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WTO Ministerial Conference: अपीलीय निकाय की बहाली पर अड़ा भारत, सदस्यों की नियुक्ति में अमेरिका क्यों लगा रहा अड़ंगा?

भारत ने डब्ल्यूटीओ के मिनिस्ट्रयल कांफ्रेंस13 में बुधवार को विवाद निपटान समाधान को लेकर कड़ा रुख अख्तियार किया। भारत ने कहा कि किसी अन्य सुधार कार्यक्रम पर आगे बढ़ने से पहले अपीलीय निकाय को बहाल करना जरूरी है ताकि वैश्विक व्यापार के मुद्दों का समाधान निकल सके। अमेरिका के अड़ंगे की वजह से अपीलीय निकाय के सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है।

By Jagran News Edited By: Devshanker Chovdhary Updated: Wed, 28 Feb 2024 08:35 PM (IST)
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भारत ने डब्ल्यूटीओ के मिनिस्ट्रयल कांफ्रेंस13 में विवाद को निपटाने के लिए आवाज उठाई। (फोटो- एएनआई)

राजीव कुमार, अबूधाबी। भारत ने डब्ल्यूटीओ के मिनिस्ट्रयल कांफ्रेंस13 में बुधवार को विवाद निपटान समाधान को लेकर कड़ा रुख अख्तियार किया। भारत ने कहा कि किसी अन्य सुधार कार्यक्रम पर आगे बढ़ने से पहले अपीलीय निकाय को बहाल करना जरूरी है, ताकि वैश्विक व्यापार के मुद्दों का समाधान निकल सके।

डब्ल्यूटीओ के अपीलीय निकाय के सदस्यों की नियुक्ति नहीं होने से यह निकाय पिछले पांच सालों से निष्क्रिय पड़ा है। अमेरिका के अड़ंगे की वजह से अपीलीय निकाय के सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है। अपीलीय निकाय के निष्क्रिय होने से सैकड़ों विवादित मामले लंबित हैं।

विवादित मामलों को सुलझाने पर क्या बोला भारत?

भारत ने एमसी13 में अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि विवादित व्यापारिक मामलों को सुलझाने के लिए अपीलीय निकाय का नहीं होना डब्ल्यूटीओ की साख पर सवाल खड़ा करता है। भारत ने कहा कि दो साल पहले जिनेवा में होने वाले एमसी12 में अपीलीय निकाय के लिए सदस्यों की नियुक्ति को लेकर सहमति बनी थी, लेकिन इस दिशा में अमेरिका के अड़ंगे वाले रवैये की वजह से कुछ भी आगे नहीं बढ़ पाया। भारत ने डब्ल्यूटीओ के विवाद सुधार मैकेनिज्म को पारदर्शी बनाने पर जोर देते हुए कहा कि डब्ल्यूटीओ के औपचारिक समूह में इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए।

विकसित देशों का नहीं भा रहा भारत का तेज विकास

विकसित देश अपने बाजार को भारत की पहुंच के लिए सीमित कर देना चाहते हैं और इस काम के लिए वे उद्योग में महिलाओं की समान भागीदारी, पर्यावरण नियम, एमएसएमई में बराबरी और श्रम कानून जैसे हथकंडे अपना रहे हैं। जानकारों का कहना है कि डब्ल्यूटीओ के मिनिस्ट्रयल कांफ्रेंस में इस प्रकार के मुद्दों को लाकर विकसित देशों ने परोक्ष रूप से अपनी मंशा को स्पष्ट कर दिया है।

उनका मानना है कि भारत की विकास गति को देख विकसित देश नए-नए तरीके अपनाकर भारत के व्यापार को बाधित करना चाहते ताकि वैश्विक बाजार में भारत की पहुंच कम हो सके। यही वजह है कि यूरोपीय व अन्य विकसित देश अब यह कह रहे हैं कि भारतीय एमएसएमई और उनके एमएसएमई के लिए श्रम से लेकर महिलाओं की भागीदारी पर समान कानून होने चाहिए। तभी विकसित देश हमारा माल खरीदेंगे। जबकि हकीकत यह है कि हमारे एमएसएमई और उनके एमएसएमई की कोई बराबरी नहीं है। भारत में जो बड़े उद्यमी माने जाते हैं, विकसित देशों में स्माल श्रेणी में माने जाएंगे।

पर्यावरण नियम और कार्बन टैक्स से राह रोकने की कोशिश

विकसित देशों ने पूर्व में जबरदस्त तरीके से जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया और अब जब भारत जैसे विकासशील देशों के विकसित बनने की बारी आई तो वे औद्योगिक उत्पादन में पर्यावरण नियम और कार्बन टैक्स लगाने की पहल कर रहे हैं।

जानकारों का कहना है कि भारत जैसे देश लोकतांत्रिक देश में महिलाओं को पहले से सभी सेक्टर में भागीदारी मिली हुई है। भारत में जितनी संख्या में महिला पायलट है, उतनी महिला पायलट किसी भी विकसित देश में नहीं है। अब विकसित देश कह रहे हैं कि महिलाओं की समान भागीदारी वाले उद्योग से ही माल खरीदने का नियम होगा। हालांकि भारत इस प्रकार के नियमों के पक्ष में कहीं से नहीं है।