विवाद की जड़ इजराइल के संस्थापक पिता डेविड बेन-गुरियन ने 14 मई, 1948 को उत्पीड़न से भागने वाले यहूदियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय के रूप में आधुनिक राष्ट्र इजरायल की घोषणा की थी। फलस्तीनियों ने इजरायल के निर्माण को नकबा या तबाही की संज्ञा दी, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें बेदखल कर दिया गया और राष्ट्र का दर्जा पाने के उनके सपने को बाधित कर दिया।
इसके बाद हुए युद्ध में, लगभग सात लाख फलस्तीनी भाग गए या अपने घरों से निकाल दिए गए। जार्डन, लेबनान और सीरिया के साथ-साथ गाजा, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में पहुंच गए। इजरायल इस दावे का विरोध करता है कि उसने फलस्तीनियो को उनके घरों से निकाल दिया।
इजरायल का कहना है कि इसके जन्म के अगले दिन पांच अरब राज्यों ने उस पर हमला किया था। 1949 में युद्धविराम समझौते ने लड़ाई रोक दी, लेकिन कोई औपचारिक शांति नहीं थी। जो फलस्तीनी युद्ध में रुके रहे, वे आज अरब इजरायली समुदाय के तौर पर इजरायल की आबादी का लगभग 20 प्रतिशत हैं।
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दोनों में संघर्ष
1967 में, इजरायल ने छह दिवसीय युद्ध शुरू करते हुए मिस्र और सीरिया पर हमला किया। इजराइल ने तब वेस्ट बैंक, अरब पूर्वी यरुशलम, जिसे उसने जार्डन से कब्जा किया था और सीरिया के गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया।
1973 में मिस्र और सीरिया ने योम किप्पुर युद्ध की शुरुआत करते हुए स्वेज नहर और गोलान हाइट्स के साथ इजरायली ठिकानों पर हमला किया। इजरायल ने तीन हफ्ते के अंदर दोनों सेनाओं को पीछे धकेल दिया।2006 में लेबनान में फिर से युद्ध छिड़ गया। हिजबुल्लाह आतंकवादियों ने दो इजरायली सैनिकों को पकड़ लिया था और इजरायल ने जवाबी कार्रवाई की।2005 में इजरायल ने गाजा छोड़ दिया, जिसे उसने 1967 में मिस्र से कब्जा कर लिया था, लेकिन गाजा में 2006, 2008, 2012, 2014 और 2021 में बड़ी घटनाएं देखी गईं, जिसमें इजरायली हवाई हमले और फलस्तीनी राकेट हमले शामिल थे। कभी-कभी दोनों तरफ सीमा पार से घुसपैठ भी हुई थी।
शांति के लिए उठाए गए ये कदम
1979 में मिस्र और इजरायल ने 30 साल की दुश्मनी को समाप्त करते हुए एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए।1993 में, तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन और फलस्तीन मुक्ति संगठन के अध्यक्ष यासिर अराफात ने सीमित फलस्तीनी स्वायत्तता के लिए ओस्लो समझौते पर हाथ मिलाया।1994 में इजरायल ने जार्डन के साथ एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए।
2000 के कैंप डेविड शिखर सम्मेलन में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन, इजरायली प्रधानमंत्री एहुद बराक और यासिर अराफात एक अंतिम शांति समझौता पर पहुंचने में असफल रहे।2002 में एक अरब योजना ने इजरायल को 1967 के मध्य पूर्व युद्ध में ली गई भूमि से पूर्ण वापसी, फलस्तीनी राज्य के निर्माण और फलस्तीनी शरणार्थियों के लिए न्यायसंगत समाधान के बदले में सभी अरब देशों के साथ सामान्य संबंध की पेशकश की।
2014 से शांति प्रयास रुक गए हैं। वाशिंगटन में इजरायलियों और फलस्तीनियों के बीच वार्ता विफल हो गई थी।मुख्य इजरायली-फलस्तीनी मुद्दे दो-राज्य समाधान- यह इजरायल द्वारा पेश किया गया एक समझौता है जिसके तहत इजरायल के साथ वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में फलस्तीन के लिए एक राज्य बनाएगा। हमास ने दो-राज्य समाधान को अस्वीकार कर दिया है और इजरायल के विनाश की शपथ ली है। इजरायल ने कहा है कि फलस्तीनी राज्य को विसैन्यीकृत किया जाना चाहिए ताकि इजराइल को खतरा न हो।
इजरायली बस्तियां
अधिकांश देश 1967 में इजराइल द्वारा कब्जा की गई भूमि पर बनी यहूदी बस्तियों को अवैध मानते हैं। इजरायल इस भूमि से ऐतिहासिक और बाइबिल संबंधों का हवाला देता है। उनका निरंतर विस्तार इजरायल, फलस्तीन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है।
यरुशलम की स्थिति
फलस्तीनी पूर्वी यरुशलम को अपने राज्य की राजधानी बनाना चाहते हैं। इजरायल का कहना है कि यरुशलम को उसकी राजधानी बनी रहनी चाहिए। यरुशलम के पूर्वी हिस्से पर इजरायल के दावे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली है। ट्रंप ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दी और 2018 में अमेरिकी दूतावास को वहां स्थानांतरित कर दिया।
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शरणार्थी
आज लगभग 56 लाख फलस्तीनी शरणार्थी मुख्य रूप से 1948 में भागे लोगों के वंशज लेबनान, सीरिया, इजरायल के कब्जे वाला वेस्ट बैंक और गाजा और जार्डन में रहते हैं। फलस्तीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार, लगभग आधे पंजीकृत शरणार्थी राज्यविहीन हैं, जिनमें से कई भीड़-भाड़ वाले शिविरों में रह रहे हैं।फलस्तीनियों की लंबे समय से मांग रही है कि शरणार्थियों को उनके लाखों वंशजों के साथ वापस लौटने की अनुमति दी जानी चाहिए। इजरायल का कहना है कि फलस्तीनी शरणार्थियों का कोई भी पुनर्वास उसकी सीमाओं के बाहर होना चाहिए।