आज का युग युद्ध का नहीं, बातचीत और कूटनीति ही समाधान का एकमात्र रास्ता है- आसियान सम्मेलन में बोले पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार (7 सितंबर) को पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन शामिल होने के लिए इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता पहुंचे। सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को मजबूत करने के लिए संयुक्त प्रयासों की जरूरत है। उन्होंने यह बातें दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता को लेकर कही हैं।
By Jagran NewsEdited By: Abhinav AtreyUpdated: Thu, 07 Sep 2023 02:11 PM (IST)
जकार्ता, एजेंसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार (7 सितंबर) को पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन शामिल होने के लिए इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता पहुंचे। सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को मजबूत करने के लिए संयुक्त प्रयासों की जरूरत है। उन्होंने यह बातें दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता को लेकर कही हैं।
दरअसल, पिछले दिनों चीन ने पिछले दिनों मलेशिया, वियतनाम और फिलीपींस जैसे कई आसियान सदस्य देशों को "चीन के मानक मानचित्र" में दर्शाया था। पीएम मोदी की ताजा टिप्पणी इसी को लेकर आई है। 28 अगस्त को चीन ने "चीन के मानक मानचित्र" का 2023 संस्करण जारी किया थी। इसमें चीन ने ताइवान, दक्षिण चीन सागर, अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया है। हालांकि, भारत ने चीन के 'नक्शे' को खारिज कर दिया है और इस पर चीन के सामने कड़ा विरोध दर्ज कराया है।
सबकी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति-सुरक्षा और समृद्धि में रुचि
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि क्षेत्र के सभी देशों की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और समृद्धि में रुचि है। मोदी ने कहा, "समय की मांग एक इंडो-पैसिफिक है जहां UNCLOS (समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन) सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून सभी देशों पर समान रूप से लागू होता है। जहां नेविगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता है और जहां निर्बाध वैध वाणिज्य है सभी का लाभ।"मोदी ने कहा, "जैसा कि मैंने पहले कहा है, आज का युग युद्ध का नहीं है। बातचीत और कूटनीति ही समाधान का एकमात्र रास्ता है।"
भारत का मानना है कि...
उन्होंने कहा, "भारत का मानना है कि आचार संहिता दक्षिण चीन सागर के लिए प्रभावी होनी चाहिए, यूएनसीएलओएस के अनुरूप होनी चाहिए और इसमें उन देशों के हितों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए जो यहां चर्चा का हिस्सा नहीं हैं।"