2035 तक अपने परमाणु हथियारों की संख्या तीन गुना करके 900 करने की योजना बना रहा चीन: रिपोर्ट
चीन की योजना 2035 तक अपने परमाणु हथियार के भंडार को तीन गुना करके 900 तक करने की है क्योंकि ताइवान पर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तनाव और बढ़ने की उम्मीद है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी देश की सैन्य क्षमताओं को लगातार मजबूत कर रही है।
By AgencyEdited By: Achyut KumarUpdated: Mon, 13 Feb 2023 05:31 AM (IST)
टोक्यो, एएनआई। चीन 2035 तक अपने परमाणु हथियार के भंडार को तीन गुना करके 900 तक करने पर विचार कर रहा है, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ताइवान पर तनाव और बढ़ने की उम्मीद है। क्योदो न्यूज ने इस मामले के करीबी स्रोत का हवाला देते हुए शनिवार को यह जानकारी दी।
रिपोर्ट में चीनी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा तैयार किए गए खाके को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और सेना प्रमुख ने मंजूरी दे दी है, जो वाशिंगटन के खिलाफ बीजिंग की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने के लिए उत्सुक हैं।
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बता दें, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी देश की सैन्य क्षमताओं को मजबूत कर रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2022 में कहा था कि बीजिंग 2035 तक अपने परमाणु हथियारों के भंडार को बढ़ाकर 1,500 करने की राह पर है। उसका लक्ष्य अपनी सेना के आधुनिकीकरण को पूरा करना है।
क्योडो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ विदेशी मामलों के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि अगर चीन अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लक्ष्य को हासिल कर लेता है, तो वह अपना 'नो फर्स्ट यूज' छोड़ सकता है। सूत्रों ने कहा कि चीन द्वारा रखे गए परमाणु हथियार 2027 में बढ़कर 550 हो जाने की संभावना है, जो देश की सशस्त्र बलों की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ है। वहीं, इनकी संख्या 2035 में बढ़कर 900 हो जाएगी।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़ों का हवाला देते हुए क्योडो न्यूज की रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस के पास 5,977 परमाणु हथियार हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका के पास 5,428 परमाणु हथियार हैं।क्योडो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, चीन और अमेरिका के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं, खासकर अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के पूर्व अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी के अगस्त में ताइवान का दौरा करने के बाद। ऐसे में ऐसी आशंकाएं बढ़ रही हैं कि निकट भविष्य में ताइवान एशिया प्रशांत क्षेत्र में एक सैन्य फ्लैश प्वाइंट बन सकता है, क्योंकि चीन इस द्वीप को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है। 1949 में गृहयुद्ध के कारण विभाजित होने के बाद से चीन और ताइवान अलग-अलग शासन कर रहे हैं।
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