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गंगा-यमुना के जल, राजस्थान के गुलाबी बलुआ पत्थर से बना है अबू धाबी का मंदिर; PM मोदी आज करेंगे उद्घाटन

अबू धाबी का पहला मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों के योगदान से बना वास्तुकला का एक चमत्कार है। भारत से मंदिर के लिए गंगा-यमुना का पवित्र जल और राजस्थान से गुलाबी बलुआ पत्थर ले जाए गए। भारत से पत्थरों को लाने में इस्तेमाल किए लकड़ी के बक्सों से मंदिर का फर्नीचर बनाया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बुधवार को इस मंदिर का उद्घाटन करेंगे।

By Jagran News Edited By: Devshanker Chovdhary Updated: Wed, 14 Feb 2024 12:05 AM (IST)
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बुधवार को इस मंदिर का उद्घाटन करेंगे। (फोटो- एएफपी)
पीटीआई, अबू धाबी। अबू धाबी का पहला मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों के योगदान से बना वास्तुकला का एक चमत्कार है। भारत से मंदिर के लिए गंगा-यमुना का पवित्र जल और राजस्थान से गुलाबी बलुआ पत्थर ले जाए गए। भारत से पत्थरों को लाने में इस्तेमाल किए लकड़ी के बक्सों से मंदिर का फर्नीचर बनाया गया है।

पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बुधवार को इस मंदिर का उद्घाटन करेंगे। मंदिर के दोनों ओर गंगा और यमुना का पवित्र जल बह रहा है जिसे बड़े-बड़े कंटेनरों में भारत से लाया गया है। मंदिर प्राधिकारियों के अनुसार, जिस ओर गंगा का जल बहता है वहां पर एक घाट के आकार का एम्फीथिएटर बनाया गया है।

मंदिर के प्रमुख स्वयंसेवी विशाल पटेल ने कहा, 'इसके पीछे विचार इसे वाराणसी के घाट की तरह दिखाना है जहां लोग बैठ सकें, ध्यान लगा सकें और उनके जहन में भारत में बने घाटों की यादें ताजा हो जाएं। जब पर्यटक अंदर आएंगे तो उन्हें जल की दो धाराएं दिखेंगी जो सांकेतिक रूप से भारत में गंगा और यमुना नदियों को दर्शाती हैं। त्रिवेणी संगम बनाने के लिए मंदिर की संरचना से रोशनी की एक किरण आएगी जो सरस्वती नदी को दर्शाएगी।'

दुबई-अबू धाबी शेख जायेद हाइवे पर अल रहबा के समीप स्थित बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) द्वारा निर्मित यह मंदिर करीब 27 एकड़ जमीन पर बनाया गया है। मंदिर के अग्रभाग पर बलुआ पत्थर की पृष्ठभूमि पर उत्कृष्ट संगमरमर की नक्काशी है, जिसे राजस्थान और गुजरात के कुशल कारीगरों द्वारा 25,000 से अधिक पत्थर के टुकड़ों से तैयार किया गया है। मंदिर के लिए उत्तरी राजस्थान से अच्छी-खासी संख्या में गुलाबी बलुआ पत्थर अबू धाबी लाया गया है।

मंदिर स्थल पर खरीद और सामान की देखरेख करने वाले विशाल ब्रह्मभट्ट ने को बताया कि मंदिर के निर्माण के लिए 700 से अधिक कंटेनरों में दो लाख घन फुट से अधिक पवित्र पत्थर लाए गए हैं। उन्होंने कहा, 'गुलाबी बलुआ पत्थर भारत से लाया गया है। पत्थर पर नक्काशी वहां के मूर्तिकारों ने की है और इसे यहां के श्रमिकों ने लगाया है। इसके बाद कलाकारों ने यहां डिजाइन को अंतिम रूप दिया है।'

लकड़ी के जिन बक्सों और कंटेनर में पत्थरों को अबू धाबी लाया गया, उनका मंदिर में फर्नीचर बनाने में इस्तेमाल किया गया है। बीएपीएस के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रमुख स्वामी ब्रह्मविहारीदास ने कहा, 'मंदिर में प्रार्थना सभागार, कैफेटेरिया, सामुदायिक केंद्र आदि में रखा गया फर्नीचर पत्थरों को लाने में इस्तेमाल किए बक्सों और कंटेनर की लकड़ी से बनाया गया है। मंदिर के कोने-कोने में भारत का अंश है।'

इस मंदिर का निर्माण कार्य 2019 से चल रहा है। मंदिर के लिए जमीन संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने दान में दी है। संयुक्त अरब अमीरात में तीन और ¨हदू मंदिर हैं जो दुबई में स्थित हैं। अद्भुत वास्तुशिल्प और नक्काशी के साथ एक बड़े इलाके में फैला बीएपीएस मंदिर खाड़ी क्षेत्र में सबसे बड़ा मंदिर होगा।

विभिन्न देवताओं के मंदिर

मंदिर में सात मंदिर हैं, जिनमें से प्रत्येक भारत के उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण भागों के विभिन्न देवताओं को समर्पित हैं। इनमें भगवान राम और सीता, भगवान हनुमान, भगवान शिव-पार्वती और गणेश-कार्तिक; भगवान जगन्नाथ, भगवान कृष्ण और राधा, श्री अक्षर पुरुषोत्तम महाराज; भगवान तिरुपति बालाजी और भगवान अयप्पा शामिल हैं।

सबसे पुराने परिवार ने दुबई के मंदिर से जुड़ाव को किया याद

बू धाबी में जब खाड़ी क्षेत्र के इस सबसे बड़े मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है तो इस अवसर पर यूएई में सौ से अधिक वर्षों से रह रहे भारतीय परिवार ने दुबई में स्थित मंदिर से अपने जुड़ाव को याद किया। दीपक भाटिया के दादा उत्तमचंदन भाटिया (वत्रा नाम से लोकप्रिय) 1920 में दुबई पहुंचे थे।

दुबई में अंकल शाप बिल्डिंग मेटेरियल ट्रेडिंग के प्रबंध निदेशक भाटिया ने बताया कि बर दुबई में सबसे पुराना मंदिर है जो लगभग 100 वर्ष पुराना है और यह दुबई में सबसे पुरानी मस्जिद अल-फहिदी के सामने है। उन्होंने कहा, 'मेरे दिवंगत दादा और एक अन्य भारतीय दिवंगत धमनमल इस्सरदास ने इस मंदिर के लिए दिवंगत शेख राशिद बिन सईद अल मकतूम से जमीन हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मंदिर बनने के बाद में दिवंगत शेख सईद बिन मकदूम अल मकदूम (दुबई के वर्तमान शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम के दादा) की अनुमति से वहां मूर्ति रखी गई थी।