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Aung San Suu Kyi को क्यों कहा जाता है म्यांमार की Iron Lady, चुनाव जीतीं फिर भी नहीं बन सकीं राष्ट्रपति

Aung San Suu Kyi Birth Anniversary म्यांमार में लोकतंत्र लाने वाली महिला आंग सान सू की जेल में कई सालों की सजा काट रही हैं। इन्होंने म्यांमार के लोगों के मानवाधिकारों के लिए लंबे समय से अपना संघर्ष जारी रखा था। इन्हें कई बार नजरबंद भी किया जा चुका है।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Mon, 19 Jun 2023 03:18 PM (IST)
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Aung San Suu Kyi Birth Anniversary: म्यांमार की Iron Lady
नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। Aung San Suu Kyi Birth Anniversary: म्यांमार की लौह महिला माने जाने वाली महिला ने देश के लोगों के अधिकारों के लिए हमेशा अपनी आवाज बुलंद रखी। किसी के आगे हार न मानने और अपना संघर्ष जारी रखने के लिए 1991 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। हालांकि, नाराज लोकतंत्र के कई पदाधिकारियों ने इनको सताने को कोई मौका नहीं छोड़ा और लगातार उन पर जुल्म ढाते रहे।

दूसरों के अधिकारों के लिए लगाई जान की बाजी

हम बात कर रहे हैं म्यांमार की मानवाधिकारों की पैरोकार माने जाने वाली महिला आंग सान सू की की। उनका सफर आसान नहीं रहा है, बहुत कम समय से ही इन्होंने दूसरे को उनका अधिकार दिलाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाना शुरू कर दिया था। इस समय आंग सान सू की जेल में बंद है, लेकिन आज भी जितने लोग इनके विचारों के कारण इनकी आलोचना करते हैं, उससे कई ज्यादा लोग इनके प्रशंसक भी हैं।

देश के लिए समर्पित रहा परिवार

आंग सान सू की का जन्म 19 जून, 1945 को रंगून में हुआ था। इनका परिवार भी शुरू से ही म्यांमार के लिए समर्पित था। इनके पिता ने आधुनिक बर्मी सेना बनाई थी और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका का साथ दिया था। आंग सान के पिता हमेशा बर्मा के आजादी की मांग करते थे, जिसको लेकर उनके दुश्मनों ने उनकी हत्या कर दी। दरअसल, उस समय म्यांमार को बर्मा के नाम से जाना जाता था।

मां ने किया पालन पोषण

आंग सान के पिता के निधन के समय वो दो साल की थी। इसके बाद उनकी मां ने उनका पालन-पोषण किया। आंग सान की मां भी म्यांमार की राजनीति का एक अहम चेहरा रही थी। आंग सान की मां 1960 में भारत और नेपाल में बर्मा की राजदूत थीं। उस दौरान आंग सान की पढ़ाई दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से हुई। उन्होंने 1964 में राजनीति विज्ञान से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए ऑक्सफोर्ड से दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की।

इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क में रहकर संयुक्त राष्ट्र में तीन साल तक काम किया। यहां पर उन्होंने 1972 में तिब्बती संस्कृति के विद्वान और भूटान में रहने वाले डॉ माइकल ऐरिस से शादी कर ली, जिसने इन्हें दो बेटे हुए।

मानवाधिकारों के लिए उठाई आवाज

कुछ सालों बाद आंग सान अपनी मां की सेवा करने के लिए दोबारा म्यांमार आई। यहां पर सेना की तानाशाही देखकर वो काफी परेशान हुईं और सोच लिया कि वो न्याय और अधिकारों के लिए आवाज उठाएंगी। लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया इसके चलते उनके विदेश जाने पर पाबंदी लगा दी गई, जिस कारण वे अपने पति के अंतिम संस्कार में भी शामिल न हो सकीं।

नोबेल शांति पुरस्कार से हुई सम्मानित

1991 में आंग सान को उनके संघर्ष के लिए शांति के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। हालांकि, उस समय वे नजरबंद थी, जिस कारण अपना अवॉर्ड नहीं ले पाई थीं। इसके बाद दुनियाभर से उन्हें रिहा करने की मांग उठने लगी और म्यांमार पर दबाव बढ़ता गया। आंग सान को 2008 में अमेरिका के कांग्रेसनल गोल्ड मेडल से भी सम्मानित किया गया, यहां हैरानी कि बात यह थी कि आंग सान पहली ऐसी व्यक्ति थी, जिसे जेल में रहने के दौरान इस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

संवैधानिक तौर पर राष्ट्रपति बनने से रोका

2010 में म्यांमार में आम चुनाव हुए, जिसके छह दिन बाद आंग सान को नजरबंदी से रिहा कर दिया। अपनी रिहाई के बाद वह 2012 में यूरोपीय दौरे पर गईं और अपना 1991 का नोबेल पुरस्कार हासिल किया। वर्ष 2015 में उन्होंने म्यांमार में 25 साल में पहली बार हुए राष्ट्रीय चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी का नेतृत्व कर जीत हासिल की और विरोधी दल की नेता बन गईं। हालांकि, उन्हें संवैधानिक तौर पर राष्ट्रपति बनने से रोक दिया गया, फिर उनकी पार्टी ने सरकार बनाई और वे विदेश मंत्री बनीं।

रोहिंग्याओं के मुद्दे पर हुई आलोचना

सरकार में आने के बाद आंग सान सू की ने रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के लिए बदनाम राज्य रखाइन के लिए एक आयोग बनाया। रोहिंग्या अपना नागरिकता की मांग कर रहे थे, लेकिन एक इंटरव्यू के दौरान आंग सान ने रोहिंग्याओं को नागरिकता देने से इनकार कर दिया। हालांकि, उन्होंने कहा था कि वह रोहिंग्याओं को परिचय पत्र जारी करने के लिए राजी है। हालांकि, रोहिंग्या वाले मुद्दे पर आंग सान की पूरी दुनिया में आलोचना की गई थी।

साल 2021 में सेना ने किया तख्तापलट

साल 2020 के चुनाव में उनकी पार्टी को भारी बहुमत प्राप्त हुआ, लेकिन सेना ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए संसद के पहले दिन ही आंग सान को दूसरे राजनेताओं के साथ कैद कर लिया। सेना ने उन पर चुनाव में धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार करने और कोरोना के नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए दिसंबर 2021 में चार साल की सजा सुनाई।

इसके बाद फिर मामले में सुनवाई करते हुए आंग सान सू की को जनवरी 2022 में और चार साल की सजा सुनाई गई। दिसंबर 2022 तक आंग सान पर अलग-अलग मामलों के तहत कुल 32 साल की सजा हो चुकी है।