7 दशक पुरानी है अमेरिका और ईरान के बीच की दुश्मनी, कुछ मामलों से सुलगती रही राजनीति
अमेरिका-ईरान के बीच का तनाव कोई नया नहीं बल्कि करीब सात दशक पुराना है। इस्लामिक क्रांति की सफलता ने इसको और अधिक हवा दी थी।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 15 Jan 2020 08:26 AM (IST)
नई दिल्ली जागरण स्पेशल। ईरान और अमेरिका के बीच तनाव वर्तमान में जो तनाव दिखाई दे रहा है वह दरअसल दशकों पुराना है। इसके पीछे न तो बगदाद स्थित अमेरिकी दूतावास पर हुआ प्रदर्शन ही एकमात्र वजह है और न ही ईरानी टॉप कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत, बल्कि यह केवल एक बहाना मात्र है। ईरान और अमेरिका की दुश्मनी या यूं कहें कि तनातनी ईरान में इस्लामिक क्रांति से भी पहले की है। इसको वहां के शासक शाह पहलवी के तख्ता पलट ने और हवा दी। अयातुल्लाह खामेनेई द्वारा बनी सरकार ने इस दुश्मनी को चरम तक पहुंचा दिया। आपको बता दें कि शाह के तख्ता पलट के बाद से ही अमेरिका ने ईरान से सभी संबंध तोड़ लिए थे। तब से लेकर अब तक दोनों देशों की बदौलत कई बार दुनिया पर संकट के बादल छाए हैं।
यहां से शुरू हुई यूएस ईरान के बीच तनाव की कहानी अमेरिका-ईरान के बीच तनाव या दुश्मनी की पटकथा 1949 में देश में नया संविधान लागू होने के साथ ही शुरू हो गई थी। नए संविधान के तहत ईरान ने बेहद कम समय में पांच अलग-अलग प्रधानमंत्रियों को देखा। हर किसी का कार्यकाल कुछ माह या कुछ वर्षों का ही रहा। ऐसी स्थिति में जहां देश की आर्थिक हालत खराब हो रही थी वहीं शाह के खिलाफ लोगों का गुस्सा धीरे-धीरे सड़कों पर उतर रहा था। शाह क्योंकि अमेरिकी पसंद थे इसलिए भी वह जनता के निशाने पर थे। पश्चिम देशों के इशारे पर वो देश में ऐसे कानून लागू कर रहे थे जो ईरानी जनता को कतई पसंद नहीं थे। शाह के खिलाफ इन ईरानियों का नेतृत्व अयातुल्लाह खामेनेई कर रहे थे, जो आगे चलकर देश के पहले सर्वोच्च नेता भी बने थे।
अमेरिकी परस्त शाह की सरकार
भारतीय मूल के खामेनेई शाह के घोर विरोधी थे। उन्होंने देश में बदलाव को लेकर बनाए गए शाह के छह सूत्री कार्यक्रम का पुरजोर विरोध किया। 1963 में लाए गए इस प्रस्ताव को शाह ने श्वेत क्रांति का नाम दिया गया था। जनता का नेतृत्व करने वाले खामेनेई इस वक्त तक काफी बड़े नेता बन चुके थे। उनके अलावा अली खामेनेई भी शाह की आंखों की किरकिरी बने हुए थे। इन दोनों के बढ़ते कद से परेशान शाह ने एक-एक कर दोनों को देश निकाला दे दिया था। इस फैसले ने ईरान की जनता को और आक्रोशित कर दिया था। जनता को इस बात का विश्वास हो गया था शाह अमेरिका के सामने झुक गए हैं और उनके कहे मुताबिक फैसले ले रहे हैं। शाह के खिलाफ लगातार सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। देश से बाहर होने के बावजूद खामेनेई ने न तो जनता को अकेले छोड़ा न ही शाह को चैन ही लेने दिया। वह लगातार फ्रांस से शाह के विरोधियों को प्रदर्शन के बाबत दिशा-निर्देश दे रहे थे।
मार्शल लॉ शाह ने इन विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए, जिसमें मार्शल लॉ लागू करने तक शामिल था। लेकिन उनकी यह तरकीब काम नहीं आ सकी और आखिरकार गुस्साई जनता के डर ने 1979 में शाह को देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इस एक घटना ने जहां देश से अमेरिकी परस्त सरकार को उखाड़ फेंका था वहीं अमेरिका को भी ईरान की राजनीति से बाहर कर दिया था। जनवरी 1979 में जहां शाह देश से बाहर गए वहीं फरवरी में खामेनेई फ्रांस से वापस स्वदेश लौट आए।
बंद हुए यूएस के लिए ईरान के दरवाजे शाह के जाने और खामेनेई की वापसी ने ईरान में अमेरिका के लिए सभी दरवाजे बंद कर दिए थे। इसके बाद ही अमेरिका ने ईरान से सारे राजनीतिक संबंध भी तोड़ लिए थे। यहां से ही दोनों देशों के बीच लगातार दूरियां बढ़ती चली गईं। खामेनेई की वापसी के बाद देश में शाह विरोधी और शाह समर्थन सेना के बीच जंग भी हुई जिसमें खामेनेई की जीत हुई। 1979 में ईरान को एक इस्लामी गणतंत्र घोषित किया गया और खामेनेई को देश का सर्वोच्च नेता चुना गया।
अमेरिकी बंधक अमेरिका और ईरान के बीच तनाव के बढ़ने की एक बड़ी वजह उसके नागरिकों को बंधक बनाया जाना भी था। दरअसल, ईरान ने अमेरिका द्वारा संबंध तोड़े जाने के बाद उसके दूतावास में मौजूद सभी अमेरिकियों को बंधक बना लिया था। अमेरिका ने कई बार इन बंधकों की रिहाई को लेकर ईरान को कहा लेकिन ईरान ने हर बार उसकी अपील को ठुकरा दिया। 1981 में जब अमेरिका में रोनाल्ड रीगन को अमेरिकी राष्ट्रपति चुना गया तो करीब 444 दिनों बाद इन बंधकों को ईरान ने छोड़ दिया।
ईरान-इराक युद्ध में समझौता 1980 में ईरान-इराक युद्ध के दौरान भी दोनों देशों के बीच तल्खी इस कदर बढ़ी कि दोनों ही एक दूसरे को मरने-मारने पर उतारू हो गए थे। यह युद्ध काफी लंबा चला। लेकिन अमेरिका को इससे कुछ हासिल नहीं हो सका। इसके अलावा अमेरिका को इस दौरान हुए समझौते ने दुनिया के सामने कमजोर राष्ट्र साबित कर दिया था। अमेरिका ने यह समझौता बड़ी मजबूरी में किया था। यह समझौता अमेरिका को हमेशा सालता रहा।
ईरानी यात्री विमान का मार गिराना इस समझौते के बाद 1988 में एक बार फिर दोनों ही देश आमने सामने आ गए थे। इसकी वजह थी अमेरिका द्वारा ईरानी यात्री विमान को मार गिराया जाना था। इस घटना में दस भारतीय समेत 290 यात्री मारे गए थे। इतना ही नहीं अमेरिका ने इस कृत्य के लिए माफी तक नहीं मांगी थी, जिसके बाद ईरान अंतरराष्ट्रीय कोर्ट तक पहुंच गया था।
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