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चौथी बार देश की कमान संभालने वाली मर्केल के लिए राह में कम नहीं होंगी अड़चनें

चौथी बार देश की कमान संभालने वाली मर्केल को इस बार कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

By Rajesh KumarEdited By: Updated: Tue, 26 Sep 2017 01:23 PM (IST)
चौथी बार देश की कमान संभालने वाली मर्केल के लिए राह में कम नहीं होंगी अड़चनें

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। एंजेला मर्केल लगातार चौथी बार जीत कर एक बार फिर जर्मनी की कमान संभालने के लिए तैयार हैं। हालांकि इस बार उनकी राह पहले से मुश्किल जरूर हो सकती है। इसकी वजह है कि इस बार के चुनाव में उन्‍हें पहले की अपेक्षा करीब दस फीसद कम वोट मिले हैं। वहीं नतीजों के बाद उनके नजदीकी प्रति‍द्वंदी मार्टिन शुल्त्स ने अपनी हार स्‍वीकार कर ली है। इस बार 6.1 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं ने 19वीं संसद के लिए मतदान किया है।

जीत के बाद भी मर्केल की पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन

मर्केल की सीडीयू-सीएसयू को बेशक इन चुनावों में लगभग 33 फीसदी वोट मिले हैं लेकिन यह 1949 में गठन के बाद से पार्टी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है। ये नतीजे न सिर्फ मर्केल को प्रभावित करेंगे बल्कि इसका असर मर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रॉन के उस विचार पर भी पड़ेगा जिसका मकसद यूरोप के मौजूदा रूप में बदलाव लाना है। जर्मन की संसद में एएफडी के आने का मर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉन की नीतियों पर गहरा असर होगा।

किस पार्टी को कितने फीसद मिले वोट

शुरुआती नतीजों के अनुसार चांसलर एंजेला मर्केल की सीडीयू-सीएसयू पार्टी को 33 फीसद और मार्टिन शुल्त्स की एसपीडी को 20.5 फीसद मत मिले हैं। इसके अलावा लेफ्ट को 9.2, ग्रीन को 8.9, एफडीपी को 10.7, एएफडी को 12.6 और अन्‍य को 5.1 मत मिले हैं।

मर्केल की चुनौतियां

चौथी बार देश की कमान संभालने वाली मर्केल को इस बार कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। उनके लिए सबसे पहली चुनौती तो इस गठबंधन को चलाने की ही होगी। संसद में आने से पहले ही एएफडी पार्टी की नेता एलिस वाइडल मर्केल को संसदीय जांच की धमकी दे चुकी हैं। दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद यह पहला मौका होगा जब कोई धुर दक्षिणपंथी पार्टी बुंडेसटाग में प्रवेश पाएगी। यही वजह है कि उसका जोश अपने चरम पर होगा।

इन सभी के अलावा यूरो जोन में सुधार न सिर्फ उनकी विदेश नीति का हिस्‍सा होगा बल्कि यह उनके लिए चुनौतियों से भी भरा हुआ होगा। सर्वे बताते हैं कि जर्मनी और फ्रांस के लोग ही मैक्रॉन की यूरो जोन बजट जैसी नीतियों पर सबसे अधिक संदेह व्यक्त करते हैं। एक सर्वे के मुताबिक फ्रांस के महज 31 फीसदी लोग और जर्मनी के 39 फीसद लोग ही मानते हैं कि यूरोजोन बजट का प्रयोग आर्थिक रूप से कमजोर देशों के लिए किया जाना चाहिए।

इन नतीजों के बाद जहां ग्रीन पार्टी ने मजबूत यूरोप को अपनी प्राथमिकता बताया है तो वहीं एफडीपी यूरोपीय स्तर पर नीतियों को एकीकृत करने के खिलाफ है। अपने नये कार्यकाल में चांसलर मर्केल और सीडीयू के रूढ़िवादी खेमे के लिए उन मतदाताओं को अपनी ओर वापस लाना सबसे बड़ी चुनौती होगी जिन्होंने इन चुनावों में एएफडी पर भरोसा जताया है। इससे साफ है कि भविष्य में जर्मनी की शरणार्थी नीति में भी बदलाव नजर आएगा।

जमैका गठबंधन के आसार

चौथी बार सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए मर्केल को परस्पर विरोधी विचारधारा की पार्टियों एफडीपी व ग्रीन्स से गठजोड़ करना होगा। इस गठजोड़ को जमैका का नाम दिया जा रहा है, क्योंकि पार्टियों के रंग जमैका देश के झंडे से मिलते हैं।

निवेशकों को हुई चिंता

निवेशक जमैका गठबंधन को लेकर चिंता में हैं। उनका मानना है कि बेमेल दोस्ती मर्केल को कमजोर करने जा रही है। ये टिकाऊ भी नहीं होने वाली। उनका मानना है कि यूरोपीय संघ से अलगाव को लेकर ब्रिटेन से चल रही वार्ता मर्केल के कमजोर होने से प्रभावित होने वाली है, क्योंकि पहले उन्हें खुद को स्थायित्व देना है।

एएफडी ने किया सभी को भौचक

मतगणना के बाद जो चौंकाने वाली तस्वीर दिखाई दी उसमें अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। नाजियों से संपर्क के लिए कुख्यात रहे दल के प्रदर्शन से सारे नेता भौचक हैं। एएफडी को 13 फीसद मत मिले हैं।

सबसे बड़ी संख्‍या में युवाओं ने दिखाई भागीदारी

चार साल पहले हुए चुनाव में मतदाताओं की संख्‍या से करीब दस लाख थी। लेकिन यदि चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी की बात की जाए तो इस बार में तेजी देखने को मिली है। 2013 में मतदाताओं की भागीदारी 71 प्रतिशत थी जबकि इस साल 77 प्रतिशत मतदाताओं ने चुनाव में हिस्सा लिया। इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि 30 लाख युवाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

जर्मनी के चुनाव से जुड़ी खास बातें

- इस बार 19वीं संसद के चुनाव में 42 पार्टियों ने भाग लिया।

- 2013 में बुंडेसटाग का चुनाव लड़ने वाली सिर्फ 34 पार्टियां थी।

- देश के 299 चुनाव क्षेत्रों में मतदान केंद्र सुबह आठ बजे खुले और शाम छह बजे तक वहां मतदान हुआ।

- चुनाव प्रकिया को सफल बनाने में करीब 6,50,000 कार्यकर्ताओं ने योगदान दिया।

- इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि मतदाताओं को मतदान केंद्र के अंदर बच्चों को ले जाने की अनुमति दी गई थी।

- इस बार एफडीपी के अलावा धुर दक्षिणपंथी एएफडी भी संसद में पहुंची है।