भारत में चीनी घुसपैठ विवादित सीमा पर स्थायी नियंत्रण की सोची-समझी रणनीति, अध्ययन में किया गया दावा
अक्साई चिन क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण आकस्मिक घटनाएं नहीं बल्कि विवादित सीमा क्षेत्र पर स्थायी नियंत्रण पाने की रणनीतिक रूप से सुनियोजित और समन्वित विस्तारवादी रणनीति का हिस्सा हैं। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के एक अध्ययन के आधार पर यह दावा किया गया है।
By AgencyEdited By: Sonu GuptaUpdated: Fri, 11 Nov 2022 11:42 PM (IST)
न्यूयार्क, पीटीआइ। अक्साई चिन क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण आकस्मिक घटनाएं नहीं बल्कि विवादित सीमा क्षेत्र पर स्थायी नियंत्रण पाने की रणनीतिक रूप से सुनियोजित और समन्वित 'विस्तारवादी रणनीति' का हिस्सा हैं। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के एक अध्ययन के आधार पर यह दावा किया गया है। नीदरलैंड में नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, टेक्निकल यूनिवर्सिटी आफ डेल्फ्ट और नीदरलैंड डिफेंस एकेडमी ने 'हिमालय क्षेत्र में बढ़ता तनाव: भारत में चीनी सीमा अतिक्रमण का भू-स्थानिक विश्लेषण' विषयक अध्ययन किया।
15 साल के आंकड़ों का किया गया इस्तेमाल
उन्होंने पिछले 15 साल के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए विश्लेषण किया है। अध्ययन दल ने 'घुसपैठ' को भारत के क्षेत्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्य इलाकों में सीमा के आसपास चीनी सैनिकों की पैदल या वाहनों से किसी तरह की गतिविधि के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने एक मानचित्र पर 13 ऐसे स्थान चिह्नित किए जहां बार-बार घुसपैठ होती है।
प्रत्येक साल होती है सात से आठ घुसपैठ की घटनाएं
अनुसंधानकर्ताओं ने 15 साल के आंकड़ों में प्रत्येक वर्ष घुसपैठ की औसतन सात से आठ घटनाएं देखीं। हालांकि भारत सरकार का आकलन इससे बहुत अधिक है। अध्ययन के वरिष्ठ लेखक सुब्रह्मण्यम और नार्थवेस्टर्न के मैककार्मिक स्कूल आफ इंजीनियरिंग में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर वाल्टर पी मर्फी ने कहा कि पश्चिम और मध्य में हुई घुसपैठ की संख्या का समय के साथ अध्ययन करके सांख्यिकीय रूप से यह स्पष्ट हो गया कि ये घुसपैठ आकस्मिक नहीं हैं। इनके अचानक होने की संभावना बहुत कम है, जो हमें बताती है कि यह एक समन्वित प्रयास है।गलवन संघर्ष का किया गया है उल्लेख
अध्ययन में जून 2020 में गलवन संघर्ष का उल्लेख किया गया है जिसमें 20 भारतीय जवानों की वीरगति हुई थी और चीन के सैनिक भी मारे गए थे जिनकी संख्या अज्ञात है। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ की खबरें अब रोजाना की बात हो गई हैं। इसमें कहा गया है कि दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों के बीच बढ़ता तनाव वैश्विक सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है।
29 माह से जारी है गतिरोध
भारत और चीन के बीच पिछले 29 महीने से अधिक समय से पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध जारी है। अध्ययन में कहा गया कि देश केवल अपने से जुड़ी कार्रवाइयों पर प्रतिक्रिया नहीं देते, बल्कि अपने मित्र गठबंधनों तथा प्रतिद्वंद्वी देशों के समूहों से जुड़ी कार्रवाइयों पर भी सक्रियता दिखाते हैं। क्वाड में भारत की भागीदारी, अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा संवाद, चीन-भारत सीमा पर चीनी गतिविधि के लिए 'ट्रिगर' के रूप में काम कर सकता है। दूसरी ओर, चीन पाकिस्तान के साथ सहयोगात्मक गतिविधियों में शामिल है, और अफगानिस्तान में पश्चिमी शक्तियों के वापस होने के बाद जो शून्य बना है, उसमें जगह बनाने के लिए तैयार है।चीनी विदेश नीति से आक्रामकता में आई तेजी
अध्ययन के अनुसार चीन की विदेश नीति तेजी से आक्रामक हो गई है, वह ताइवान के आसपास अपने सैन्य अभ्यास बढ़ा रहा है और दक्षिण चीन सागर में उपस्थिति बढ़ा रहा है। चीन की विस्तारवादी नीतियों का मुकाबला करने के लिए आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन तथा अमेरिका ने एक साझेदारी की है और भारत के लिए एक विकल्प है कि वह खुद को इन तीनों देशों के साथ संयोजित करे।
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