Move to Jagran APP

ईरान के दूसरे सबसे ताकतवर व्‍यक्ति थे मेजर जनरल कासिम सुलेमानी, खामेनेई के थे करीब

कासिम सुलेमानी ईरान के सबसे बड़े नेता अयातुल्ला खामेनेई से काफी प्रभावित थे। रिवोल्‍यूशनरी गार्ड में शामिल होने के बाद उनका मिलिट्री करियर परवान चढ़ना शुरू हुआ था।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 05 Jan 2020 08:09 AM (IST)
Hero Image
ईरान के दूसरे सबसे ताकतवर व्‍यक्ति थे मेजर जनरल कासिम सुलेमानी, खामेनेई के थे करीब
नई दिल्‍ली [जेएनएन]। ईरान के कामरान प्रांत स्थित कनात ए मलिक गांव के बेहद गरीब परिवार में 11 मार्च 1957 को जन्मे कासिम सुलेमानी शुरुआती शिक्षा ही हासिल कर सके, लेकिन ईरान के शक्तिशाली रिवोल्यूशनरी गार्ड में शामिल होकर उन्होंने बुलंदियों की सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया तो देश के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई के काफी करीब हो गए। 

डॉक्‍यूमेंट्री से लेकर पॉप तक छाए 

करिश्माई के साथ ही रहस्यमय व्यक्तित्व वाले सुलेमानी की प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वे वृत्तचित्रों, समाचारों और यहां तक कि पॉप गीतों का विषय बन गए थे। 2013 में सीआइए के एक पूर्व अधिकारी जॉन मैग्यूरे ने उन्हें पश्चिम एशिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बताया था।

अमेरिका की आंखों की बने किरकिरी 

कहा जाता है कि 2003 में इराक में अमेरिकी हमले के बाद जनरल सुलेमानी ने आतंकवादी समूहों को अमेरिकी सैनिकों और उनके ठिकानों पर हमले के लिए प्रेरित करना शुरू किया। इसमें सैकड़ों अमेरिकी मारे गए थे। 2019 में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड और कुद्स फोर्स को विदेशी आतंकवादी संगठन करार दे दिया था। ट्रंप प्रशासन का कहना था कि जिसे अमेरिका ने आतंकी संगठन करार दिया है उसे कुद्स फोर्स ने प्रशिक्षण दिया। हथियार और उपकरण उपलब्ध कराए। इनमें हिजबुल्लाह और फलस्तीन का इस्लामिक जेहादी ग्रुप भी शामिल है।

सधे रणनीतिकार

1998 में कुद्स फोर्स के कमांडर बने सुलेमानी ने मध्य पूर्व देशों में ईरान का प्रभुत्व बढ़ाना शुरू किया। इस क्रम में गुप्त अभियानों और वफादार मिलिशिया सैनिकों का नेटवर्क तैयार किया। कुद्स सेना के प्रमुख होने के साथ ही सुलेमानी को पश्चिम एशिया में देश की गतिविधियों के संचालन में महारत हासिल थी। सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद की विद्रोहियों से लड़ाई, इराक में ईरान समर्थक पैरा मिलिट्री का उदय और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जंग समेत कई अन्य युद्धों का उन्हें रणनीतिकार माना जाता था।

दुश्मनों को नेस्तनाबूद करने में माहिर

माना जाता है कि इराक में पूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन के खिलाफ लड़ाई में उन्होंने शिया मुस्लिम और कुर्द लड़ाकों की सहायता की। इसके साथ ही लेबनान में शिया आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह और फलस्तीनी इलाके में इस्लामिक संगठन हमास की भी मदद की। 2011 में सीरिया में बशर अल असद के खिलाफ पनपे विद्रोह को खत्म करने की रणनीति तैयार करने का श्रेय भी उन्हें जाता है। ईरानी सहायता के साथ ही रूसी वायुसेना के समर्थन से विद्रोहियों को काबू करने में बशर अल असद को सफलता दिलाई।

पश्चिम एशिया में ईरान का बढ़ता रसूख 

लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेटजिक स्टडीज के एक अध्ययन के अनुसार पश्चिम एशिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाने में सऊदी अरब समेत अन्य प्रतिद्वंद्वी देशों की तुलना में ईरान तेजी आगे बढ़ रहा है। इसमें कहा गया है कि ईरान के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी देश यूके समेत अन्य पश्चिमी देशों से हथियार खरीदने में करोड़ों डॉलर खर्च कर रहे हैं। लेकिन कई प्रतिबंधों को झेल रहा ईरान काफी कम खर्च पर सफलता पूर्वक खुद को रणनीतिक तौर पर अहम साबित किया है। सीरिया, लेबनान, इराक और यमन जैसे देशों पर इसका प्रभाव ज्यादा है।