WTO मंत्री स्तरीय कॉन्फ्रेंस में किसान व मछुआरों के हित पर भारत कायम, वार्ता में ठोस नतीजा निकलना मुश्किल
विश्व व्यापार संगठन के मिनिस्ट्रियल कॉन्फ्रेंस13 में भारत ने साफ कर दिया कि किसान व मछुआरों के हितों से कोई भी समझौता मंजूर नहीं होगा। विभिन्न देशों की आपसी रजामंदी नहीं हो पाने से 29 फरवरी को समाप्त होने वाली बैठक एक मार्च को भी जारी रही और हर तीन घंटे पर अंतिम सत्र की समाप्ति को बढ़ाया जाता रहा।
राजीव कुमार, अबूधाबी। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के मिनिस्ट्रियल कॉन्फ्रेंस13 (MC13) में भारत ने साफ कर दिया कि किसान व मछुआरों के हितों से कोई भी समझौता मंजूर नहीं होगा। एमसी13 के प्रमुख चर्चा बिंदुओं पर सभी देशों के बीच सहमति नहीं बनने से वार्ता में किसी ठोस नतीजे पर पहुंचना मुश्किल दिख रहा है।
बैठक में नहीं बनी थी आपसी रजामंदी
शुक्रवार की देर रात तक एमसी13 में ठोस नतीजे को लेकर प्रयास जारी था। विभिन्न देशों की आपसी रजामंदी नहीं हो पाने से 29 फरवरी को समाप्त होने वाली बैठक एक मार्च को भी जारी रही और हर तीन घंटे पर अंतिम सत्र की समाप्ति को बढ़ाया जाता रहा।
एमसी13 में भारत किसी भी गैर व्यापारिक मुद्दे को वार्ता का हिस्सा बनने से रोकने में सफल रहा। चीन निवेश सुविधा विकास के नाम पर 123 देशों को लामबंद कर डब्ल्यूटीओ के प्लेटफार्म पर सहमति बनाने के लिए वार्ता चाहता था, लेकिन भारत के विरोध के कारण यह सफल नहीं हो सका।
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स्थायी समाधान चाहता है भारत
भारत किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी और अनाज खरीदारी पर स्थायी समाधान चाहता है और इस दिशा में भारत का प्रयास अंतिम समय तक जारी रहा। हालांकि, वर्ष 2013 में इस मुद्दे पर पीस क्लॉज पर सभी देशों के हस्ताक्षर की वजह से स्थायी समाधान नहीं निकलने पर भी भारत किसानों को सब्सिडी देने के साथ अनाज की खरीदारी जारी रख सकता है और इसे कोई भी देश चुनौती नहीं दे सकता है।मछुआरों के हितों को कायम रखते हुए भारत ने साफ कर दिया कि पहले विकसित देश अपने मछुआरों को दी जाने वाली सब्सिडी कम करे, फिर इस मामले में कोई और बात होगी। डिजिटल रूप में विदेश से आने वाले उत्पाद पर डब्ल्यूटीओ के समझौते के मुताबिक, अभी कोई सीमा शुल्क नहीं लगती है, लेकिन 31 मार्च को इस छूट की अवधि समाप्त हो रही है।यह भी पढ़ें: अहम मुद्दों पर सहमति नहीं बनने से WTO की बैठक तय समय से आगे बढ़ी, किसान-मछुआरों के हितों पर भारत कायम
भारत चाहता है कि अगर विकसित देश इस छूट को जारी रखवाना चाहती है तो उन्हें किसानों की दी जाने वाली सब्सिडी मूल्य के गणना के आधार वर्ष को बदलना होगा, जो फिलहाल वर्ष 1986-88 का है। इसमें बदलाव आने से भारत अपने किसानों को बिना किसी चुनौती के और अधिक सब्सिडी दे सकेगा। कृषि निर्यात में बड़ी भूमिका निभाने वाले देश भारत की अनाज खरीदारी नीति का विरोध कर रहे हैं। उन देशों का मानना है कि भारत की इस नीति से उनका निर्यात प्रभावित होता है।