सऊदी अरब ने फिर किया धमाका और ले लिया इतना बड़ा फैसला
महिलाओं के हक से जुड़े कई अहम फैसले लेने के बाद अब सऊदी अरब ने फिर से एक सहासिक निर्णय लेकर सभी को चौंका दिया है। इस बार यह फैसला अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। सऊदी अरब खाड़ी के देशों में शुमार एक ऐसा देश बन चुका है जो लगातार कड़े और बड़े फैसले लेकर पूरी दुनिया को चौंका रहा है। पिछले पांच वर्षों के पन्नों को यदि पलट कर देखें तो यह बात साफ हो जाती है कि सऊदी अरब अब किस तरह से अपनी कट्टरवादी सोच या पहचान को पूरी तरह से बदल देना चाहता है। इस दौरान सऊदी अरब ने न सिर्फ महिलाओं को लेकर असाधारण निर्णय लिए हैं बल्कि अपनी इकनॉमी में सुधार को लेकर भी कड़े फैसले लिए हैं। सऊदी अरब द्वारा लिया गया ताजा फैसला इसका ही एक उदाहरण है जिसके तहत खाड़ी देशों में सोमवार को नए साल की शुरुआत एक नई व्यवस्था से की गई है। लंबे समय तक कर-मुक्त कहे जाने वाले खाड़ी देशों में सोमवार से मूल्यवर्धित कर (वैट) व्यवस्था शुरू की गई है। इसे लागू करने वालों में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात सबसे पहले हैं।
तेल ग्राहकों को बड़ा झटका
सऊदी अरब ने नए साल के मौके पर वैट के अलावा पेट्रोल कीमतों में 127 फीसद तक की वृद्धि करके ग्राहकों को एक और झटका दिया है। हालांकि इस वृद्धि की घोषणा पहले से नहीं की गई थी और यह रविवार मध्यरात्रि से ही लागू हो गई है। चार और खाड़ी देश बहरीन, कुवैत, ओमान और कतर भी वैट लगाने के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन वह इस पर अगले साल तक निर्णय लेंगे। पेट्रोल की कीमतों में सऊदी अरब में यह दो साल में दूसरी वृद्धि है। यह अब भी दुनिया में सबसे सस्ते पेट्रोल वाले देशों में से एक है। खाड़ी के तेल उत्पादक देशों ने पिछले दो साल में अपनी आय बढ़ाने और खर्च में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें व्यय को कम करना और कर लगाना शामिल है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की घटती कीमतों ने इन देशों के बजट को नकारात्मक तौर पर प्रभावित किया है।
पांच फीसद तक बिक्री कर
अधिकतर सामान और सेवाओं पर पांच प्रतिशत बिक्री कर लगाया गया है। माना जा रहा है कि 2018 में इससे दोनों सरकारें 21 अरब डॉलर तक जुटा सकती हैं जो सकल घरेलू उत्पाद के दो प्रतिशत के बराबर बैठेगा। यह देशों अमीर देशों के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव है। दुबई ने एक लंबे वार्षिक शॉपिंग फेस्टिवल का आयोजन किया है जिसका मकसद दुनियाभर से लोगों का अपने खुदरा बिक्री स्थानों या मॉल में आमंत्रित करना है। हालांकि बदलते दौर में सऊदी अरब द्वारा लिया गया ये फैसला भी उसकी ताबड़तोड़ फैसलों की सीरीज का ही एक पार्ट है।
सऊदी अरब बदल रहा है अपनी छवि
अगर हाल के कुछ वर्षों की बात की जाए तो यह सऊदी अरब की बदलती छवि को साफतौर पर देखा और समझा जा सकता है। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि पहले सऊदी अरब में की महिलाओं ने पहली बार 2012 के ओलंपिक गेम्स में हिस्सा लिया था। इसके अलावा दिसंबर 2015 में सऊदी अरब ने पहली बार महिलाओं को वोटिंग का अधिकार दिया। इसके तहत महिलाओं को न सिर्फ अपने वोट करने का अधिकार मिला बल्कि उन्हें खुद चुनाव में खड़े होने की भी आजादी मिल गई। 2015 में यहां क़रीब तीन करोड़ की आबादी वाले देश में पांच लाख पंजीकृत मतदाता था जिसमें महिलाओं की संख्या केवल 20 फीसद थी।
सऊदी अरब के ऐतिहासिक निर्णय
लगातार बदल रहे सऊदी अरब ने सितंबर 2017 में एक बार फिर बड़ा और ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार दिया। हालांकि यह अधिकार सही मायने में अगले वर्ष यानि 2018 से लागू होना है लेकिन इस तरफ कदम बढ़ाना सऊदी अरब में हो रहे बड़े सुधारों को दुनिया के सामने प्रदर्शित जरूर करता है। वहीं अगर कुछ वर्ष पहले चले जाएं तो महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार मांगने पर उन्हें जेल में डाल दिया जाता था। बारिया जो 'महिलाओं गाड़ी चलाएं' अभियान से जुड़ी हुई हैं उन्हें पूर्व में इसके लिए 70 दिनों की जेल की सजा भुगतनी पड़ी थी। इसके बाद योग को लेकर लिया गया निर्णय भी सऊदी अरब के 2030 मिशन को साफतौर पर दर्शाता है।
योग को दिया खेलकूद का दर्जा
बीते वर्ष सऊदी अरब ने योग को खेल का दर्जा देकर मुस्लिम कट्टरपंथियों के मुंह पर न सिर्फ तमाचा मारा था बल्कि उनके मुंह पर ताले भी जड़ दिए थे। सऊदी अरब ने भारत की पांच हजार साल पुरानी योग पद्धति को खेलकूद दर्जा देकर न सिर्फ सराहनीय काम किया बल्कि दुनिया में मौजूद इस्लामिक राष्ट्रों की सोच में बदलाव लाने की भी नींव रखी है। इस फैसले के तहत सरकार अब योग शिक्षकों को भी लाइसेंस जारी करेगी। इस फैसले के बाद कहीं भी योग को सीखा और सिखाया जा सकेगा। हम आपको ये भी बता दें कि योग को यह दर्जा दिलाने के पीछे नाऊफ अल मारावी हैं, जो इसके लिए काफी समय से जद्दोजहद कर रही थीं। यह इसलिए भी बेहद खास हो जाता है, क्योंकि सऊदी अरब इस्लाम की जन्मस्थली है और योग को एक धर्म विशेष से जोड़कर इस पर लंबे समय से राजनीति होती आई है। सऊदी अरब उन 18 देशों में शामिल था, जो 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र में रखे प्रस्ताव का सह प्रायोजक नहीं थे। ऐसे में सऊदी अरब का यह फैसला अहम है।
विजन 2030
इस मिशन का मकसद पहले ही सऊदी अरब, क्रॉउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पूरी तरह से साफ कर चुके हैं। उनके विजन 2030 एजेंडे को लागू करने के लिए भविष्य में दूसरे आर्थिक और सामाजिक सुधारों को भी लागू किया जा सकता है। सऊदी अरब महिलाओं को लेकर जिस तरह से अपने फैसले उनके हक में ले रहा है और अपनी कट्टरवादी सोच को बदल रहा है उसका पूरी दुनिया में स्वागत किया जा रहा है। उनके इन कदमों को हर तरफ से सराहना मिल रही है। अमेरिका इनकी तारीफ करते हुए कहा है कि यह देश को सही दिशा में ले जाने के लिए बेहतरीन कदम है।
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