चीन की आर्थिक रफ्तार में लगातार कमी आ रही है। इतना ही नहीं उसका राजकोषीय घाटा भी रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। इसकी कोई एक वजह नहीं है। चीन को इस स्थिति में लाने में राष्ट्रपति शी की गलत नीतियों का भी योगदान रहा है।
By Jagran NewsEdited By: Kamal VermaUpdated: Fri, 28 Oct 2022 10:03 AM (IST)
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। चीन भले ही खुद को विश्व की एक बड़ी ताकत के रूप में पेश करता है, लेकिन उसकी अंदरूणी हालत काफी पस्त है। इसकी पुष्टि और किसी ने नहीं बल्कि खुद चीन की सरकार की तरफ से जारी वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट कर रही है। इस रिपोर्ट में चीन के राजकोषीय घाटे के 1 हजार अरब डालर तक पहुंचने की बात कही गई है। खास बात ये है कि ये अब तक का न सिर्फ सबसे बड़ा राजकोषीय घाटा है बल्कि बीते एक वर्ष के दौरान इसमें करीब 5 गुना की वृद्धि हुई है। चीन के सरकारी आंकड़े इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि चीन में सब कुछ ठीक नहीं है और राष्ट्रपति शी चिनफिंग की नीतियां देश को आर्थिक रफ्तार नहीं दे सकी हैं। अलबत्ता, उनकी नीतियों की बदौलत विश्व में चीन की छवि को धक्का जरूर लगा है।
तीसरी बार शी को कमान
राष्ट्रपति शी चिनफिंग की ही बात करें तो उन्हें तीसरी बार देश की कमान सौंपी जा चुकी है। उनके बीते 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान विश्व में चीन की छवि एक आक्रामक देश और नेता की रही है। उनके कार्यकाल में चीन का बाहरी दुनिया से अलगाव भी बढ़ा है। बात चाहे भारत से सीमा विवाद समेत डोकलाम और लद्दाख में हुए तनाव की हो या फिर अमेरिका से दक्षिण चीन सागर समेत अन्य मुद्दों की या फिर ताइवान से अलगाव की, सभी अपने चरम पर पहुंचते दिखाई दिए हैं। चीन की अंदरुणी राजनीति में भी काफी उठापठक दिखाई दी है। यही वजह है कि चीन के पीएम ली किकयांग की जगह अब ये पद दूसरे के हाथों में दिया गया है।
बाहरी दुनिया से चीन के रिश्ते
केवल बाहरी दुनिया से ही चीन के रिश्ते राष्ट्रपति शी के एक दशक के कार्यकाल में खराब नहीं हुए हैं बल्कि चीन के अंदर भी शी की नीतियों के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन देखने को मिला है। हांगकांग, शिनजियांग समेत दूसरे प्रांतों में हुए विरोध-प्रदर्शन इस बात की गवाही दे रहे हैं। इन सभी का असर कहीं न कहीं चीन की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक रूप से पड़ा है, जिसके चलते उसकी आर्थिक वृद्धि की रफ्तार पर ब्रेक लग गया है। इसकी कुछ और भी वजह रही हैं।
रियल सेक्टर को उठाने में नाकाम रहे शी
चीन की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान वहां के रियल सेक्टर का होता है। राष्ट्रपति शी चिनफिंग के एक दशक के कार्यकाल के दौरान ये सेक्टर लगातार नीचे गया है। इसको बचाने और ऊपर लाने राष्ट्रपति शी की सभी कोशिशें लगातार विफल साबित हुई हैं। इतना ही नहीं चीन में नए और पुराने घरों की कीमतों में लगातार गिरावट आने से भी इस सेक्टर को काफी नुकसान झेलना पड़ा है। इतना ही नहीं इस दौरान रियल सेक्टर में मांग और पूर्ति के बीच एक बड़ा फासला भी दिखाई दिया है। चीन की आर्थिक रफ्तार को कम करने में ये एक बड़ी वजह रही है। इस दौरान चीन का शेयर बाजार भी धड़ाम हुआ है।
करों में छूट का गलत नतीजा
राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीते 1 दशक के कार्यकाल के दौरान करों में जो छूट दी गई, उसका भी नतीजा गलत ही रहा है। बढ़ती महंगाई को काबू करने में भी राष्ट्रपति शी चिनफिंग नाकाम साबित हुए हैं। करों में छूट का असर भी देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार को तेज करने में पूरी तरह से नाकाम रहा है। इसकी वजह से ये रफ्तार भले ही नहीं बढ़ी लेकिन राजकोषीय घाटा जरूर बढ़ गया है। सरकारी आंकड़ों में इस बात की पुष्टि की गई है कि सरकार के खर्चों में भी इस दौरान तेजी देखने को मिली है।
जीरो कोविड पालिसी
देश में व्याप्त कोरोना महामारी को रोकने के लिए
राष्ट्रपति शी चिनफिंग की नीतियां आर्थिक स्थिति को बहाल करने में गलत साबित हुई हैं। इसको लेकर समय समय पर नागरिकों ने भी विरोध जताया है। दरअसल, सरकार ने चीन में जीरो कोविड पालिसी लागू की हुई है। इसके तहत कोरोना का मामला सामने आने पर लाकडाउन लगाने का प्रावधान है। देश के 20 करोड़ लोग अब भी लाकडाउन के चलते घरों में रहने को मजबूर हैं। इसकी वजह छोटे और बड़े कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। लगातार जारी लाकडाउन ने करोड़ों लोगों की नौकरियों को छीन लिया है। इन सभी ने देश की आर्थिक रफ्तार पर ब्रेक लगाया है।
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