि यहां पर होने वाली रिसर्च में अमेरिकी सरकार भी निवेश करती है।

लांसेट और साइंस मैगजीन में छपे लेख में चीन के एक अधिकारी के उस बयान पर सवाल उठाया गया जिसमें कहा गया था कि ये वायरस वुहान की मीट मार्केट से फैला था। इन दोनों मैगजीन में छपे लेख में कहा गया कि कोविड-19 संक्रमण के शुरुआती 41 मामलों में से 13 कभी वुहान के मीट बाजार गए ही नहीं थे। इस सवाल का जवाब अमेरिका की जॉर्जटन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के डेनियल लूसी ने एक इंटरव्यू के दौरान दिया। उनका कहना था कि ये काफी हद तक मुमकिन है कि जिन लोगों का ताल्‍लुक मीट मार्केट से नहीं था वो उन व्‍यक्तियों के संपर्क में आए होंगे जो इससे संक्रमित थे। साथ ही उन्‍होंने ये भी कहा कि इस वायरस की शुरुआत दिसंबर में न होकर नवंबर में हो चुकी थी।

यहां पर फिर एक सवाल ने जन्‍म लिया था कि आखिर वुहान तक ये वायरस कैसे पहुंचा। इसका जवाब देने से पहले आपको बता दें कि वुहान की मीट मार्केट चीन की सबसे बड़ी मीट मार्केट में से एक है। यहां पर कई तरह के जानवरों का मांस बेचा जाता है। इनमें चमगादड़ और पैंगोलिन भी शामिल हैं, जिसका उपयोग स्‍थानीय स्‍तर पर दवा बनाने के लिए भी होता है। वुहान के ही प्रोफेसर शी झेंगली ने नेचर मैगजी के अपने एक लेख में लिखा था कि उन्‍होंने करीब 28 गुफाओं में जाकर चमगादड़ों का मल एकत्रित किया था। इसके बाद उन्‍होंने चमगादड़ के वायरसों का एक पूरा आर्काइव तैयार किया। उनके इस शोध में नोवेल कोरोना वायरस का भी जिक्र था जो हॉर्सशू प्रजाति के चमगादड़ों में पाया गया था।

चीन में इस वायरस का संक्रमण फैलने के बाद प्रोफेसर शी और उनकी टीम ने मिलकर इसका बायोस्‍ट्रक्‍चर तैयार किया और इसको पब्लिश भी किया। बाद में इस शोध के आधार पर चीन में कोरोना वायरस के टीके के बनाने की प्रक्रिया भी शुरू हो सकी। इसके बाद चाइना मॉर्निंग पोस्ट से भी प्रोफेसर शी ने इन अनुभवों को साझा किया था। इको हेल्थ अलायंस के अध्यक्ष पीटर दाचाक ने अमेरिकी रेडियो चैनल डेमोक्रेसी नाउ को दिए इंटरव्यू में लैब में वायरस को बनाने की बात को कोरी बकवास करार दिया था।

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