शांति की ओर बढ़ रहे उत्तर और दक्षिण कोरिया, लेकिन जापान को सता रहा डर
27 अप्रैल को बैठक के बाद दोनों नेताओं ने इस बात को स्पष्ट रूप से कहा कि दोनों देश फिर से एक होने वाले हैं। लेकिन इन सभी के बीच जापान अब भी आशंकित दिखाई दे रहा है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। कोरियाई प्रायद्वीप में फिलहाल शांति की जो बयार बहती दिखाई दे रही है उसके लिए यहां के लोगों ने काफी लंबा इंतजार किया है। इस समय को देखने से पहले दोनों देशों के लोग जबरदस्त तनाव से गुजरे हैं। लेकिन फिलहाल यहां सबकुछ अच्छा-अच्छा दिखाई दे रहा है। 27 अप्रैल को उत्तर और दक्षिण कोरिया के प्रमुखों की बैठक के बाद जहां किम जोंग ने दोबारा परमाणु परीक्षण न करने संबंधी दस्तावेज पर साइन किए वहीं यह भी साफ कर दिया कि मई तक वह अपनी परमाणु परीक्षण की साइट को बंद कर देगा। उत्तर कोरिया ने इसकी शुरुआत भी कर दी है। उत्तर कोरिया के किसी नेता को 'बॉर्डर लाइन' पार करने में 65 साल लगे और ऐसी शिखर वार्ता के लिए दोनों देशों ने 11 साल लंबा इंतज़ार किया।
एक टाइम जोन
इतना ही नहीं इस मुलाकात के बाद किम ने दोनों देशों का एक टाइम जोन दोबारा करने की बात भी कही है। वर्ष 2015 में किम ने अपना टाइम जोन तक अलग कर लिया था। 27 अप्रैल को बैठक के बाद दोनों नेताओं ने इस बात को स्पष्ट रूप से कहा कि दोनों देश फिर से एक होने वाले हैं। इस बैठक के बाद जहां अमेरिका ने भी उत्तर कोरिया की तारीफ की है वहीं दक्षिण ने भी किम के कदमों को सार्थक बताया है। लेकिन इन सभी के बीच जापान अब भी आशंकित दिखाई दे रहा है। आपको बता दें कि जब किम ने अपनी परमाणु साइट बंद करने और परीक्षण न करने की बात कही थी तब भी जापान ने इस बयान को खारिज कर दिया था। जापान का साफतौर पर कहना था कि इसका ये अर्थ नहीं है कि अब उत्तर कोरिया की मिसाइलें उसका रुख नहीं करेंगी, जैसा कि पहले करती रही हैं।
किम की मिसाइलों का रुख जापान की ओर
गौरतलब है कि उत्तर कोरिया ने जितने मिसाइल परीक्षण किए उनमें से ज्यादातार मिसाइलों का रुख जापान की ओर था। इनमें से कुछ जापान के विशेष आर्थिक जोन के पास गिरी थीं। इस लिहाज से जापान का डर कहीं न कहीं सही दिखाई देता है। इसको समझने कुछ समय पहले जाना होगा। दरअसल, यदि एक वर्ष पहले नजर घुमाई जाए तो याद आ जाएगा कि किम ने जितनी बार भी मिसाइल परीक्षण किए उनकी दिशा तो जापान की ओर थी ही बल्कि इसको लेकर किम ने कई बार तीखे बयान भी दिए थे। वहीं दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया को लेकर उन्होंने कभी तीखी बयानबाजी शायद ही कभी की। इसके अलावा अमेरिका को लेकर उनका रवैया हमेशा से ही आक्रामक रहा।
कभी जापान का हिस्सा थे उत्तर और दक्षिण कोरिया
आपको बता दें कि उत्तर और दक्षिण कभी जापान का ही हिस्सा हुआ करते थे। साल 1910 से 1945 तक कोरियाई प्रायद्वीप पर जापान का शासन था। दूसरे विश्व युद्ध में जापान के हथियार डालने के बाद सोवियत सेना ने उत्तरी हिस्से और अमरीका ने दक्षिणी हिस्सा को अधिकार में ले लिया था। 1948 में दोनों हिस्सों ने अपनी आजादी का एलान किया। इसके बाद भी दोनों के बीच लगातार तनाव कायम रहा। बीते करीब तीन दशकों में दोनों देशों के बीच आर्थिक मोर्चे पर भी काफी गहरी खाई है। दक्षिण कोरिया आर्थिक और तकनीकी तौर पर उत्तर से कहीं आगे है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जहां दक्षिण कोरिया के पास आर्थिक ताकत है वहीं उत्तर कोरिया के पास परमाणु शक्ति है। ऐसे में यदि ये दोनों एक हुए तो काफी मजबूत राष्ट्र बन सकते हैं। इनकी यही मजबूती जापान के लिए सहीं मायने में खतरा बनी हुई है।
सुरक्षा के लिए खतरा
जापान को कहीं न कहीं इस बात का भी डर है कि यदि ये दोनों एक हो गए तो भविष्य में उसके लिए आर्थिक और सुरक्षा के लिहाज से खतरा बन सकते हैं। इसको लेकर सबसे बड़ी वजह ये है यदि ये दोनों देश एक होते हैं तो किम की भूमिका क्या होगी और कौन देश की सत्ता पर काबिज होगा। यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब फिलहाल किसी के पास भी नहीं है। वहीं दूसरी तरफ उत्तर कोरिया के साथ पूरी तरह से चीन खड़ा हुआ है जो हर तरह से उसके साथ है। उत्तर कोरिया को चीन के समर्थन की कई बड़ी वजहें हैं। चीन यह जरूर चाहता है कि इस क्षेत्र में शांति स्थापित हो जाए लेकिन दोनों को एक करने के लिए शायद वह तैयार नहीं है। उत्तर कोरिया के अलग देश बने रहते वह ज्यादा अच्छे से अपने काम को अंजाम दे सकता है और जो उसके भविष्य का प्लान है उसको अंजाम तक पहुंचा सकता है। कोरियाई प्रायद्वीप में छाई शांति को लेकर फिलहाल अमेरिका भी दोनों देशों के साथ आ खड़ा हुआ है।
जापान की मुश्किलें डबल
ऐसे में जापान के लिए मुश्किलें डबल हो गई हैं। यहां पर ये भी ध्यान में रखना होगा कि मई में किम जोंग उन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच वार्ता होनी है। इसको लेकर कवायद जोरों पर है। पिछले दिनों उत्तर कोरिया पहुंचे माइक पोंपियो ने भी दोनों के बीच वार्ता को लेकर कई दौर की बैठक की थी। माइक पोंपियो यूं भी काफी तेज तर्रार स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। ईरान को लेकर उनका कड़ा रुख पूरी दुनिया ने देखा है। लेकिन उत्तर कोरिया को लेकर फिलहाल वह शांत दिखाई दे रहे हैं। किम और ट्रंप के बीच होने वाली वार्ता में जापान अपना पक्ष जरूर रखना चाहेगा। इतना ही नहीं वह अपनी सुरक्षा को लेकर जिस तरह से आशंकित है उस पर भी वह अमेरिका को भरोसे में लेना चाहेगा। जापान की पूरी कोशिश होगी कि किम ने अपने यहां पर परमाणु साइट बंद करने और अंतरराष्ट्रीय जांच करवाने की जो बात कही है उसमें उसके नुमाइंदे जरूर शामिल हों। अमेरिका और उत्तर कोरिया आगामी बातचीत में जिस भी पड़ाव पर पहुंचे लेकिन उस वार्ता के केंद्र में एक बिंदु जापान जरूर होगा। वहीं यदि दोनों के बीच कोई समझौते की राह खुलती है तो भी उसकी एक कड़ी जापान जरूर बनेगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो मुमकिन है वह अलग-थलग पड़ जाएगा।